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चित्तौडग़ढ़-अजोला उत्पादन एवं पशुओ को खिलाने के महत्व पर प्रशिक्षण का आयोजन।

 

वीरधरा न्यूज़। चित्तौडग़ढ़@डेस्क।

चित्तौडग़ढ़।महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अन्तर्गत अनुसंधान निदेशक मे जनजातीय-उप योजना (TSP-ICAR) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित अजोला उत्पादन एवं पशुओ को खिलाने का महत्व पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केन्द्र चित्तौडगढ पर 1 मार्च को आयोजन किया गया। कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा आयोजित यह प्रशिक्षण अजोला उत्पादन एवं पशुओ को खिलाने के महत्व पर आधारित था जिसमें बड़ीसादड़ी पंचायत समिति के जनजाति क्षेत्र के पायरी, खोखरिया खेड़ी, ढ़िकरिया खेड़ी एवं लालपुरा आदि गांवो से 50 कृषक एवं कृषक महिलाओ ने भाग लिया।
केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. रतनलाल सोलंकी, ने किसानों कों बताया कि अजोला पशुओ का पूरक आहार है, इसे हरे चारे की एव दाने की बचत होती है। अजोला को खिलाने से पूर्व 1 सेमी बड़े साइज के छेद किये हुये ट्रे (छलनी) में एकत्र करना चाहिये ताकि पूरा पानी झड़ जाये। ट्रे को एक बाल्टी के ऊपर रखकर पानी से अच्छे से धोना चाहिये ताकि पानी व गोबर की गंध निकल जाये। बाल्टी में एकत्रित पानी को पुनः गड्ढे में डाल देना चाहिये। अजोला को पशु आहार के साथ मिलाकर पशु को खिलाना चाहिये। इसे उत्तम पौष्टिक आहार के रुप में विकसित किया जा सकता है। ग्राम में घर या बाड़ी में किसी भी स्थान में अजोला का उत्पादन किया जा सकता है। अजोला खिलाने से पशुओं का स्वास्थ्य एवं दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ पशु के शारीरिक विकास एवं बांझपन निवारण में सहायक होती है।
डॉ. मुकेश शर्मा, प्रभारी, पशु विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ ने प्रशिक्षण के दौरान किसानो को बताया कि अजोला में प्रोटिन आवश्यक एमिनो अम्ल एवं विटामिन एवं खनिज जैसे कि कैल्सियम, फॉस्फोरस, पोटाश, लोहा, तांबा, मैग्निशियम इत्यादि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है। इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमिनोअम्ल, जैव सकिय पदार्थ एवं जैव पोलिमर्स, इत्यादि पाये जाते है। अजोला में कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यंत कम होती है। इसकी संरचना इसे अत्यन्त पौष्टिक एवं असरकारक पशु आहार बनाती है। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक एवं लिग्निन की मात्रा कम होती है। दुधारू पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ डेढ़ से दो किलोग्राम अजोला प्रतिदिन की दर से दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
डॉ. अंकलेश कटारा, टिचिंग एसोसिएट, पशु अनुसंधान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ ने कहा कि अजोला पशुओं के लिए सदाबहार पौष्टिक आहार प्रदान करने की क्षमताएँ विद्यमान है। अजोला जल की सतह पर तैरने वाला एक फर्न है। इस नीलहरित शैवाल को (एनाबिना अजोली) के नाम से जाना जाता है। यह अद्वितीय पारस्परिक सहजैविक संबंध अजोला को एक अद्भुद पौधे के रूप में विकसित करता है, जिसमें कि उच्च मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध होता है।
केंद्र के संजय कुमार धाकड़, तकनीकी सहायक ने कृषक एवं कृषक महिलाओ को अजोला इकाई का भ्रमण कराकर अजोला तैयार करने की प्रायोगिक जानकारी दी तथा अन्त में प्रशिक्षण में भाग लेने वाले जनजाति क्षेत्र के कृषक एवं कृषक महिलाओ को धन्यवाद अर्पित किया।

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