इंस्पायर अवार्ड की राज्यस्तरीय प्रदर्षनी का समापन 37 बच्चें राष्ट्रीय स्तर पर करेंगें राजस्थान का प्रतिनिधित्व।
वीरधरा न्यूज़।चित्तौडग़ढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़। इंस्पायर अवार्ड की राज्यस्तरीय प्रदर्षनी के समापन समारोह को मुख्य अतिथि पद से संबोधित करते हुए कहा विधायक चन्द्रभान सिंह आक्या ने कहा कि विज्ञान के दौर में नवाचारों के इन प्रस्फुटन से बाल वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी मानवजीवन को सुलभ बनाने में अपना सार्थक योगदान कर पायेगी।
विधायक आक्या ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वैज्ञानिक सोच को आगे ले जाने वाले ये बाल वैज्ञानिक विकसित भारत का सपना साकार करने में कारगर साबित होेगे। आक्या ने बाल वैज्ञानिकों की सोच को अभिनव प्रयास बताते हुए इस प्रकार के आयोजनों की महत्ती आवष्यकता बताई।
कार्यक्रम के विषिष्ट अतिथि युआईटी के पूर्व चेयरमेन सुरेष झंवर ने कहा कि प्रारंभिक षिक्षा के पायदान से वैज्ञानिक सोच को विकसित करने के ये प्रयास प्रषंसनीय है। ग्रामीण परिवेष से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक बाल वैज्ञानिकों का यह सफर आने वाले समय में सुखद परिणाम देगा।
एम अकादमी की बालिकाओं ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुतकी तथा राउमावि सेगवा की बालिकाओं ने राजस्थानी गीत पर नृत्यमय प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के दौरान राउप्रावि चामटी खेडा के प्रधानाध्यापक अंबालाल जीनगर की सेवानिवृति पर अतिथियों के द्वारा अभिन्नदन किया गया। अतिथियों का स्वागत आयोजन सचिव और संयुक्त निदेषक स्कूल षिक्षा उदयपुर मंडल पुष्पेन्द्र शर्मा ने तथा आभार प्रदर्षन संयुक्त निदेषक कार्यालय के शैक्षणिक प्रकोष्ठ के एडीईओ राजेन्द्र कुमार त्रिपाठी ने किया। राज्यस्तरीय प्रदर्षनी का प्रतिवेदन आयोजक संस्था के प्रधान शंभुलाल भट्ट ने रखा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कनक जैन और नवीन षर्मा ने किया। कार्यक्रम में संयुक्त निदेषक कार्यालय से मांगीलाल मेनारिया सहित अनिल ईनाणी, सागर सोनी, मनोज पारिक सहित विभिन्न विद्यालयों के प्रधानाचार्य, षिक्षक और विद्यार्थी मौजुद रहे।
412 बाल वैज्ञानिकों की भागीदारी, 37 का राष्ट्रीय स्तर पर चयन
राज्यस्तरीय प्रदर्षनी में भागीदारी कर रहे 412 बाल वैज्ञानिकों के मॉडलों के निरक्षण करने के बाद 3-3 सदस्यों की 5 ज्यूरी टीम ने राष्ट्रीय स्तर के लिए 37 बाल वैज्ञानिकों का चयन किया है। चयनित बाल वैज्ञानिक में चित्तौडगढ़ जिले से खुषी मीना, रणजीत सिंह झाला, रणवीर सिंह, लाकेष कुमार,मोहम्मद ताहिर, जयपुर जिले से मोहित साहु, अनंत जैन,रूषील सारस्वत, टीकम सिंह दरोगा,हर्षिता जैथवानी, अविजित कुमावत, तनीषा वर्मा, हनुमानगढ़ जिले से अनुष्का विष्नोई, मनीषा, पिन्डरपाल कौर, राकेष नाथ, दौसा से नवीता मीणा, बीकानेर से एकता बाना, डुंगरपुर से आर्यन दवे, प्रियांषी कलाल, कोटा से हर्षित शर्मा, नकुल जांगिड, राधिका, जोधपुर से महिका कच्छावा, झुंझनु से पुर्वी टीबरा, नागौर से भगवती कुमावत, मनीषा, अलवर से तमन्ना मीणा, नवीन कुमार पटोदिया, बाडमेर से अरविन्द, भीलवाड़ा से पुजा सुथार, सवाई माधोपुर से नमोनारायण मीना, बांसवाड़ा से हिमानी मकवाना, प्रतापगढ़ से हनी सोनी, चुरू से जतीन सोनी, हितेष मीणा और भरतपुर से नीरू का चयन हुआ है।
ग्रामीण जीवन की समस्याओं को लेकर सामने आए नवाचार
राज्यस्तरीय इन्सपायर अवार्ड प्रर्दषनी में बाल वैज्ञानिकों की सोच में ग्रामीण जीवन की समस्याएं विचारों का केन्द्र रही। दैनिक जीवन में सामन आने वाली समस्याओं पर बाल वैज्ञानिकों के अभिनव प्रयोग देखने में आए।
1. खेती को सहज बनाने की तकनीक
शेखावाटी साइंस एकेडमी के छात्र मोहम्मद ताहिर ने तकनीक किसानों के कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाली परंपरागत तकनीक में आ रही बाधाओं का समाधान कम लागत व कम परिश्रम में उन्नत जुगाड़ तकनीक का इस्तेमाल कर कैसे गुणवत्ता के साथ-साथ उत्पादकता बढ़ाई जा सके इसके लिए एक हल मशीन तैयार की है। परम्परागत हल में सुधार करके नई तकनीक की हल मशीन तैयार की है। जिसमें एक साथ पाँच हल लगाये गये है। इस हल मशीन में पहिये भी लगाये गये है। जिससे हल मशीन को खेतों में एवम् खेतों से बाहर बैलो द्वारा आसानी से चलाया जा सकता है। इस हल मशीन से कार्य क्षमता में पाँच गुनी वृद्धि हुई है। तथा किसान एवं बैलो का श्रम व समय पाँच गुना कम हुआ है। इस हल मशीन पर सीड ड्रिल मशीन लगाकर बीज बोने व प्लेटे लगाकर क्यारे बनाने का काम भी आसानी से किया जा सकता है। इसका पर्यावरण और कृषि भूमि पर कोई हानिकारक प्रभाव न पड़े, इस विचार पर आधारित है।
2. गोबर के उपले बनाने की मषीन
महिला पशुपालकों कीे गोबर के उपले बनाने की समस्या को ध्यान में रखते हुए राउमावि लखासर हनुमानगढ़ की कक्षा 9 की छात्रा अनुष्का विष्नोई ने एक ऐसा माडॅल प्रस्तुत किया जिससे यह कार्य सहज और सरल हो सकता है। सामान्य लागत से तैयार इस मषीन में गोबर को मिक्स किया जाता है । मषीन को पेडल से आगे चलाते है तो एक निष्चित आकर के सांचे की सहायता से गोबर के उपले बनते जाते हैं। कम समय में बिना गंदगी के उपले बनाने की यह तकनीक ग्रामीण परिवेष के साथ गौ शालाओं में भी उपयोगी साबित हो सकती है।