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भीलवाड़ा-दो परम्परा का मधुर मिलन हुआ आदित्य सागर जी ने संथारा साधक के दर्शन किए, “संथारा जीवन का अन्तिम मनोरथ “-मुनि हर्षलाल।

 

वीरधरा न्यूज़। भीलवाड़ा@ श्री पप्पु लाल कीर।

भीलवाड़ा। युग प्रधान आचार्य महाश्रमणजी के वरिष्ट संत मुनि हर्षलाल जी ने कहा- मुनि शान्तिप्रियजी ने जीवन के अतिम समय में अन्तिम मनोरथ लेकर अपने जीवन को सार्थक एवं सफल बना लिया। मुनि आदित्य सागर जी की मिलन सरीता एवं स्नेहभाव अच्छा लिया।
दिगम्बर परम्परा के विद्वान श्रुतसंवेगी श्रमण आहित्य सागर जी ने कहा- जीवन के अन्तिम समय में सारी इच्छाओं का निरोध का आत्म रमण करना संचारा है। जीने की इच्छा नही होने पर संघाश प्राप्त होता है। मुनि यशवंत जी ने कहा- आज दो परम्परा का मिलन देखकर प्रसन्नता हो रही है। यदि आदित्य सागर जी को अनुकूलता हो तो कुछ कार्यक्रम दोनों साथ एक मंच पर हो सकेगे।
मुनि सिद्धप्रज्ञ जी ने प्रभावक शैली में बोलते हुए कहा महावीर न दिगम्बर थे न श्वेताम्बर थे महावीर चिदम्बर थे। आज वस्त्रों की नगरी में निर्वस्त्र सन्त को देखकर अच्छा लग रहा है। मोत की भी मोत हो जाना ही मोक्ष है। इस अवसर पर मुनि पारस कुमारजी, मुनि अप्रितम सागर जी, अनि सहज सागर जी, मंत्री योगेश चोरडिया, भिसु साधना केन्द्र के अध्यक्ष दिलीप मेहता मंत्री दिनेश जी गोखरू, अणुविया के निर्मलजी गोखरू, सुन्दर कोठारी आदि महानुभाव विशेष रूप से उपस्थित थे। प्रारम्भ में सभाध्यक्ष जराराज जी चोरडिया ने मुनि प्रवर का स्वागत करते हुए शान्तिप्रियजी का परिचय दिया।
इस मिलन समारोह में दोनों परम्परा के श्रद्धालु जन बड़ी संख्या उपस्थित थे। जयाचार्य भवन में आदित्य सागर, अप्रियतम सागर व सहज सागर आदि सन्तो ने संधारा साधक के दर्शन कर अति प्रसन्नता का अनुभव किया।

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