वीरधरा न्यूज़।डुंगला@ श्री अमन अग्रवाल।
चिकारड़ा। संगठित समाज ही धर्म और राष्ट्र की रक्षा कर सकता है उक्त बात पंडित राधेश्याम सुखवाल ने भागवत कथा के दौरान कहीं। इस कार्यक्रम के मौके पर भगवान को छप्पन भोग धराया गया। सुखवाल द्वारा बताया गया कि जाती पाती ऊंच-नीच, छोटे – बड़े ,गरीब और अमीर के भेदों में खंड खंड बटा समाज कभी भी राष्ट्र और धर्म की रक्षा करने में समर्थ नहीं हो सकता। धर्म की रक्षा के लिए सभी को एकजुट होकर सामने आना होगा तभी जाकर धर्म संस्कृति बच पाएगी।
श्रीमद् भागवत संस्कार कथा के दौरान गौ भक्त पंडित राधेश्याम सुखवाल ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं एवं गोवर्धन लीला का वर्णन करते हुए वर्तमान समय में खंड- खंड बटे सनातन हिंदू समाज को अपनी धर्म रक्षा एवं राष्ट्र रक्षा के लिए इन बुराइयों से ऊपर उठकर जिस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन धारण कर अपना सामर्थ तो प्रदर्शित किया किंतु यह भी प्रदर्शित किया कि खंड खंड बटे समाज से कंस जैसे दूराचारियो से मुकाबला संभव नहीं है।
अतः अन्नकूट जिसमें की समस्त जाति वर्ग के द्वारा अर्पित किया गया भोजन स्वयं ग्रहण किया एवं सभी को एक साथ बिठाकर भोजन कराया। और मानव को एकजुट करने का प्रयास किया था। इसी के चलते परंपरा उत्सवों में तो हम मनाते हैं। किंतु वास्तविक स्वरूप में आज भी गांव में जाति भेद एवं छुआछूत का बोलबाला है। ऐसे में वर्तमान पीढ़ी को इस बुराई के प्रति जागरूक करना ही कथाओं का और गो गायत्री आध्यात्मिक शक्ति कलश पद यात्रा का मूल उद्देश्य है। कथा के छठे दिवस पर अन्नकूट एवं छप्पन भोग में नगर के सभी जाति वर्ग ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। एवं सभी ने प्रसाद को मिलाकर भाव और श्रद्धा से ग्रहण कर संकल्प लिया। कि अपने जीवन में कभी भी ऊंच-नीच और जाति भेद का दोष नहीं आने देंगे। तनाव मुक्त जीवन एवं उत्सव से भरी जिंदगी के सूत्र बताते हुए पंडित सुखवाल ने बताया कि छोटी-छोटी बातों को नजर अंदाज करने से ही परिवार समाज और राष्ट्र में सुख और शांति का वातावरण बनेगा।
श्रीमद् भागवत कथा के गर्गाचार्य प्रसंग से लड्डू गोपाल की उत्पत्ति का रहस्य एवं श्री गोवर्धन लीला से छप्पन भोग का महत्व बताते हुए कहां कि भगवान श्री कृष्ण ने 7 दिन तक गोवर्धन को अपनी तर्जनी उंगली पर उठाए रखा था। इस दौरान नगरवासी उनकी पूजा एवं भोग आदि से अनभिज्ञ रहे।
चूकि भगवान की अष्टयाम पूजा यानी श्री बालकृष्ण को प्रतिदिन 8 बार भोग लगाया जाता है जोकि 7 दिन से बंद था उसी की क्षतिपूर्ति आज तक समाज छप्पन भोग लगाकर करता रहा है। यह प्रसाद भिन्न-भिन्न जाति वर्ग एवं घरों से अपनी क्षमता एवं सामर्थ्य अनुसार आता है जिसे मिला कर बांटने से समाज में भाईचारे की वृद्धि होती है।
इस अवसर पर दिनेश अग्रवाल, रामेश्वर लाल खंडेलवाल,मदन लाल खंडेलवाल,नाना लाल सुथार, शोभागमल छाजेड़ के नेतृत्व में नगर के महिला मंडलों द्वारा सुंदर 56 भोग सजा कर भक्ति भाव प्रकट किया गया। कथा श्रवण के लिए चिकारड़ा के आसपास कई गांव के लोग प्रतिदिन कथा में उपस्थित हो रहे हैं।