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आकोला-रावण वध की पुरानी परंपरा आज भी बनी हुई है। रावण के टूटे सिर (मुकुट) की मिट्टी को घरो में सहेजकर रखते हैं ग्रामीण।

वीरधरा न्यूज़।आकोला@श्री शेख सिराजुद्दीन।
आकोला। विजय दसमी के पावन अवसर पर रावण परम्परागत तरीके से वध किया गया।
नामदेव विकास समिति के सदस्य ने बताया कि इस वर्ष कोरोना महामारी को देखते हुए रावण का पुतला का दहन नहीं किया गया।
वही कोविड 19 के नियमों की पालना करते हुए कस्बे में शुक्रवार को परम्परागत ढंग से रावण का वध किया गया। पुरानी परंपरा आज भी कायम है। बेडच नदी के तट पर स्थित दशहरा मैदान में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने सूर्य अस्त होते समय बाण पर ध्वजा दंड से प्रहार कर अंहकारी रावण के शीश को धड से अलग कर दिया।
यहाँ पहले से ही ईट सीमेंट से बने रावण का सिर उस पर रखा गया। यहां राम तथा रावण की सेना के बीच संवाद तथा युध्द के बाद राम ने बाण ध्वजादण्ड से प्रहार कर शीश को धड से अलग कर रावण का वध कर दिया।कस्बे के स्थित छिपो का मंदिर से भगवान चारभुजा जी के बेवाण मे विराजमान कर मुख्य मार्गों से होते हुए ढोल के साथ भगवान श्री राम दशहरा मैदान पर राम सेना की टीम पहुंचती हैं। कुछ देर तक संवाद होता है, उसके बाद रावण का सिर गिराया जाता है। उस गिरे हुए सिर के टुकड़े मिट्टी को लोग घरों में ले जाकर रखते है ये परम्परा कई वर्षों से चली आ रही है, जिसे लोग बडी उत्साहित के साथ मनाते है।

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