Invalid slider ID or alias.

शिक्षकों को अब चाणक्य बनना होगा:डॉ रवीन्द्र कुमार उपाध्याय।

वीरधरा न्यूज़।निम्बाहेड़ा@डेस्क।

निम्बाहेड़ा।वर्तमान वैश्विक परिदृश्य , आतंकी शक्तियों के विस्तार , भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के शत्रु राष्ट्रों में परिवर्तन और भारतीय समाज राजनीति में सत्ता प्राप्ति की तीव्र अनैतिक लालसा में धृष्टता पूर्वक राष्ट्र विरोधी शक्तियों से गठबंधन जैसी अराजक , घातक एवं विस्फोटक स्थितियों को देखते हुए भारत के भविष्य को सुरक्षित व स्वर्णिम बनाने के लिए अब आवश्यक हो गया है कि आज के शिक्षकों को एक राजकीय लोक सेवक शिक्षक के साथ-साथ गुरुत्तर दायित्वों को स्वैच्छिक रूप से ग्रहण करते हुए आचार्य चाणक्य की भूमिका का निर्वाह करना चाहिए और विश्वामित्र , वशिष्ठ , सांदीपन , समर्थ रामदास आदि बनकर राम , कृष्ण , चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त , शिवाजी , आदि का निर्माण अपने अपने विद्यालयों में करना चाहिए। ” घर घर से अफ़ज़ल निकलेगा ” जैसे राष्ट्र विरोधी व समाज को भयभीत करने वाले नारे लगाने वालों को चेतावनी देना होगी कि जिस घर से अफ़ज़ल निकलेगा,उस घर के सामने शिवाजी खड़ा मिलेगा ।
एक ओर जहां कोविड संक्रमण रोकने के लिए विद्यालयों में विद्यार्थियों
की आवाजाही प्रतिबंधित है , तो दूसरी ओर ऑनलाइन शिक्षण कार्य के चलते कुछ सामंती प्रवृत्ति के लाट साहब जैसे अधिकारी शिक्षकों को गैर
शैक्षणिक कार्यों में नियोजित करने को अपनी शान , प्रशासन की कुशलता और भारी-भरकम सरकारी वेतन की उपयोगिता समझते हैं । ऐसी परिस्थितियों में शिक्षकों को स्वयं अपनी गरिमा बनानी होगी।
यह राजस्थान के शिक्षकों का सौभाग्य है कि उन्हें श्रीयुत श्री गोविंद
सिंह डोटासरा जैसा शिक्षक हितेषी शिक्षा मंत्री मिला है जो उनकी शिक्षकीय पीड़ा को समझता भी है , उन्हें सुनता भी है और उनकी समस्याओं के निराकरण में सदैव तत्पर भी रहता है । कई बार हमने देखा है कि कोरोना काल में कलेक्टर्स एवं उपखंड अधिकारियों द्वारा लाट साहब बनकर शिक्षकों को उनकी गरिमा से निम्न स्तर के शैक्षणिक कार्यों में लगाए जाने पर शिक्षा मंत्री
डोटासरा द्वारा तुरंत ऐसे बेतुके आदेशों को निरस्त कराया गया ।
इसके विपरीत शिक्षकों ने वह दौर भी देखा है, जब राजस्थान के शिक्षा
विभाग को एक ही लाट साहब की सामंती प्रवृत्ति के भरोसे छोड़ दिया गया और जब शिक्षक अपनी परियोजनाओं का ज्ञापन सूबे के तत्कालीन हाकम को देते थे, तो शिक्षकों की परिवेदनाएं केवल अंगुलियों और आंखों के इशारों से ही नकार दी जाती थी।
खैर वह सामंती दौर बदल चुका है । किंतु आज के भारतीय समाज का समग्र मूल्यांकन करने पर ज्ञात होता है कि अब राष्ट्र समाज में सत्ता व
प्रभुत्व प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा के धृतराष्ट्रीय मोह में अनेक राजनैतिक दल और व्यक्ति अनैतिक व राष्ट्र विरोधी शक्तियों से गठबंधन
करने में भी हिचक महसूस नहीं कर रहे हैं ।
भारतीय समाज और राष्ट्र की परिस्थितियां इतनी विकट एवं भयावह हो गई है कि सत्ता प्राप्ति के लिए अभिव्यक्ति की आजादी व लोकतंत्र की दुहाई के नाम पर खुल्लम-खुल्ला सरेआम राष्ट्र विरोधी तत्वों को संरक्षण ही नहीं दिया जा रहा है , बल्कि उनके सहयोग से समाज का धार्मिक , जातीय और वर्गीय ध्रुवीकरण कर सत्ता प्राप्ति के कुत्सित षड्यंत्र किए जा रहे हैं । भारत में आज राजनीतिक दलों को सत्ता प्राप्ति कराने के लिए चुनावी कंपनियां बाज़ार में आ गई है , जो पर्दे के पीछे राजनीतिक दलों से सत्ता की मलाई खाने और शासन की चासनी चाटने की गुप्त सौदेबाज़ी कर के उस राजनीतिक दल को आम चुनाव में जीता देते हैं ।
