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निम्बाहेड़ा ब्रह्माकुमारीज के राजयोग सेवाकेंद्र पर भगवान भाई बोले- क्रोध से मनुष्य का विवेक नष्ट होता है।

 

वीरधरा न्यूज।निम्बाहेड़ा@ सुरेश नायक।

निम्बाहेड़ा।क्षणिक क्रोध या आवेश से मनुष्य को कभी न सुधरने वाली भूल कर बैठता है। क्रोध से मानसिक तनाव बढ़ता है। क्रोध से मनुष्य का विवेक नष्ट होता है। उक्त उदगार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंट आबू राजस्थान से आये हुए बी के भगवान भाई ने कहे वे निम्बाहेड़ा स्थित स्थानीय ब्रह्माकुमारीज के राजयोग सेवाकेंद्र पर एकत्रित ईश्वर प्रेमी भाई बहनों के लिए क्रोध मुक्त जीवन हेतु सकारात्मक चिंतन विषय पर बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा कि मन में चलने वाले नकारात्मक विचार, शंका, कुशंका, ईर्ष्या, घृणा, नफरत अभिमान के कारण ही की उत्पति होती है। क्रोधमुर्खता से शुरू होता और कई वर्षो के पश्चाताप से उसका अंत होता है। क्रोध के कारण मनोबल और आत्मबल कमजोर हो जाता है। क्रोध से दिमाग गरम हो जाता है जिससे दिमाग में विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ उतरते है और इससे ही मानसिक बीमारियां , शरीर की अनेक बिमारिया हो जाती है जीवन में रूखापन आता है। क्रोध से ही आपस में सम्बोधो में कडवाह्ट आती है , मन मुटाव बढ़ जाता है। उन्होंने कहा की क्रोध ही अपराधो के मूल कारण बन जाते है। क्रोध से घर का वातावरण ख़राब हो जाता है और पानी के मटके भी सुख जाते है। जहा क्रोध है वहा बरकत नही हो सकती है। इसलिए वर्तमान में क्रोध मुक्त बनाना जरुरी है। क्रोध करने से ही अनिद्रा, अशांति जीवन में आती है जिससे व्यक्ति नशा व्यसनों के अधिन हो जाता है।
उन्होंने क्रोध मुक्ति बनने के उपाय बताते हुए कहा कि सकारात्मक चिंतन से ही हम सहनशील बन क्रोध मुक्त बन सकते है।सकारात्मक चिन्तन से हमारा मनोबल को मजबूत बन सकता हैं। सकारात्मक चिन्तन द्वारा ही हम क्रोध मुक्त और तनाव मुक्त जीवन जी सकते हैं। सकारात्मक चिंतन से सहनशीलता आती जिससे कई समस्याओं का समाधान हो जाता है। मन के विचारों का प्रभाव वातावरण पेड़-पौधों तथा दूसरों व स्वयं पर पड़ता हे। यदि हमारे विचार सकारात्म है तो उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, उन्होंने बताया कि जीवन को रोगमुक्त,दीर्घायु, शांत व सफल बनाने के लिए हमें सबसे पहले विचारों को सकारात्मक बनाना चाहिए।
भगवान भाई ने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान को सकारात्मक विचारों का स्रोत बतटे हुए कहा कि वर्तमान में हमे आध्यात्मिकता को जानने की जरुरी है आध्यात्मिकता की परिभाषा बताते हुए उन्होंने कहा स्वयं को यर्थात जानना, पिता परमात्मा को जानना, अपने जीवन का असली उद्देश्य को और कर्तव्य को जानना ही आध्यात्मिकता है। आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा सकारात्मक विचार मिलते है जिससे हम अपने आत्मबल से अपना मनोबल बढ़ा सकते है। उन्होंने कहा कि सत्संग से प्राप्त ज्ञान ही हमारी असली कमाई है। इसे न तो चोर चुरा सकता है और न आग जला सकती है। ऐसी कमाई के लिए हमें समय निकालना चाहिए। सत्संग के द्वारा ही हम अच्छे संस्कार प्राप्त करते हैं और अपना व्यवहार सुधार पाते हैं। उन्होंने राजयोग की महत्ता बताई और कहा कि राजयोग के द्वारा ही हम अपने संस्कारों को सतो प्रदान बना सकते हैं। इंद्रियों पर काबू कर सकते हैं। क्रोध मुक्त और तनाव मुक्त रहने के लिए हमें रोजाना ईश्वर का चिंतन, गुणगान करना चाहिए। सकारात्मक चिन्तन से हम जीवन की विपरीत एवं व्यस्त परिस्थितियों में संयम बनाए रखने की कला है।
स्थानीय ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र की संचालिका बी के शिवली दीदी जी ने राजयोग की विधि बताते हुआ कहा कि स्वंम को आत्मा निश्चय कर चाँद, सूर्य, तारांगण से पार रहनेवाले परमशक्ति परमात्मा को याद करना, मन-बुद्धि द्वारा उसे देखना, उनके गुणों का गुणगान करना ही राजयोग हैं। राजयोग के द्वारा हम परमात्मा के मिलन का अनुभव कर सकता हैं । उन्होनें कहा की राजयोग के अभ्यास द्वारा ही हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों पर जीत प्राप्त कर जीवन को अनेक सद्गुणों से ओतपोत व भरपूर कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि भी सद्गुणों के विकास की ओर ध्यान देना चाहिए। वास्तव में आत्मा के पतन का कारण देहभान है। जब मनुष्य का देहभान प्रबल हो जाता है तो वह काम,क्रोध,लोभ, मोह, अहंकार, आदि विकारो के वश में होकर अपनी दिव्य शक्ति में खो देता है। इंद्रियों का गुलाम हो जाता है।तब प्रकृति भी तमो प्रधान हो जाती है। मनुष्य दुखी और अशांत रहता है। उन्होंने कहा अब भक्त की पुकार सुनकर निराकार शिव धरती पर अवतरित हो चुके हैं। उनको सिर्फ भक्ति भाव से याद करने की आवश्यकता है। शिव हमें कर्म गति का ज्ञान और योगाभ्यास का ज्ञान देकर मनोविकारों को जीतने का आदेश दे रहे हैं। जो मनुष्य अपने विकारों को जीतेगा, सद्गुणों को अपनाएगा, वत स्वर्णिम दुनिया में देवपद पाता है।

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