Invalid slider ID or alias.

भूपालसागर-पांचवे दिन भी मैले में रही रेलमपेल मौसम खराब होने से दुकानदारों को हुई परेशानी कपासन डिवाईएसपी ने भी मिट्टी कि हांडी खरीदी।

 

वीरधरा न्यूज़।आकोला@ श्री शेख सिराजुद्दीन।

आकोला। भूपालसागर श्री करेड़ा पार्श्वनाथ जन्मकल्याणक महोत्सव के तहत लगने वाला मैला आज पांचवे दिन भी जारी रहा। कपासन डिवाईएसपी हरजीलाल यादव ने भी दांता कि मिट्टी से बनी हांडी खरीदी। ईधर सटोरीयों ने भी सट्टे कि जमाई दुकाने। गृहिणीयों ने मैले मे लगी दुकानों से अपने घरोलु सामान खरीदे तथा चाट पाकेड़ी के चठकारे लगाने के साथ साथ मनिहारी सामान एवं मिट्टी से बनी हांडीया, केलडीयां और छाछ बिलाने कि बिलोवनीयां खरीदी।

भूपालसागर में लगने वाले श्री करेड़ा पार्श्वनाथ जन्मकल्याणक महोत्स के तहत लगने वाले मैले में दांता कि मिट्टी से बने मिट्टी के बर्तन सुप्रसिद्ध माने जाते है और पुराने समय में इस मैले को हांडिया मैले के नाम से भी जाना जाता था। आज भी इन मिट्टी के बर्तनों ने अपनी ठाप को बरकरार रखा हुआ है। कुम्हार जाती के लोग एसे मिट्टी के कई प्रकार के बतैन बनाते है जो कि लम्बे समय तक चलने के साथ साथ इनमें पकने वाला खाना स्वादिष्ट एवं शरीर को स्वस्थ रखता है। वैसे तो मिट्टी के बर्तन लगभग सभी गांव में बनते है, मगर दाता कि मिट्टी एवं वहां के कारीगर अलग ही अन्दाज में मिट्टी के बतैन बनाते है जो कि आज भी दिनप्रतिदिन मशहुर होते जा रह है। गरीब से लेकर अमीर तक इन बर्तनों को लेने से नहीं चुकते। क्षेत्रवासीयां कि धारणा। वैसे तो श्री करेडा पार्श्वनाथ जन्मकल्याणक महोत्सव तीन दिन का ही होता है मगर इसके तहत लगने वाला मैला पांच से सात दिन तक चलता रहता है। आस पास के क्षेत्रवासीयों कि यह धारणा है कि मैले के शुरूआत में हर दुकानदार सामान कि किमत ज्ज्यादा लगाते है और धीरे धीरे दिन बीत जाने के बाद वो सामान को वापस नहीं ले जाने के चक्कर में एवं ज्यादा दिन बी जाने से सस्ती दरों में बैचकर चले जाते है। इस बार दो दिन मौसम खराब होने से मैलार्थीयों कि आवक कम रही अब मौसम के खुलने के साथ साथ मैलार्थियों का आना जाना बढ रहा है। इससे अब यह लग रहा है कि मैला अब दो दिन से प्रारम्भ हुआ है।
श्री करेड़ा पार्श्वनाथ मन्दिर एक नजर में। इस मंदिर की पौराणिक कथाओं के आधार पर श्री करेड़ा पार्श्व नाथ ऐतिहासिक गौरवमय परंपरा एवं प्राकृतिक सुषमा से मेवाड़ की धरा पर जहां एक और सदैव वीरता स्वतंत्रता प्रेम देशभक्ति की धारा बहती है वहीं दूसरी ओर श्रवण भगवान श्री महावीर की अमृतवाणी की सरिता भी बहती है यही कारण है कि मेवाड़ की भूमि पर कई तीर्थाे के साथ अत्यंत प्राचीन एवं प्रख्यात तीर्थ स्थल भोपाल सागर में स्थित श्री करेड़ा पार्श्व नाथ भगवान जैन धर्म में माना गया है।
यद्यपि स्थित जिनालय का सर्वप्रथम निर्माण एवं प्रतिष्ठा के प्रमाण स्वरूप कोई अधिकृत शिलालेख नहीं मिला है। पर एक शोध का विषय प्रमाण के अनुसार मंदिर में मूल नायक जी के मंदिर की बाईं तरफ एक स्तंभ पर खुदे लेख के अनुसार संवत 55 का उल्लेख अवश्य मिलता है फिर भी अन्य उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार श्री करेड़ा पार्श्व नाथ का यह 52 देवकुलिकाओं का भव्य जिन प्रसाद नि संदेह अति प्राचीन तीर्थ है।
