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चित्तौड़गढ़-न्यायालय के आदेश पर 8 साल बाद मिले पुत्र के दस्तावेजों के संशोधन में भटक रहा पिता।

 

वीरधरा न्यूज़। चित्तौड़गढ़ @पंडित श्री मुकेश कुमार।

चित्तौड़गढ़। लगभग 8 सालों की लम्बी लड़ाई लड़ न्यायालय के आदेश पर सुपुर्द किये गये अपने ही पुत्र के दस्तावेजों में पिता का नाम संशोधन कराने की मशक्कत में भटक रहे लक्ष्मीनारायण कुमावत को चारों ओर से निराशा का सामना करना पड़ रहा है।
निम्बाहेड़ा निवासी लक्ष्मीनारायण कुमावत का विवाह लक्ष्मी नाम की युवती से हुआ। वर्ष 2014 में उसके एक पुत्र हुआ। पारिवारिक कलह के चलते विवाह विच्छेद की नौबत आ गई तो पत्नी बच्चे सहित पीहर चली गई। ससुराल वालों ने द्वेषता पाली और लक्ष्मीनारायण से सारे संबंध तोड़ने की ठान ली। पत्नी ने तो अन्यत्र नाता विवाह कर लिया और अपने ही बच्चे से सारे रिश्ते तोड़ कर किसी भी प्रकार का संबंध रखने से मना कर दिया। लक्ष्मीनारायण के अपने बच्चे से मिलने की इच्छा पर भी ससुराल वालों ने कभी मिलने नहीं दिया। लक्ष्मीनारायण ने अपने बच्चे को स्वयं पालने की जद्दोजहद में लगभग 8 साल की कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती तो न्यायालय के आदेश पर पुत्र का कब्जा सौंपा गया। तब तक उसका पुत्र 10 साल का हो चुका था किन्तु ससुराल में ससुर ने लक्ष्मीनारायण से कोई रिश्ता न रखने की नफरत के चलते नाती को पाला तो है किन्तु उसका मूल नाम सहित अभिभावक वगैरह के नाम में मनमाफिक इन्द्राज करा दिये, यहाँ तक की लक्ष्मीनारायण द्वारा बच्चे के जन्म के समय बनाये गये जन्म प्रमाण पत्र में दिये बच्चे का नाम भी उन्होंने नहीं रखा। स्कूल में बच्चे का नाम व पिता नाम अलग तो आधार कार्ड बनाने में बच्चे के पिता का नाम अलग दर्ज हो रखा है। कहीं भी दस्तावेजों में बच्चे के मूल पिता का नाम दर्ज नहीं है, जिसके परिणाम स्वरूप अब पुत्र की सुपुदर्गी के बाद पुत्र का स्वयं का नाम व उसके पिता के नाम में संशोधन को लेकर प्रशासन के हर एक स्तर पर जाने के बावजूद उसके हाथ खाली है।
इन सारी परिस्थितियों के चलते लक्ष्मीनारायण अपने पुत्र के बदले हुए नाम को तो ससुराल वालों की देन मान स्वीकार कर बैठा किन्तु पिता के नाम में उसका स्वयं का नाम नहीं होने से व्यथित है। तहसीलदार, शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों, कलेक्टर व मानवाधिकार से भी अपनी गुहार लगा कर लक्ष्मीनारायण अपने पुत्र में पिता का सही नाम संशोधन करने के लिए भटका किन्तु नतीजा शून्य रहा। मीडिया के माध्यम से अपनी व्यथा प्रसारित करवा लक्ष्मीनारायण को आस है कि शायद उसकी परिवेदना की सुनवाई हो और बच्चे के भविष्य को संवारने में मदद मिल सके।

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