आज भारत में एक ओर ऐसे समाज विरोधी और देशद्रोही वामपंथी विद्वान
कालनेमि की तरह साधु का बाना पहन कर भारतीय समाज को धर्म निरपेक्षता, समाजवाद , मानवता , मानवाधिकारों आदि के नाम दिग्भ्रमित कर रहे हैं , तो दूसरी ओर भ्रष्ट राजनेता मारीच की तरह स्वर्ण मृग बनकर स्त्रियों के साथ-साथ युवाओं को रोजगार व सत्ता में भागीदारी का दिवास्वप्न दिखा रहे हैं। ऐसे सत्ता पिपासु राजनीतिज्ञों के लिए राष्ट्र समाज से पहले परिवार का विकास है, वोटबैंक का तुष्टीकरण है, जातिवाद है, क्षेत्रवाद है, भाषावाद है । आज संवैधानिक सभाओं , संस्थाओं , संसद एवं विधान सभाओं में विद्वानों के साथ साथ राहु जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग भी जनप्रतिनिधि का छद्म वेश धारण कर सत्ता का अमृतपान करने के लिए पर्दे के पीछे बैठे हैं । शिक्षकों को यह सब षड्यंत्र अपने विद्यार्थियों को
बताने होंगे , ताकि वे विद्यार्थी मुफ्त के लोकलुभावन चुनावी वादों के
व्यामोह में दिग्भ्रमित होकर राष्ट्रीय सुरक्षा को ना भूल जाए ।
शिक्षकों को भारतवर्ष की वर्तमान देशकाल परिस्थितियों पर विचार मंथन
करते हुए अपने वैचारिक अमृत से आने वाले कल की युवा पीढ़ी और
विद्यार्थियों को अमृत पान कराना चाहिए , ताकि आज का विद्यार्थी कल के भारत का अमृत पुत्र नागरिक बन कर भारत को विश्व गुरु के पद पर आसीन कर सके । आज शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों में ” वयं अमृतस्य पुत्रः ” का भाव जागृत करना ही होगा।
आज भले ही विद्यार्थियों के अभाव में विद्यालय सूने पड़े हो , किंतु
मल्टीमीडिया और ऑनलाइन तकनीकी के कारण आज का प्रत्येक विद्यार्थी अपने शिक्षक के संपर्क में है । आज भी विद्यार्थी अपने माता पिता और अभिभावक के स्थान पर अपने शिक्षकों की सलाह को प्राथमिकता देता है । इसलिए शिक्षकों को चाहिए कि वह अपने शिक्षार्थियों में राष्ट्रीयता , नैतिकता, सामाजिकता और भाईचारे के ऐसे संस्कार विकसित करें कि वर्तमान भारत में जो वैचारिक असहिष्णुता , वर्गभेद , जातिगत भावनाएं , धार्मिक कट्टरता ,
क्षेत्रवाद , भाषावाद , ऊंच-नीच की प्रवृतियां और राष्ट्र विरोधी नेतृत्व
उभर रहा है , उसका प्रतिकार कर के विद्यार्थी भारत में सामाजिक समरसता की सुरसरि प्रवाहित कर सकें।
यह सत्य है कि कानून या डंडे और तलवार के बल पर आम आदमी और आने वाली पीढ़ी में कभी भी राष्ट्रीयता और देश प्रेम की भावना का विकास नहीं किया जा सकता है । इन सब के लिए एक शिक्षक और विद्यालय आवश्यक ही नहीं, बल्कि अपरिहार्य है।
जिस प्रकार आचार्य चाणक्य ने भोग विलास और अय्याशी में डूबे नंद वंश का समूल नाश करने के लिए समाज के पिछड़े व दलित वर्ग की दासी मोरी के पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य को नैतिक , शारीरिक एवं बुद्धि बल से परिपक्व कर भारत का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया , उसी प्रकार आज भारत की सामाजिक, राजनीतिक , आर्थिक , धार्मिक व सांस्कृतिक पतनकारी परिस्थितियों को देखते हुए और वर्तमान शिक्षकों को आचार्य चाणक्य बन कर उनके विद्यार्थियों में
