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विवेकपूर्ण खानपान से जीवात्मा शीघ्र ही कर्मों की निर्जरा कर सकता है- साध्वी डाॅ. अर्पिता जी म.सा।

वीरधरा न्यूज़।चित्तोड़गढ़@डेस्क।

चित्तोड़गढ़। श्रमण संघीय उपप्रवर्तिनी वीरकान्ता जी म.सा. की सुशिष्या साध्वी डाॅ. अर्पिता जी म. सा. ने पर्यूषण पर्व के सातवे दिन प्रवचन करते हुए फरमाया कि विवेकपूर्ण खानपान से जीवात्मा शीघ्र ही कर्मों की निर्जरा कर सकता है। अन्न का कभी अनादर नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से हम न केवल अन्न का अनादर कर रहे वरन अन्नदाता, किसान की मेहनत, व्यापारी, ट्रांसपोर्टर, ट्रक ड्राईवर के साथ घर में खाना बनाने वाली गृहणी का भी अनादर कर रहे हैं। उनकी मेहनत के बदले सम्मान का उपहार न देकर उन्हें अपमान का कड़ावा जहर दे रहे हैं। इसलिए हमारे शरीर में आज जहर उत्पन्न हो रहा है, बीमारियों से शरीर ग्रस्त हो रहा है। साथ ही आत्मा भी दूषित हो रही है। पहला सुख निरोगी काया यदि शरीर स्वस्थ है तो जीवन में खुशहाली स्वतः आ जायेगी।
उन्होंने कहा कि मोक्ष पालीताणा, सम्मेद शिखर में नहीं है। धरती का हर टुकड़ा मोक्ष के परमाणु पुद्गलों से भरा पड़ा है। जैसे जोक गाय के दूध की जगह खुन चुसती है वैसे ही हमारे जीवन की स्थिति है। पानी पुरी, रसगुल्ले खाने की प्रतियोगिता हो या कोई वैवाहिक कार्यक्रम के भोज में जो पेट में ठूंस ठूंस कर खाते हैं तो बीमार तो होना ही है। आहार संज्ञा प्राणी में जन्म से ही पर आहार संयम से ही कई पाप नष्ट हो जाते हैं। नवकारसी मात्र एक नरक का बंध काट सकती है तो विवेकपूर्ण तप कितना गुना प्रभावी होगी। जैसे मोबाइल का स्लो चार्जर और फास्ट चार्जर वैसे ही तपस्या से कर्म निर्जरा थोड़ी फास्ट हो जाती है। उन्होंने कहा कि होटलों के खाने बनाने की क्रिया में सामग्री का शोधन नहीं होता, वनस्पति काय के साथ त्रस जीव की पीस जाते हैं। खाना मन भावन हो सकता है पर फ्रेश होने की कोई गारंटी नहीं है। बासी भी हो सकता है। गाय घास फूस खायेगी पर मांसाहार नहीं करेगी, शेर मांस खायेगा पर घास फूस नहीं खायेगा परन्तु मनुष्य कुछ भी नहीं छोड़ते, फिर पचाने के लिये चूरण साथ रखते हैं। जीने के लिए खाने का लक्ष्य रखे न कि खाने के लिए जीयें। जैसे वाहन में ईंधन भरते समय गैस के लिए कुछ जगह रखते हैं वैसे ही पेट में कुछ जगह खाली रखनी चाहिये। खाना न खाने से कमजोरी नहीं आती, कमजोरी तो मन की है। भोजन को मंत्रोचार से अभिमंत्रित कर सम्मान देते हुए ग्रहण करें, विवेक पूर्ण खाये पेट किराये का नहीं है। कम खाओ, गम खाओ, नम जाओ।
साध्वी वीना ने अन्तगढ़ दशा सुत्र के छठे, सातवें व आठवें वर्ग का वाचन करते हुए अतिमुक्त कुमार, अलक्ष राजा श्रेणिक राजा की नन्दा आदि तेरह रानियों आदि के चरित्र के बारे में बताया।
धर्मसभा में संस्कृति एवं धरोहर संरक्षण राज्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह जाड़ावत, नगर परिषद सभापति संदीप शर्मा ने भी अहिंसा एवं क्षमा विषय पर बोलते हुए तपस्वियों के तप की अनुमोदना की। पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रमेश नाथ योगी, नगर कांग्रेस अध्यक्ष प्रेम प्रकाश मूंदड़ा, मनोनीत पार्षद अनिल भड़कत्या, शहर कांग्रेस प्रवक्ता राजेश सोनी भी अपने साथियों सहित उपस्थित थे। महिला मण्डल अध्यक्ष सरोज नाहर ने बताया कि दीपिका जैन ने 8 एवं रिंकु भड़कत्या, आशा कोठारी, नीलू बड़ाला, पंकिता नाहर, लक्षिता कर्णावट, धर्मवीर कोठारी, अमित संचेती, रीतिका नाहर ने 7 दिन की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। श्री संघ द्वारा उनका सम्मान किया गया। श्री संघ द्वारा तपस्वी तप अनुमोदना स्वरूप चैबीसी गायन का भी आयोजन किया गया। चन्दनबाला महिला मण्डल द्वारा प्रवचन श्रवण विषय पर एक लघु नाटिका का मंचन किया गया।

संघ अध्यक्ष लक्ष्मीलाल चण्डालिया ने बताया कि 1 सितम्बर गुरूवार को प्रातः 6ः30 बजे क्षमापना सभा और उसके बाद सामूहिक पारणक का आयोजन रखा गया है। सायंकालीन प्रतिक्रमण एवं रात्रिकालीन पौषध व्यवस्था खातर महल, नये स्थानक, मीरानगर स्थानक व शांति भवन में रखी गई है।

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