वीरधरा न्यूज़।चित्तोड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़। शांति भवन सेंती में सामायिक विषय का प्रतिपादन करते हुए श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डाॅ.शिवमुनि की आज्ञानुवर्ती महासाध्वी उपप्रवर्तिनी श्री वीरकान्ता जी की सुशिष्या डाॅ. अर्पिता जी म.सा. ने धर्मसभा में ग्वारहवें पाप द्वेष को निरंतरता में परिभाषित करते हुवे द्वेष और इर्ष्या में अंतर करते हुए बताया कि द्वेष का अर्थ किसी को अपना प्रतिद्वंदी समझकर उससे घृणा करना, नफरत करना, ना पसंद करना, ना समझना आदि है इसमें किसी को हानि पहुंचाने का भाव होता है।जबकि इर्ष्या में ऐसा नहीं होता है। इसमें शत्रुता आदि के भाव भी की प्रधानता होती है। इसलिए विरोध वैमनस्य, शत्रुता आदि के कारण किसी का बनता काम बिगाड़ देना भी द्वेष कहलाता है। जो लोग द्वेषवश दूसरों को कटु वचन बोलते हैं वे अपना पाप बढ़ाते हैं। ऐसे लोग अपनी ही प्रगति में अवरोध पैदा करते हैं। द्वेष समाप्त करने के दो ही उपाय हैं सज्जनों की संगति एवं द्वेषी के सामने प्रतिक्रिया नहीं देना एवं अपने आप में समता भाव पैदा करना है। द्वेष का जन्म इर्ष्या से होता है, द्वेष स्वयं के शरीर में गुस्से के परमाणु पैदा करते हैं।
संघ के मंत्री दिलीप जैन ने बताया कि नवकार मंत्र की कड़ी में बुधवार का जाप वरिष्ठ श्रावक छितर मल, संजीव कुमार, अर्हंम चंडालिया के सेती मेन रोड पर बैंक ऑफ बड़ौदा के ऊपर स्थित आवास पर प्रातः 7:15 से शाम 7.15 के बीच होगा। धर्म सभा का संचालन अभय संजेती ने किया।