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कमजोर सलाहकार के निर्णय के चलते चंद्रभान सिंह का राजनीतिक भविष्य दांव पर। आक्या को नहीं मिल रहा कृष्ण की तरह मजबूत सलाहकार, दुर्योधन की तरह ले रहे कई कार्यकर्ताओं से राय।

 

वीरधरा न्यूज़। चित्तौडग़ढ़@ श्री अभियंता अनिल सुखवाल।

चित्तौड़गढ़। राजनीति में कहावत है कि जिनके सलाहकार कृष्ण समान मजबूत और कूटनीतिज्ञ होते हैं उनके ही भविष्य के सपने भी साकार होते है जबकि जो राजनीति में दुर्योधन की तरह कईयों से सलाह लेकर भावुकता में निर्णय लेते हैं वे योग्यता रखने के बाद भी हार का मुंह देखते है।
ऐसा ही कुछ राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट वितरण के बाद से दिखाई दे रहा है। चित्तौड़गढ़ जिले में चित्तौड़गढ़ विधानसभा में भाजपा से सबसे मजबूत प्रत्याशी दो बार से लगातार विधायक रह चुके चंद्रभान सिंह का राजनीतिक भविष्य उनका चित्तौड़गढ़ से टिकट कटने के बाद से ही लड़खड़ाता नजर आ रहा है एक ओर चंद्रभान सिंह भावुक होकर राजनीतिक निर्णय ले रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के घर में अंदरखाने जश्न मनाया जा रहा है।
चित्तौड़गढ़ विधानसभा में जहां राजस्थान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी और केन्द्र नेतृत्व ने वसुंधरा खेमें को निपटाने के चक्कर में विद्याधर विधायक एवं पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय भैरुसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी को चंद्रभान सिंह की जगह रिप्लेस करते हुए एक तीर से दो निशाने लगाने का काम कर चुकी है। वसुंधरा को निपटाने के चक्कर में भाजपा राजस्थान में चुनाव से पहले ही अपने जिताऊ उम्मीदवारों की जड़ें खुद ही उखाड़ रही है। तो वहीं ऐसी स्थिति में चित्तौड़गढ़ विधायक चंद्रभान सिंह को राजनीतिक परिचय देते हुए एक मजबूत राजनीतिक सलाहकार की जरूरत है ना कि एक भावुक कर देने वाले की।
चंद्रभान सिंह की राजनीतिक कैरियर की बात करें तो जब उनका टिकट पहली बार विधायक प्रत्याशी के तौर पर अंतिम सूची में जारी किया गया था जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी वर्तमान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी का टिकट काट कर चंद्रभान सिंह को रिप्लेस किया गया था वहीं इतिहास अभी दोहरा कर चंद्रभान सिंह की जगह नरपत सिंह राजवी को रिप्लेस किया गया है लेकिन उस समय की बात करें जब वर्ष 2013 में सीपी जोशी का टिकट काट कर चंद्रभान सिंह को चित्तौड़गढ़ विधानसभा से पहली बार टिकट दिया गया था तब क्या सीपी जोशी ने राजनीतिक भावुकता दिखाई थी? नहीं, उस समय सीपी जोशी ने अनेक सलाहकारों से राय लेने की बजाय कृष्ण समान किसी परिपक्व राजनीतिक सोच से गम्भीरता दिखाते हुए शांति बनाए रखीं उसी परिपक्वता की बदौलत सीपी जोशी बाद में दो बार सांसद और मोदी के करीबी रहते हुए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष बनने में कामयाब हुए।
चित्तौड़गढ़ जिले में एक दूसरे उदाहरण पर बात करें तो सबसे पहले चित्तौड़गढ़ जिले में भाजपा से टिकट कटने पर मजबूत उम्मीदवार कपासन से अर्जुन लाल जीनगर ने बगावती रुख दिखाते हुए वर्ष 2008 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था जबकि उनके सामने भाजपा से बहुत कमजोर प्रत्याशी अंजना पंवार ने मात्र 18722 वोट प्राप्त कर भाजपा की फजीहत करवाई थी लेकिन अर्जुन लाल जीनगर को भी 6654 मतों के साथ हार का मुंह देखना पड़ा वो बात अलग है कि मेवाड़ अंचल की एकमात्र एससी की सीट होने और भाजपा के मजबूत दलित नेता होने से और अर्जुन जीनगर का विकल्प भाजपा के पास नहीं होने से अर्जुन जीनगर को पार्टी को वापस अगले चुनाव में भाजपा से कपासन में अपना चेहरा बनाना पड़ा पिछले चुनाव 2019 में आर एल पी ने अपना प्रत्याशी कपासन से उतारा फिर भी अर्जुन जीनगर ने भाजपा को जीत दिलाई लेकिन यह समीकरण चित्तौड़गढ़ के लिए बेमानी प्रतीत हो रहे हैं।
आज के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए चित्तौड़गढ़ से चंद्रभान सिंह की बात की जाए तो चंद्रभान सिंह को तो क्या राजनीति में प्रतिद्वंद्वी हमेशा मिलते रहे हैं और आगे भी मिलेंगे लेकिन अभी उन्हें भावुक भीड़ की नहीं एक मजबूत राजनीतिक कृष्ण समान सलाहकार की आवश्यकता है उन्हें अभी नरपत सिंह राजवी के समर्थन में लगकर या फिर शांत रहकर अपना राजनीतिक भविष्य बचाने और मजबूत राजनीतिक भविष्य के बारे में रणनीति बनानी चाहिए।
राजस्थान की बात करें तो वसुंधरा को निपटाने के चक्कर में पहले ही पांच साल से विपक्ष की कमजोर भूमिका से भाजपा पहले ही राजस्थान में अपना धरातल खो चुकी है दूसरी ओर नकल ही सही केजरीवाल की योजनाओं को आंशिक ही सही गहलोत सरकार ने समय पर राजनीतिक पकड़ करते हुए दिल्ली की योजनाओं को राजस्थान में लागू कर आम आदमी पार्टी की प्रदेश स्तर से जिलास्तर पर कमजोर नियुक्तियों का लाभ उठा कर राजस्थान में आप की सम्भावना खत्म कर दी है। आरएलपी की बात करें तो पिछली बार राजस्थान में कुल 8.5 लाख मत अर्जित करने के बाद इस बार आरएलपी के ग्राफ में कुछ बढ़त की उम्मीद दिख रही थी जो कि कमजोर पकड़ के चलते वक्त के साथ कमजोर होती नजर आ रही है।
यदि अबकी बार गहलोत पूर्ण बहुमत से राजस्थान में सरकार बनाने में कामयाब होते हैं तो यह भी सम्भव है कि आने वाले चुनावों में कांग्रेस दिल्ली और पंजाब से भी आप को खत्म कर पुनर्स्थापित होने में कामयाब हो सकेगी इससे एक तरफ तेजी से उभरने वाली राजनीतिक अल्पायु वाली आप तो धरातल नापेंगी ही साथ ही पांच राज्यों में झटका लगने से भाजपा की रीढ़ की हड्डी भी लूटती नजर आएंगी। इससे यह भी सम्भव है कि आने वाले चुनावों में बिना किसी गठबंधन किए कांग्रेस फिर से केंद्र की सत्ता में स्थापित हो सकेगी।

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