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जोधपुर-एम बी एम विश्वविद्यालय करेगा ऊन पर शोध।

वीरधरा न्यूज़।जोधपुर@डेस्क।


जोधपुर।एम बी एम विश्वविद्यालय और केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड के बीच में ऊन के शोध को लेकर एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। जहां एक तरफ एमबीएम पिछले 70 वर्षों से देश के अग्रणी तकनीकी शिक्षण संस्थान के रूप में कार्यरत है वहीं दूसरी और केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड देश में ऊनी उद्योग की उन्नति के लिए काम कर रहा है।
एमबीएम विश्वविद्यालय और केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड के बीच इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर के बाद ऊन के अनुसंधान, शिक्षा और उत्पाद विकास की प्रगति में योगदान देने में सहयोग किया जाएगा। यह समझौता ज्ञापन संयुक्त रूप से ऊन क्षेत्र में अनुसंधान करने में मदद करेगा। समझौता ज्ञापन में राष्ट्रीय सम्मेलनों, सेमिनारों और व्याख्यानों का आयोजन, संयुक्त प्रकाशन, संयुक्त अनुसंधान करना, जिसमें अनुसंधान उपकरण साझा करना शामिल है। केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड का कार्य मुख्य रूप से ऊन और ऊनी वस्त्र उद्योग की उन्नति और ऊन उद्योग के सम्पूर्ण क्षेत्र की एकीकृत नीति व ऊन उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों के बीच विविधिकृत हितों का समन्वय करना तथा समग्र विकास को बढ़ावा देना है। बोर्ड का काम ऊन तथा ऊनी वस्त्रों का विपणन, जांच, ऊन उत्पाद विकास का संवर्धन तथा ऊन की अन्य क्षेत्रों में उपयोगिता को प्रोत्साहित करना भी है।
एमओयू समारोह के उपलक्ष पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजय कुमार शर्मा ने बताया की देश में ऊनी उद्योग का आकार विस्तृत रूप से फैला हुआ है, इस एमओयू के तहत एमबीएम विश्वविद्यालय ऊन पर शोध व जांच करेगा जिसका मुख्य रूप से उदेश्य ऊन का इंजीनियरिंग क्षेत्र में बेहतर उपयोग व अभिवृद्धि करना है। केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड के कार्यकारी निदेशक कर्नल गोपाल सिंह भाटी ने भी ऊन के उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए बताया की भारत में भेड़ ऊन एक प्राकृतिक सामग्री है, जिसका उपयोग पहले से ही छतों और दीवारों के थर्मल इन्सुलेशन के लिए किया जाता रहा है।
एमओयू समारोह में केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड के कार्यकारी निदेशक कर्नल गोपाल सिंह भाटी और एम बी एम विश्वविद्यालय की ओर से सहायक आचार्य आर्किटेक्ट कमलेश कुम्हार ने ऊन के विभिन्न पहलुओ पर चर्चा कर एमओयू पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर करते हुए प्रो. कुम्हार ने बताया की विश्वविद्यालय ऊन पर विशेष अनुसंधान कर ऊन संबंधी सस्टैनबल ग्रीन बिल्डिंग मटीरीअल बनाएगा जो की पारंपरिक मटीरीअल से बेहतर परिणाम देगा, जिससे ऊन की कन्स्ट्रक्शन के क्षेत्र में भी संभावनाए बढ़ेंगी जिससे इसका उपयोग वास्तुकला और इंजीनियरिंग में योजनाओ के निर्माण व कार्य विस्तार में ग्लोबल सस्टेनेबिलिटी के लक्ष्यों को हासिल करने में किया जा सकेगा।
इस दौरान विश्वविद्यालय के डीन प्रो. राजेश भदादा, सभी विभागाध्यक्ष, इन्चार्ज एवं केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड के अधिकारी उपस्थिति थे।

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