वीरधरा न्यूज़।आकोला@ श्री शेख सिराजुद्दीन।
आकोला। जैविक कृषि की उन्नत तकनीकें, प्रदर्शनी एवं वैज्ञानिक संवाद पर किसान मेला का आयोजन आकोला क्षेत्र के दौलतपुरा गांव में किया गया, किसानों को दी कई जानकारियां।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के तहत जैविक खेती पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती तकनीकें, प्रदर्शनी एवं वैज्ञानिक संवाद पर किसान मेला का आयोजन गांव दौलतपुरा में किया गया। जिसमें गांव बड़वई, दौलतपुरा, भोपाल सागर, ताणा एवं जोयडा के 210 किसानों ने भाग लिया।
डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने ऑनलाइन उद्बोधन देते हुए बताया कि हमारा देश विश्व में कृषि के क्षेत्र में अग्रणी पंक्ति में खड़ा है तथा आज हमारे देश में खाद्यान्नों का उत्पादन लगभग 30 करोड टन तक पहुंच चुका है। पेस्टीसाइड एवं रासायनिक खादों के असंतुलित उपयोग से एलर्जी, डायबिटीज तथा दिल की बीमारियां बढ़ रहीं है। अतः हमें रासायनों खादों पर निर्भरता कम करनी होगी। एक तथा जैविक खेती की ओर अग्रसर होना पड़ेगा तथा यह समय की मांग भी है। मृदा में कम से कम एक प्रतिशत कार्बन की मात्रा जरूरी है जिससे मृदा का स्वास्थ्य सुधार हो सके। उन्होनें कहा कि जैविक खेती में जैव कीटनाशकों का उपयोग, फसल चक्र अपनाना तथा दलहनी फसलों को बढ़ावा देने की जरूरत है । डॉ राठौड ने बताया कि कोविड-19 जैसी महामारी के समय भी कृषि की महत्ता कम नहीं हुई बल्कि जैविक खेती एवं जैविक उत्पादों की मांग देश की ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर भी बढ़ी है तथा हमें देश की प्रगति में योगदान देकर कृषि की वार्षिक वृद्धि दर को 4 प्रतिशत तक ले कर जाने की जरूरत है।
डॉ एंन रविशंकर, राष्ट्रीय समन्वयक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, जैविक खेती नेटवर्क परियोजना, मोदीपुरम, मेरठ ने इस किसान मेले के अवसर पर किसानों को ऑनलाइन संबोधन देते हुए बताया कि जैविक खेती में चार मुख्य बातें आवश्यक है जैसे तकनीकी पैकेज, पोषक तत्व प्रबंधन, जैविक उत्पाद विपणन एवं प्रमाणीकरण मान्यता । डॉ रविशंकर ने बताया कि किसानों को अपने खेत का जैविक लेखा-जोखा लिख कर रखना चाहिए तथा प्रमाणीकरण मानकों पर खरा उतर कर अपने उत्पादों को प्रमाणीकरण लेबल लगाकर बाजार में 20 से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहिए ।
डाॅं. शान्ति कुमार शर्मा, अनुसंधान निदेशक ने बताया कि आज के दौर में वैश्विक नारा है कि ‘‘प्रकृति की ओर लौटो‘‘। साथ ही डाॅं. शर्मा ने बताया कि आज के समय की जरूरत है परिवर्तन की जो जैविक खेती के माध्यम से वैश्विक स्तर पर प्रयास जारी है तथा स्वस्थ जीवन की अलख जगाई जा रही है विश्वविद्यालय की इस राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के द्वारा किसानों तक जैविक खेती की तकनीकी पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमारी सोच बदलनी होगी तथा जो समाज, गांव, व्यक्ति, रसायनों की मार से पीड़ित है उन को बचाना होगा तथा जैविक खेती के फायदे सबको बताने होंगे। अतः हमें मृदा सुधार के साथ-साथ स्वास्थ्य सुधार पर ध्यान देना होगा। उन्होंने बताया कि जैविक उत्पादों की मांग को ध्यान में रखते हुए किसान उत्पादन संगठनों का निर्माण करना होगा इस प्रयास में विश्वविद्यालय स्तर पर किसानों की तकनीकी मदद की जा सकती है। डॉ शर्मा ने सभी किसानों का आभार जताते हुए बताया कि गांव दौलतपुरा के सरपंच एवं प्रगतिशील किसान भैरू लाल जटिया ने पूरे क्षेत्र में जैविक खेती के अंतर्गत नए आयाम प्रस्तुत किये है तथा किसानों की आमदनी बढ़ानें में मील का पत्थर साबित होगा ।
