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जोधपुर-जीवन ऐसा बनाएँ कि हमारे लिए हर दिन होली और हर रात दीवाली हो: राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ।

 

वीरधरा न्यूज़। जोधपुर@डेस्क।

जोधपुर। संबोधि साधना के प्रणेता, राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि शांति ही जीवन का स्वर्ग है। अन्तर्मन की शान्ति ही जीवन का सुख है। अन्तर्मन की अशान्ति ही जीवन का दुख है। शान्ति का नाम ही स्वर्ग है। अशान्ति का नाम ही नरक है। जहाँ शान्ति है वहाँ दीवाली है, जहाँ अशान्ति है वहाँ अँधेरा है। हम तो अपना जीवन ऐसा बनाएँ कि हमारे लिए हर दिन होली और हर रात दीवाली हो। होली आनन्द के लिए है और दीवाली शान्ति के लिए। वर्ष भर में मनाए जाने वाले ये त्यौहार बड़े प्रतीकात्मक हैं। कभी हम होली मनाते हैं, तो कभी दीवाली मनाते हैं और कभी हम ईद भी मना लिया करते हैं।
होली यानी खुशी, होली यानी मिलन का उत्सव, होली यानी एक दूसरे के प्रति सद्भावना और शुभकामना। आप अपने जीवन की हर सुबह को ही क्यों न होली बना लें! हर सुबह बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम करें, भाई-बहिन गले मिलें, अड़ौस-पड़ौस वालों का अभिवादन करें, हर दिन खुशियाँ बाँटना हर दिन होली का त्यौहार मनाने की तरह ही है। उन्होंने कहा कि हम हर दिन होली मनाएं यानी अपने दिल के गिले-शिकवों को दूर करके सबके चेहरों पर प्यार और मोहब्बत की गुलाल लगाओ। गिलों और शिकवों को दिल में पालने की बजाय उनका दहन कर डालो। हमारी हर रात दीवाली हो, ऐसी सचेतनता अपने जीवन में निर्मित करो। हम अपने जीवन के अँधेरों को पहचानें। अपनी अशान्ति और अज्ञान को पहचानें और जीवन में शान्ति, ज्ञान और आनन्द का दीप रोशन करें।
संतप्रवर सोमवार को संबोधि पावर योगा एंड मेडिटेशन कैंप के समापन पर कायलाना रोड़ स्थित प्रसिद्ध साधना-स्थली संबोधि धाम में आयोजित होली महोत्सव में देशभर के साधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि होली जैसा त्यौहार महज किसी एक दिन मनाने के लिए नहीं होते हैं। होली का त्यौहार साल में भले ही एक बार आता हो, पर त्यौहार साल भर वैसा जीने के लिए उत्साहवर्धन कर जाता है। क्या आप होली और दीपावली हर रोज मनाएँगे? अपने दिल-दिमाग से पूछिये, अपने आप में तलाशिये कि आपकी अपने लिए चाहत क्या है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारा दिमाग ज्ञान की बजाय चिन्ता से घिरा हुआ है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारा दिल प्रेम और शान्ति की बजाय तनाव और अवसाद के चक्र-व्यूह में उलझा हुआ है?
जीवन को माचिस की तीली न बनाएं – संतप्रवर ने कहा कि हमने अपने जीवन को माचिस की तीली की तरह बना लिया है, जो थोड़ा-सा घर्षण पाकर ही तत्काल सुलग उठती है। जैसे तीली रगड़ खाते ही आग बबूला हो जाती है, वैसे ही हम भी थोड़ी-सी रगड़ पाते ही दहक उठते हैं। हो-हल्ला, हुल्लड़बाजी करने लगते हैं, गाली-गलौच करने पर उतारू हो जाते हैं, माँ-बहिन की मर्यादा भूल जाते हैं। इन्सान शांत रहे तब तो इंसान, इंसान कहलाने के काबिल होता है। इन्सान अशान्त हो जाए तो इन्सान से ज्यादा खतरनाक कोई जानवर नहीं होता। माना कि माचिस की तीली रगड़ खाकर जलती है,पर हम कोई माचिस की तीली थोड़े ही हैं। माचिस की तीली के डंडी भी होती है और माथा भी। हमारे पास भी डंडी है और माथा भी। पर माचिस के पास बुद्धि नहीं है, जबकि हमारे पास बुद्धि है। माचिस की तीली तो बुद्धू है इसलिए रगड़ खाते ही जल उठती है। आप तो प्रबुद्ध हैं। आप भी अगर रगड़ खाते ही सुलग उठे तो तीली में और हममें फर्क ही क्या हुआ? अपने आपको माचिस की तीली न बनाएँ कि थोड़ा-सा घर्षण लगते ही सुलग उठे। खुद को वह शर्बत का प्याला बनाएँ कि जो पिए आपका दोस्त बन जाए।