उग्र राष्ट्रीयता के साथ-साथ उच्च स्तर की नैतिकता , समन्वयता ,
सामाजिकता और दलितों के साथ भाई चारे जैसे संस्कार और विशेषताएं विकसित करना होगी ताकि वे विद्यार्थी आने वाले कल को बड़े होने पर सुयोग्य एवं राष्ट्रवादी नागरिक बनकर राजनीतिक , आर्थिक , धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत के पैरोकार बन सके और भारत को विश्व गुरु बना सके।
आज शिक्षक को विश्वामित्र बन कर अपनी समस्त गुप्त शक्तियां , शक्तिशाली मंत्र, यंत्र और शक्तियां आदि राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम रूपी योग्य एवं समन्वयकारी विद्यार्थियों में हस्तांतरित करनी होंगी , ताकि समाज
में आतंक और भय का पर्याय बनी ताड़काओं का वध किया जा सके और संतों व सज्जनों को अकारण सताने वाले खर दूषण जैसे राक्षसों के साथ साथ अत्याचार अनाचार के पर्याय बने रावण जैसे आतताईयों का विनाश किया जा सके।
आज आवश्यकता है कि भारतीय समाज में शिक्षकों द्वारा एक बार फिर अशफाक उल्ला खान , भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद , सैनिक हमीद , एपीजे अब्दुल कलाम जैसे देशभक्त नागरिक और चंद्रगुप्त जैसे चक्रवर्ती सम्राट तैयार किए जाए । इन सब के लिए शिक्षकों को भागीरथ बन कर अपने-अपने विद्यालयों और कक्षा कक्षों में राष्ट्रीयता व समन्वय की सुरसरि प्रवाहित करनी होगी ।
जिस तरह से देश के बाहर एक-एक करके हमारे पड़ोसी राष्ट्र शत्रु राष्ट्र
में परिवर्तित होते जा रहे हैं और देश के भीतर हमारे गुप्त शत्रु लोगों
की क्षेत्रीय, जातीय , धार्मिक , भाषायी और मजहबी भावनाएं एक गुप्त षड्यंत्र के तहत उभार रहे हैं , वह भारत के स्वर्णिम भविष्य के लिए उचित एवं अनुकूल नहीं है , बल्कि देश को तोड़ने की आधारशिला के रूप में तैयार की जा रही है। विडम्बना है कि पूर्वोत्तर सहित कश्मीर , पंजाब , केरल आदि में छिपे आस्तीन के जहरीले सांपों को हम लोकतंत्र के नाम पर जानबूझकर शिव की भांति गले में लटकाए बैठे हैं। अब समय आ गया है इन जहरीले नागों की समाप्ति के लिए जनमजेय की भांति नागयज्ञ प्रारम्भ किया जाए , ताकि एक बार फ़िर हस्तिनापुर व उसके शासकों को तक्षक नागों से बचाया जा सके।
लोकतंत्र में मजहबी, जातीय , क्षेत्रीय और भाषायी आधार पर एकमुश्त वोट
बैंक का ध्रुवीकरण कर संसद एवं विधान सभा में निर्वाचित होकर बैठे ऐसे राष्ट्रविरोधी तथाकथित नेताओं को जो माँ भारती को गाली देते हैं , भारतमां को डायन कहते हैं और हमारे ही शत्रु राष्ट्रों से मिलकर देश के विरुद्ध षड़यंत्र करते हैं , इन सभी का कच्चा चिट्ठा शिक्षकों को अब अपने विद्यार्थियों के सामने खोलना होगा । हद तो तब हो जाती है , जब ” भारत
तेरे टुकड़े होंगे ” जैसे नारे लगाने वाले और लोकतंत्र में अभिव्यक्ति के नाम पर इन्हें बचाने वाले देशद्रोही व भ्रष्टाचारी राजनेता भी भारत कीलचर न्याय व्यवस्था का फायदा उठाते हुए बाइज्जत बरी हो जाते हैं औरउन्हें गिरफ्तार करने वाले ईमानदार पुलिसकर्मी अधिकारी जहर का घूंट पीकर रह जाते हैं ।
आज के भारत की विडंबना है कि पांच वर्ष की अस्थाई सत्ता के लालच में अपराधी व दंगा फसाद करने वाले घुसपैठियों का ही हमारे राजनीतिक दल डंके की चोट पर समर्थन करते हैं और समाज विरोधी रोहिंग्या घुसपैठियों को पकड़ कर बाहर करने वाले सुरक्षा बलों और सैनिकों को चुनोती देते हैं । आम आदमी भी तब हताश और निराश हो जाता है , जब माननीय न्यायालय भी इन अर्बन नक्सलियों के कुतर्कों में उलझ कर आतंकियों , उपद्रवियों और घुसपैठियों को मानवाधिकार के नाम पर बाइज्जत बरी कर देता है ।
