वीरधरा न्यूज़।भीलवाड़ा@ श्री पंकज आडवाणी।
जोधपुर। जिन पर छात्रों के सुनहरे भविष्य की जिम्मेदारी हो यदि वे ही छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने लग जाए तो फिर छात्र किससे और क्या उम्मीद करे। ऐसा ही मामला आया है जोधपुर स्थित जेएनवीयू एवँ एमबीएम विश्वविद्यालय का। गत वर्ष विधानसभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर एमबीएम कॉलेज जो कि राजस्थान ही नही अपितु पूरे भारत में सबसे पुराने इंजीनिरिंग महाविद्यालय में से एक है को विश्वविद्यालय बना दिया गया था। अब दोनों विश्वविद्यालय द्वारा राज्य सरकार द्वारा घोषित आगामी छात्रसंघ चुनावों को देखते हुए एवँ अपने राजनीतिक आकाओं को प्रसन्न करने के लिए जेएनवीयू विश्वविद्यालय द्वारा विश्वविद्यालय में पंजीकृत इंजीनियरिंग के छात्रों का नामांकन अनावश्यक रूप से एमबीएम विश्वविद्यालय में स्थानांतरित किया जा रहा है। जिससे जेएनवीयू में इंजिनीयरिंग में अध्ययनरत छात्रों का भविष्य अधरझूल में है। एमबीएम महाविद्यालय में अध्ययनरत छात्र जिनका अनावश्यक रूप से नामांकन स्थानांतरित किया जा रहा ऐसे छात्रों की संख्या करीब 1300 बताई जा रही है।
-विदित रहे कि जो इंजिनीयरिंग के छात्र अभी जेएनवीयू विश्वविद्यालय में नामांकित होकर एमबीएम महाविद्यालय में अध्ययनरत है, ऐसे करीब 1300 छात्रों का नामांकन जेएनवीयू द्वारा अनावश्यक स्थानान्तरित कर एमबीएम विश्वविद्यालय में करने से इन छात्रों कि आधी अंकतालिका जेएनवीयू विश्वविद्यालय की आएगी एवँ आधी अंकतालिका एमबीएम विश्विद्यालय की आएगी। जिससे कि इन छात्रों को आगे चलकर बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
-आधी अंकतालिका जेएनवीयू की एवँ आधी अंकतालिका एमबीएम की होने से संदिग्ध प्रतीत होगी।
-इन छात्रों को आजीवन दस्तावेज़ सत्यापन के दौरान तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है।
-कई छात्र उच्च अध्ययन के लिए विदेशों में भी जाते है ऐसे छात्रों को सर्वाधिक परेशानी उठानी पड़ेगी।
-ज्ञात रहे कि एमबीएम प्रदेश ही नही अपितु देश भर में सबसे पुराने इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में से एक है और बहुत ही ख्याति प्राप्त महाविद्यालय है, जिसमे सिर्फ होनहार छात्रों का ही प्रवेश हो पाता है। यह जानते हुए की इंजीनियरिंग एक प्रोफ़ेशनल कोर्स है ना कि एक सामान्य स्नातक पाठ्यक्रम फिर भी छात्रों के स्थानांतरण हेतु दोनों विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ना ही अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) से स्वीकृति ली गयी और ना ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से स्वीकृति ली गई अपितु दोनों विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार द्वारा खानापूर्ति करते हुए छात्रों के अवैधानिक स्थानांतरण की स्वीकृति दे दी।
-विदित रहे कि पूर्व में भी जेएनवीयू विश्वविद्यालय द्वारा इस तरह के कृत्य किये जा चुके है, जिससे छात्रों के भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा और उन्हें अवांछित परेशानियों का सामना करना पड़ा परंतु फिर भी विश्वविद्यालय अपनी लापरवाही से बाज नही आ रहा है।
– विश्वविद्यालय द्वारा अंकतालिका पर रजिस्ट्रार के स्थान पर परीक्षा नियंत्रक के हस्ताक्षर होने से राजास्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी)ने छात्रों को दस्तावेज सत्यापन में रोक लिया गया था।उस समय विश्वविद्यालय को छात्रों की अंकतालिका वापस बनानी पड़ी थी।
– विश्वविद्यालय द्वारा बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी (बीसीटी) को सिविल इंजीनियरिंग के समकक्ष मान लिया था, परंतु कर्मचारी चयन आयोग ने ऐसा मानने से इनकार कर दिया था। जिस कारण चार छात्रों का चयन होने के पश्चात भी उनको चार वर्षो से अभी तक केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में केस लड़ना पड़ रहा हैं। इन छात्रों कि विश्वविद्यालय में कोई सुनने वाला नहीं है।
-वर्ष 2002 में आर्किटेक्चर विभाग बंद होने पर छात्रों को मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एमएनआईटी) जयपुर भेजा गया परन्तु उनको डिग्री जेएनवीयू की ही दी गई।
– विश्वविद्यालय प्रशासन सिर्फ अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए 1300 छात्रों को अनावश्यक रूप से स्थानांतरित कर रहा है, जिसकी कोई आवश्यकता नही है जो कि कतिपय न्यायोचित्त नही है।
इनका कहना है
विश्वविद्यालय ने बीसीटी को सिविल के समकक्ष मान लिया परंतु कर्मचारी चयन आयोग ने मानने से इनकार कर दिया। जिससे मैं पिछले चार साल से न्यायालय में मुकदमा लड़ रहा हूँ।विश्वविद्यालय की इन मामूली गलतियों के कारण मेरा चयन होने के बावजूद मैं चार साल से भटकने को मजबूर हूँ।