डॉ संपत लाल मूंदड़ा, निदेशक, प्रसार शिक्षा ने उद्बोधन देते हुए बताया कि किसानों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण एवं ज्ञान का समुचित उपयोग कर खेती से होने वाली आय को बढ़ाना चाहिए। राज्य सरकार की योजना एवं विश्वविद्यालय के अनुसंधानों का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए । फसल में बीमारियां एवं कीट लगने की परिस्थितियों में अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करना चाहिए ।
डॉ आर ऐ क©शिक, प्रभारी अधिष्ठाता राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने बताया जैविक कृषि का विकल्प न केवल ग्रीन फूड के लिए उपयुक्त है, अपितु बदलते जलवायु, पानी की कमी तथा कृषि में आदानों की बढ़ती लागतों के कारण 21वीं शताब्दी में हमें जैविक कृषि को अपनाना होगा। इसके लिए पोजीटीव साइकोलोजी का विकास करना आवश्यक है। इसके लिए हमें सामाजिक रूप से जागृत होना होगा।
डॉ रेखा व्यास, क्षेत्रिय निदेशक अनुसंधान ने किसानों से संवाद करते हुए जैविक खेती के सिद्धांतों के बारे में किसानों को अवगत करवाया तथा बताया कि प्रकृति का सिद्धांत, सेवा का सिद्धांत तथा विश्वसिनियता का सिद्धांत, जैविक खेती में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। किसानों को इनका पालन करना चाहिए।
इस अवसर पर सह निदेशक अनुसंधान डॉ अरविंद वर्मा ने किसानों को जैविक खेती में खरपतवार प्रबंधन की उन्नत तकनीकों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि जैविक खेती में मल्चिंग तकनीक करना अत्यंत लाभप्रद है तथा बुवाई पूर्व जुताई कर खरपतवारों को नष्ट करना काफी फायदेमंद रहता है
किसानों को जैविक खेती के महत्व, विभिनन उन्नत खादें, बायोपेस्टीसाइड, नाडेप खाद, मृदा स्वास्थ्य कार्ड तथा उन्नत मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन आदि पर डाॅ. अमित त्रिवेदी, आचार्य (पादप रोग), डाॅत्र गजानन्द जाट, सहायक आचार्य (मृदा विज्ञान), डाॅ. रामस्वरूप चैधरी, सहायक आचार्य (सस्य विज्ञान), डाॅ. के. डी. आमेटा, सहायक आचार्य (बागवानी) तथा डाॅ. अनिल व्यास, सहायक आचार्य (कीट विज्ञान), संबंधित वैज्ञानिको द्वारा व्याख्यान दिये गये। किसान मेले में प्रगतिशील किसानों ने वैज्ञानिक संवाद में सक्रिय रूप से भाग लेकर मेले में लगाई गई जैविक उत्पादों की प्रदर्शनी से भी लाभ उठाया तथा विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने भोपाल सागर क्षेत्र के किसानों की लगन एवं परिश्रम एवं जैविक खेती के प्रति रुचि को देखते हुए इस एक दिवसीय किसान मेले में क्षेत्र के 5 किसानो को उनके उत्कृष्ट कार्य करने हेतु प्रशंसा पत्र एवं ट्रॉफी देकर सम्मानित किया गया। कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जैविक खेती के अंतर्गत किए जा रहे नवीन अनुसंधानों से जुड़ी सभी जानकारियां और किसानों से संवाद करते हुए इस किसान मेले का संचालन डॉ रोशन चैधरी, सहायक आचार्य एवं आयोजन सचिव ने किया तथा डॉ हरिसिंह सहायक प्रोफेसर एवं आयोजन सचिव ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।