हद तो तब हो जाती है जब मुफ़्त की बिजली , पानी , राशन आदि सामान्य सुविधाओं के लालच में देश की राजधानी के सबसे शिक्षित व संस्कारित लोग भी अर्बन नक्सलियों को वोट देकर भारत मां की छाती को तार-तार कर देते हैं ।
आज भारतवर्ष में कोई मजहब के नाम पर तलवारें खींच रहा है , तो कोई धार्मिक झंडे लगाने के नाम पर समाज का माहौल बिगाड़ रहा है , तो कोई वैचारिकता के नाम पर समाज में वर्ग संघर्ष पैदा कर रहा है और हमारी सरकारें चुपचाप आंखें बंद कर के ऐसे समाज विरोधी लोगों से अनजान बन बैठी है। भारत की ऐसी विकट एवं भयावह स्थिति में आशा की किरण एकमात्र भारतीय शिक्षक ही है।
बांग्लादेशी घुसपैठियों और बर्मा से भागकर आये हुए विदेशी रोहिंग्या मुसलमानों का खुलेआम समर्थन करने वाले तथाकथित राजनेता भूल जाते हैं कि हमारे देश में इन घुसपैठियों से भी बदतर जिंदगी हमारे दलित भाई बहन जी रहे हैं , जिनके लिए दो जून की रोटी भी बमुश्किल संभव होती है । दूसरी ओर अपनी भूख मिटाने के लिए और भारत में मुसलमानों को बदनाम करने के लिए यह बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या चोरी , हत्या , दंगा फसाद आदि में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और भारतीय मुसलमानों को बदनाम करते हैं।
रोहिंग्याओं की राष्ट्र विरोधी व समाज विरोधी करतुतों के बावजूद कुछ राजनीतिक दल इन रोहिंग्याओं का खुलेआम समर्थन करते हैं और इन्हें भारत से बाहर निकालने के सरकारी प्रयासों का विरोध करते हैं । शिक्षकों को आज भारत की वास्तविक परिस्थितियों का आकलन करते हुए देवासुर संग्राम का स्मरण करना चाहिए और स्वयं को देवताओं के गुरु बृहस्पति की श्रेणी में रखना चाहिए । क्योंकि देवासुर संग्राम कभी ना खत्म होने वाली ऐसी लड़ाई है, जो हर युग में प्रत्येक देश काल परिस्थितियों में हर जगह चलती रहती
है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 साल बाद भी भारत की विडंबना है कि हमारे विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में आज भी मैकाले शिक्षा की तर्ज पर विद्यार्थियों में भारतीय संस्कृति और भारतीय सामाजिक परंपराओं के प्रति घृणा और हीन भावना पैदा करने वाले तथ्य पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाए जा रहे हैं। एनसीईआरटी की पुस्तकें इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है । ऐसी स्थिति में शिक्षकों को चाहिए कि वे रामकृष्ण परमहंस बनकर अपने विद्यार्थियों शिष्यों को नरेंद्र से विवेकानंद बनाएं जो विश्व में भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की अलख जगाए ।
भले ही हमारी उग्र राष्ट्रीयता को वैश्विक पटल पर समर्थन नहीं मिले ,किंतु भारत की वर्तमान बाहरी और भीतरी स्थितियों को देखते हुए आज अपरिहार्य हो गया है कि भारत के शिक्षक सरकारी पाठ्यक्रम और निर्धारित सरकारी पाठ्य पुस्तकों से परे जा कर भारत के गौरवमयी पौराणिक व ऐतिहासिक महापुरुषों व घटनाओं का स्मरण विद्यार्थियों को कराते हुएउन्हें भविष्य के सशक्त , समर्थ व राष्ट्रवादी नागरिक के रूप में तैयार करें ताकि सशक्त एवं समर्थ विश्वगुरु भारत के द्वारा विश्व शांति की
बुनियाद रखी जा सके ।

डॉ रवीन्द्र कुमार उपाध्याय
ACBEO
निम्बाहेड़ा ,312601

Don`t copy text!