प्राय इस जिनालय को खेम सिंह शाह द्वारा विक्रम संवत 869 में बंधवाने एवं आचार्य श्री जयानंद सुरेशवरजी के शुभ हस्ते श्याम वर्णीय पद्मनास्त श्री पार्श्व प्रभु की अलौकिक नवमानोहर फणा छत्र से सुशोभित जिन प्रतिमाजी प्रतिष्ठित करने का उल्लेख है। मुलनायक श्री करेड़ा पार्श्व नाथ की पद्मास्त्र श्याम वरणीय 29 इंच ऊंची एवं 27 इंच चौड़ी अति आकर्षक चमत्कारी एवं उपसर्गहर नव मनोहर फणाछत्र से सुशोभित प्रतिमा दोहरे डबल शिखर बंद जिनालय में विराजमान है प्रभु प्रतिमा दर्शन पूजा अर्चना हृदय से भक्ति करने से आत्मगुण की वर्दी होती ऐसा माना जाता है। जिनालय का विशाल सभा मंडप श्रृंगार चौकी अपनी प्रतिभा का एक बेजोड़ प्रतीक है इस प्रकार दोहरी शिखर वाला मंदिर भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता है यह जिनालय विशाल जलाशय जो कि भूपालसागर के नाम से जाना जाता है कि पूर्वी किनारे पर स्थित है। मंदिर के इतिहास के साथ भुपाल सागर कस्बा पूर्व में करहेटक करहेड़ा के नाम से जाना जाता था जो की बाद में धीरे धीरे बदलकर करेड़ा कहलाने लगा तथा तीर्थ भी श्री करेड़ा पार्श्व नाथ से पहचाना जाने लगा।
इस 52 मनोहर देवकुलिकाओ से युक्त जिनालय का जीर्णाेद्वार सवत 1039 में भी किया गया जो आचार्य श्री यशोभद्रसूरीजी के हाथो प्रतिष्ठित हुआ। पुनः 1656 में जीर्णाेद्वार के समय इस पूर्वाभिमुख जिनालय की पूर्व की तरफ दीवार में एक छिद्र की एसी विशिष्ट रचना की गई जिससे प्रभु पार्श्व नाथ स्वामी के जन्म कल्याण पोसविद दशम के पुनीत एवं मांगलिक दिवस पर सूर्य किरण परमात्मा की देह को स्पर्श करती थी जिसके दर्शन करने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती थी। पुनः सवंत 2033 में छेला जीर्णाेद्वार श्री शंखेश्वर भोयनिजी ट्रस्ट द्वारा करवाया जो श्री पार्श्व प्रभु के बावन नाम से सुशोभित प्रतिमाओं की अंजन शलाका एवं प्रतिष्ठा दिनांक 2 फरवरी 1977 में परमपूज्य देह श्रीमद विजय दक्षसूरीजी एवं सुशीलसुरी जी के शुभ हाथों से संपन्न हुई। पांच जैन जिनालयो के साथ प्रतिष्ठा हुई।कविलाणकपुर, संयमभरीपुर, मंडोर पुर एवं भेसरानपुर के साथ करेड़ा इन पांचों जिनालय की प्रतिष्ठा हेतु सुरिदेव से विनती करने पर उन्होंने वेक्रिय स्वरूप धारण कर पांचों जिनालय की प्रतिष्ठा संपन्न की। विशेष मांगलिक अवसरों पर अथवा यात्रियों के विशेष आग्रह पर श्री पार्श्व नाथ प्रभु को चांदी की विशिष्ट आँगी धारण कराई जाती है इस अंगी धारण के पश्चात भगवान के दर्शन की छटा अद्भुत एवं अलौकिकता बिखेरती दृष्टि गोचर होती है यह विशिष्ट आँगी भी अभी तक अन्यत्र कहीं पर देखने को नहीं मिलती ऐसा जैन समाज का कहना हे। इस बार कई दिनों से मंदिर में चल रहे धार्मिक आयोजन मेवाड़ देशोद्वारक आचार्य श्री जितेन्द्र सुरेश्वर जी महारासा आदि ठाणा 6 की शुभ निश्रा में तीसरा उपधान भी कई दिनों से चल रहा वही जन्म कल्याणक महोत्सव को लेकर अठम तप यानी तेले की तपस्या भी श्रद्धालुओं द्वारा की जाएगी।

Don`t copy text!