शांति को बनाएँ जीवन की साधना – संतप्रवर ने कहा कि शान्ति ही जीवन की साधना हो। शान्ति ही जीवन की प्रार्थना हो। शान्ति ही हमारी मंजिल हो। शान्ति ही मंजिल का पड़ाव भी हो। वह हर कार्य, वह हर निमित्त, हर साधन स्वीकार्य है जो हमारे लिए शान्ति का दाता हों। वह हर कार्य, हर निमित्त, हर साधन अस्वीकार्य है, जो हमारे लिए अशान्ति का पोषक हो। सच्ची शान्ति का अर्थ यह है कि उसे कोई निमित्त प्रभावित न कर पाए, उसे कोई बाधा बाधित न कर पाए, उसे कोई विकार या प्रलोभन विचलित या खण्डित न कर पाए। यों तो सभी शान्त ही दिखाई देते हैं, पर अशान्ति का वातावरण बन जाने पर भी जो शान्त रहता है, उसी की शान्ति ही सच्ची शान्ति है।
प्रतिक्रिया से बचें, सहजता से जीएँ – उन्होंने कहा कि आज का जमाना क्रिया-प्रतिक्रियाओं का हो चुका है। इसी के चलते इतना द्वन्द्व और विभाजन देखने को मिलता है। इन्सान की खाने की क्षमता तो बढ़ गई है, पर पचाने की क्षमता पतली हो गई है। भाई-भाई के बीच होने वाला बँटवारा, सास-बहू के बीच होने वाले विरोधाभास, पति-पत्नी के बीच होने वाले तलाक, ये सब क्रिया-प्रतिक्रियाओं के ही परिणाम हैं। हमें अनेकान्तवाद से कुछ सीखना चाहिए। सीखना यह चाहिए कि हमें कब सापेक्ष होना चाहिए और कब निरपेक्ष? कब बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए? क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं बोला जाना चाहिए? जीवन में सकारात्मकता को अपनाएँ, पर जब-जब जरूरत लगे तब-तब नकारात्मकता का भी हथियार की तरह, रक्षा-कवच की तरह उपयोग कर लें।
हर समय सौम्य और प्रसन्न रहना सीखिए – उन्होंने कहा कि शान्ति और आनन्द का यदि सदाबहार जायका लेना है तो हर समय सौम्य और प्रसन्न रहना सीखिए। मुस्कान तो दुनिया की किसी भी महँगी साड़ी से ज्य़ादा बेशकीमती हुआ करती है। आप अपनी सहेली को अपनी सौम्य मुस्कान दीजिए। वह मुस्कान किसी भी महँगी बनारसी साड़ी से ज्यादा कीमती होगी। वह किसी भी जोधपुरी सूट से ज्यादा खूबसूरत होगी। आप हर समय खुशमिजाज रहने वाले व्यक्ति बनिए। अगर कभी लगे कि आप ज्यादा तनाव में हैं, आज कुछ डिप्रेशन जैसा हो रहा है तो मुस्कान को ठहाके में बदल लीजिए। जैसे प्रेशर कुकर गर्म होने पर जोर का ठहाका लगाता है, ऐसे ही आप भी ठहाका लगा लीजिए। जैसे प्रेशर कुकर के ठहाका लगने पर उसके भीतर का तनाव शान्त हो जाता है, वैसे ही आपका तनाव भी शान्त हो जाएगा। अन्तर्मन की शान्ति और आनन्द के लिए एक ओर व्यर्थ की प्रतिक्रियाओं से परहेज रखिए और दूसरी ओर सदाबहार सौम्य रहिए। खुद को हैप्पीमैन बनाइए, एंग्रीमैन नहीं। हैप्पीमैन को तो पड़ौसन भी प्यार करेगी, एंग्रीमैन से घरवाली भी बचना चाहेगी।
इस दौरान साधकों ने गुलाल से गुरूचरणों की पूजा की, होली के भजनों पर जमकर झूमने का आनंद लिया और एक-दूसरे को गुलाल का तिलक करते हुए जब सभी साधक आपस में गले मिले तो अदभुत प्रेम और खुशी का माहौल बन गया। संतप्रवर ने सभी को होली की शुभकामना और आशीर्वाद दिया। सभी ने हाथ खड़े कर शांतिदूत बनने का संकल्प लिया।

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