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डिडवाना-जो श्राप को वरदान में बदले उसी मानव का जीवन सार्थक है, अन्यथा परेशानियां कभी दूर नहीं होगी:गोपाल भैया।

वीरधरा न्यूज। नावा@ श्री श्यामसुन्दर प्रजापत मीठड़ी।


डीडवाना/कुचामन।मीठड़ी कस्बे के समीपस्थ ग्राम लीचाणा में आयोजित विशाल धार्मिक कार्यक्रम बाबा लक्ष्मण दास महाराज के 151वें जयंति महोत्सव के लपक्ष्य में सातवें दिन वृंदावन कथावाचक ने कथा का रसास्वादन कराते हुए बताया कि श्रृंगी अपने पिता ऋषि शमीक के आश्रम में अन्य ऋषिकुमारों के साथ रहकर अध्ययन कर रहे थे। एक दिन की बात है कि सब विद्यार्थी जंगल गए हुए थे।आश्रम में शमीक ऋषि समाधि में अकेले बैठे हुए थे। तभी अचानक वहां प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित पहुंचे। वह प्यास से बहुत व्याकुल थे। आश्रम में पानी खोजने लगे। जब उन्हें कहीं से पानी नहीं मिला तो उन्होंने समाधि में बैठे शमीक ऋषि को प्रणाम कर विनम्रता से कहा- मुझे प्यास लगी है, कृपा मुझे पानी दीजिए। राजा के दो-तीन बार कहने पर भी ऋषि ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। उन्हें बहुत बुरा लगा और तो और उन्हें लगा कि ऋषि ध्यान का ढोंग कर रहे हैं। क्रोध में आकर राजा परीक्षित ने मरा सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया । ऋषि पुत्र श्रृंगी को बहुत क्रोध आया। उन्होंने हाथ में पानी लेकर परीक्षित को श्राप दे दिया कि मेरे पिता का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से होगी। इसके बाद ऋषिकुमारों ने ऋषि शमीक के गले से सांप निकाला जिस बीच शमीक की समाधि टूट गई। शमीक ऋषि ने पूछा, क्या बात है। तब श्रृंगी ने सारी बात बताई।शमीक बोले, बेटा, राजा परीक्षित के साधारण अपराध के लिए तुमने जो सर्पदंश से मृत्यु का भयंकर शाप दिया है, यह बहुत बुरा है। राजा परीक्षित को राजभवन पहुंचते-पहुंचते अपनी गलती का अहसास हो चुका था।राजा परीक्षित को ज्ञात हुआ कि आज से सातवे दिन तक्षक नाग के डसने उसकी मौत होगी। उसने अपना जीवन को सात दिन में भगवत प्राप्ती में लगा दिया। सारा राजपाट त्याग कर नियमानुसार भागवत श्रवण की। यही भागवत का सार है कि मानव को भगवान की शरण जाने से जीवन का कल्याण होगा। शरीर जन्मता व मरता है। आत्मा तो अजर-अमर है। उसी मनुष्य का जीवन सार्थक है तो श्राप को वरदान में बदले, अन्यथा इस आधुनिक युग समस्या कभी कम नहीं हो सकती।

 

भागवत कथा सात दिन ही क्यो सुनाई जाती है

 

सात दिन तक अपना पूरा समय ईश्वर-चिंतन में लगाएं, ताकि आपको मोक्ष मिल सके। ये सुनकर राजा को संतोष हुआ कि मेरे द्वारा हुए अपराध के लिए मुझे उचित दंड मिलेगा। इसके बाद राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास पहुंचे व उन्हें भागवत कथा सुनाने के लिए कहा। शुकदेव ने परीक्षित को सात दिन भागवत-कथा सुनाई। कहा जाता है कि तभी से भागवत कथा सुनने की परंपरा प्रारंभ हुई थी।

इस दौरान पांचौत कुंड स्थान के मंहत हरिदास महाराज का पर्दापण हुआ। उपस्थित श्रद्धालुओ ने महाराज का आर्शीवाद लिया। साथ उत्सव समिति सदस्यो ने मंहत श्री का स्वागत सम्मान भी किया। स्टूडेंट क्लब सचिव दशरथ सिंह राठौड़ ने बताया कि 18 फरवरी रविवार को श्रीमद्भागवत कथा, मूल पाठ व अन्य धार्मिक कार्यक्रमो का समापन होगा। साथ ही दोपहर बाद विशाल भंडारे का आयोजन होगा। इस दौरान विरक्त संत श्री लाडलीदास आश्रम वृंदावनधाम, पुजारी अंकित गौतम वृंदावनधाम, सेवानिवृत डिप्टी कमांडेंट रिछपाल सिंह, सेवानिवृत्ति नेवी चीफ़ पेटी अधिकारी मनोहर सिंह राठौड़, सेवानिवृत्त के.रि.पु. ईस्पेक्टर छोटूसिंह,राम बाबू सिंह वृंदावन धाम, नावां स्टूडेंट्स क्लब सचिव दशरथ सिंह राठौड़, उत्सव समिति कोषाध्यक्ष सोहन लाल सेन, विकास समिति अध्यक्ष गिरधारी सिंह, भाजपा युवा मोर्चा जिला महामंत्री देवेन्द्र सिंह राठौड़, गुलाब सिंह भांवता, मोहन सिंह, जुगलकिशोर सिंह, प्रभु सिंह मिठड़ी, विजय सिंह पंवार, मंदिर पुजारी राम शर्मा, अमित शर्मा, बाबू दशरथ सिंह राठौड़, भंवर सिंह,पृथ्वी सिंह बंजारी, रघुवीर सिंह, शक्ति सिंह, स्नेह सिंह, बलवीर सिंह, परमेश्वर सिंह भाटी, नटवर पाराशर और महिला मंडल में पुष्पा कंवर, आनंद कंवर, प्रेम कंवर, नितेश कंवर, प्रकाश कंवर, किरण कंवर, रेनू कंवर, दातार कंवर, मंजू पाराशर, अनुप राठौड़ कलकत्ता, लक्षिता राठौड़ सहित अन्य सैकड़ो ग्रामीण व महिलाए मौजूद थी।

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