वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@श्री सत्यनारायण कुमावत।
चित्तौडग़ढ़। शहर में करीब 650 वर्ष पूर्व स्थापित हजारेश्वर महादेव के चमत्कारों की प्रसिद्धि चित्तौडग़ढ़ में ही नहीं देश के अन्य राज्यों में फैली हुई है। किवंदती के अनुसार करीब ११०० वर्ष के पहले इस मंदिर के स्थान पर माली समाज के व्यक्तियों के खेत हुआ करते थे। इन खेतों में कार्य करने के दौरान एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जिसे लोगों ने पूरे धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ यहां स्थापित कर दिया। उस समय यहां घना जंगल हुआ करता था और आने-जाने के लिए मात्र एक पगडंडी ही रास्ता थी। यहां पर मंदिर की स्थापना के पश्चात कई साधु-संत कुछ समय के लिए ठहरा करते थे, जिनके भोजन-प्रसाद की व्यवस्था स्थानीय जनता और राज दरबार की ओर से की जाती थी। पहले इस मंदिर की जमीन करीब 51 बीघा हुआ करती थी, जो कालांतर में घटते हुए 12 बीघा के करीब ही रह गई है।
मंदिर के महंत चंद्र भारती महाराज ने बताया कि वह २००२ में दुर्ग स्थित नीलकंठ महादेव से यहां पर आए थे। उस समय मन्दिर पूरी तरह जीर्ण शीर्ण अवस्था में था, जिसका उन्होने जन सहयोग से पुनरुद्धार करवाया। इसके साथ ही यहां पर एक 2000 स्क्वायर फीट का हॉल संतो के ठहरने के लिए बनाया गया है, जहां पहले टीन शेड लगाया हुआ था। महन्त चन्द्र भारती ने मंदिर के बगीचे को भी विकसित करवा कर एक सुंदर रूप दिया है। मन्दिर परिसर में मौजूद बावड़ी से पहले लोग पानी भरा करते थे, लेकिन अब घर घर नल की सुविधा से यह बावड़ी पेयजल के काम नहीं आ रही है। साधु संतों के साथ ही पशु-पक्षियों की भी सेवा
मंदिर के महंत चंद्र भारती महाराज का कहना है कि मंदिर का सारा काम भक्तों के सहयोग से होता है अभी तक धन के अभाव में मंदिर का कोई कार्य नहीं रुका है। मंदिर की ओर से रोजाना गायों को हरा चारा, 12 पेटी गुड, कबूतरों को बाजरा, श्वानों को दर्जनों पेटी बिस्किट खिलाए जाते हैं। इतना ही नहीं मंदिर में आने वाले दर्जनों साधु-संतों के भोजन प्रसाद की व्यवस्था के साथ ही उन्हें दक्षिणा देकर विदा करने की परंपरा भी कायम है। महाराज ने बताया कि अभी तक किसी से आर्थिक सहयोग की मांग नहीं की गई, भक्तों द्वारा स्वयं ही सहयोग किया जाता है। मंदिर परिसर में ही मंदिर के पूर्व महंत लक्ष्मण आनंद की जीवन्त समाधि स्थापित है। उनके साथ ही दो अन्य अज्ञात संतों की भी जीवंत समाधियां मन्दिर परिसर में मौजूद हैं। इसके अलावा 118 वर्ष पहले का पट्टा भी बना हुआ है जब मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
विशेष चमत्कारी है शिवलिंग, देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु
महंत चंद्र भारती महाराज के अनुसार मंदिर परिसर में स्थित हनुमानजी की प्रतिमा ने 2003 में 72 किलो का चोला छोड़ा था और बाल रूप में प्रकट हो गए थे, परिसर में ही स्थापित गणपति जी ने 2020 में 35 किलो का चोला छोड़ा था। मंदिर में स्थापित यह गणपति सूर्यमुखी होने से विशेष चमत्कारी माने जाते हैं। मंदिर के चमत्कारों की बात करें तो करीब 40 वर्ष पूर्व मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी घनश्याम पुरोहित ने भगवान से कोई चमत्कार दिखाने की बात कही और कुछ ही देर में मंदिर परिसर में मौजूद बावड़ी से एक विशाल सर्प ने दर्शन दिए, जिसे देखकर घनश्याम पुरोहित भयभीत हो गए। इसी तरह दिल्ली के अग्रवाल परिवार के एक श्रद्धालु ने अपने रिश्तेदार के पास २५ से साल से बकाया चल रहे २.५ करोड़ रुपये वापस मिलने की प्रार्थना की तो उनके दिल्ली पहुंचते ही उस व्यक्ति ने उनके सारे रुपये लौटा दिए। इस पर अग्रवाल परिवार ने भगवान के चरणों में २.५ लाख रुपये अर्पित किए। इसके साथ अब हर विशेष अवसर पर अग्रवाल परिवार दिल्ली से चित्तौडग़ढ़ मात्र हजारेश्वर महादेव के दर्शन के लिए पहुंचता है। वहीं मंदिर में आने वाले हजारों श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां पर मांगी गई मनोकामना तुरंत पूरी होती है। इस कारण मंदिर में मुंबई, पुणे, कोल्हापुर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, अहमदाबाद, दाहोद, देवास, इंदौर, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, मैरीलैंड, दुबई, नागालैंड सहित कई दुर दराज के शहरों से सैंकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
श्रीयंत्र पर स्थापित शिवलिंग
इस मंदिर में स्थापित मुख्य शिवलिंग सैंकड़ों वर्ष प्राचीन होने के साथ ही श्री यंत्र पर चंद्राकार बना हुआ है, जिसमें 1000 छोटे-छोटे शिवलिंग भी स्थापित है। इसलिए इस शिवलिंग का विशेष महत्व माना जाता है।