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जयपुर-बच्चेदानी का ऑपरेशन कैसे बन जाता है जानलेवा? RAS प्रियंका विश्नोई की मौत के बाद विवाद, एक्सपर्ट से जानिए सवालों के जवाब।

 

 

वीरधरा न्यूज़। जयपुर@ श्री अक्षय लालवानी।

 

जयपुर।जोधपुर की असिस्टेंट कलेक्टर (ACM) रहीं प्रियंका विश्नोई (33) का 13 दिन चले इलाज के बाद बुधवार देर रात अहमदाबाद के हॉस्पिटल में निधन हो गया। करीब 15 दिन पहले जोधपुर के वसुंधरा हॉस्पिटल में बच्चेदानी का ऑपरेशन (हिस्टेरेक्टॉमी) किया गया था। इसके बाद उनकी हालत बिगड़ गई थी। प्रियंका 2016 बैच की राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (RAS) की अफसर थीं।

प्रियंका के परिजन का आरोप है कि अस्पताल ने बच्चेदानी के ऑपरेशन में लापरवाही बरती। इससे तबीयत बिगड़ने के कारण उसकी मौत हुई है। वहीं, वसुंधरा हॉस्पिटल के डॉ. संजय मकवाना ने कहा- सर्जिकल कोई कॉम्प्लिकेशन नहीं था। उनके (प्रियंका विश्नोई) ब्रेन में जन्म से एक एवी मालफॉर्मेशन (ब्रेन की पतली दीवार) था। वह यंग एज में कभी भी लीक कर सकता है। दुर्भाग्यवश ऑपरेशन की 24 घंटे की रिकवरी के बाद लीक हुआ।

इधर, इस पूरे विवाद के बाद बच्चेदानी के ऑपरेशन की जटिलता को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।

 

जरूरी 7 सवालों के जवाब एक्सपर्ट से जाने…

 

 

सवाल 1:- बच्चेदानी का ऑपरेशन (हिस्टेरेक्टॉमी) की जरूरत कब पड़ती है और ये कितना जटिल होता है?

 

जवाब:- महिलाओं के प्राइवेट पार्ट से अत्यधिक रक्त स्त्राव, कैंसर, गर्भाशय में ट्यूमर और गर्भाशय का आकार बढ़ने जैसी समस्या के कारण बच्चेदानी का ऑपरेशन करना पड़ता है। यह गायनोकोलॉजी में सबसे ज्यादा किए जाने वाले ऑपरेशन में से एक है। विशेषज्ञ डॉक्टर्स की मानें तो अन्य ऑपरेशन की तरह बच्चेदानी के ऑपरेशन में भी कभी-कभी जटिलता पैदा हो जाती है। यह हर महिला में अलग-अलग हो सकती है। ये जटिलताएं दो तरह से सामने आती हैं। कभी ऑपरेशन के दौरान और कभी ऑपरेशन के बाद महिला के शरीर में कई तरह की समस्याओं के रूप में दिखाई देती हैं।

जयपुर के जनाना हॉस्पिटल की प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रो. डॉ. राखी आर्य का कहना है कि हिस्टेरेक्टॉमी कराने की सलाह वे तभी देती हैं, जब बेहद जरूरी होता है। क्योंकि यह एक जटिल ऑपरेशन होता है। कई बार इलाज और हार्मोन ट्रीटमेंट के बाद भी समस्या बनी रहती है। ऐसे में सर्जरी ही एकमात्र उपाय होता है। कैंसर के मामले में यह सर्जरी बेहद जरूरी होती है। गर्भाशय या इसके आसपास के अंगों को हटाने से कैंसर फैलने की संभावना कम हो जाती है। इसलिए अनुभवी और विशेषज्ञ डॉक्टर से ही सर्जरी करानी चाहिए।

 

सवाल 2- क्या बच्चेदानी निकलवाने या ऑपरेशन कराने पर महिला की मौत हो सकती है?

 

जवाब:- कुछ महिलाओं में शारीरिक समस्या के कारण कई बार बच्चेदानी यानी गर्भाशय को निकालना पड़ता है। यह महिलाओं के बड़े और जटिल ऑपरेशन में से एक माना जाता है। ज्यादातर 40 से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं के इस तरह से ऑपरेशन होते हैं।

ऑपरेशन के चार से छह सप्ताह बाद महिला स्वस्थ हो जाती है। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि सर्जरी किस प्रकार की गई है। बच्चेदानी निकालने की सर्जरी यानी हिस्टेरेक्टॉमी के बाद मृत्यु दर बहुत कम होती है।

 

स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रो. डॉ. राखी आर्य के मुताबिक आम तौर पर 1 हजार ऑपरेशन में से 0.6 से 1.6 केस में ही महिलाओं की मौत हो सकती है। इसके पीछे कई अन्य कारण भी होते हैं।

 

एक्सपर्ट का मानना है कि बच्चेदानी निकालने के ऑपरेशन जटिल होते हैं। हालांकि इस ऑपरेशन से मृत्यु दर काफी कम है।

 

सवाल 3:- हिस्टेरेक्टॉमी कितने तरीके से किया जा सकता है? ऑपरेशन का कौन-सा तरीका बेस्ट है?

 

जवाब:- हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी आजकल बहुत कॉमन हो गई है। पहले बच्चेदानी को पेट चीरकर निकाला जाता था। लेकिन, अब दूरबीन पद्धति के साथ ही इस सर्जरी को कई तरह से किया जा सकता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ की मानें तो इसके कई प्रकार होते हैं। जैसे- वजाइना हिस्टेरेक्टॉमी, इसमें गर्भाशय को वजाइना के जरिए निकाला जाता है। इसमें पेट के निचले हिस्से में चीरा लगाकर गर्भाशय को निकाला जाता है। अन्य सर्जरी के मुकाबले इसमें कम जटिलताएं होती हैं। सर्जरी में खर्च कम आता है और ऑपरेशन के बाद महिला की रिकवरी भी जल्दी होती है। कोई निशान भी दिखाई नहीं देता है।

 

वहीं लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी को लेप्रोस्कोप की मदद से किया जाता है। सामान्य भाषा में कहें तो यह एक पतली, लचीली ट्यूब होती है। इसमें एक वीडियो कैमरा लगा होता है। इसे नाभि के पास पेट में छोटा चीरा लगाकर डाला जाता है। इसके बाद गर्भाशय को लेप्रोस्कोप ट्यूब या वजाइना के माध्यम से अलग-अलग टुकड़ों में निकाला जाता है। इसे रोबोटिक मशीन की मदद से भी किया जा सकता है। रोबोटिक सर्जरी के दौरान 3डी विजन के साथ डॉक्टर आसानी से ऑपरेशन कर सकते हैं। इस तरह की सर्जरी में कम दर्द और कम ब्लीडिंग होती है।

 

सवाल 4 :- किसी महिला को कैसे पता चलेगा कि उसकी बच्चेदानी में संक्रमण है?

 

जवाब:- यूट्रस यानी बच्चेदानी किसी भी महिला के महत्वपूर्ण अंगों में से एक होती है। इससे जुड़ी समस्याओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। लेकिन, अक्सर महिलाओं को इनके लक्षणों के बारे में जानकारी नहीं होती है। इस कारण जब तक उन्हें पता चलता है, स्थिति बेहद खराब हो जाती है। डॉक्टर के अनुसार बच्चेदानी में संक्रमण के कारण कई बार एक हफ्ते से अधिक समय तक पीरियड्स आते हैं। अत्यधिक ब्लीडिंग होती है और पीरियड्स रेगुलर नहीं रहते हैं।

 

प्रो. डॉ. राखी आर्य के अनुसार पेट के निचले हिस्से में दर्द या सूजन, यूरिन के दौरान जलन, दुर्गंधयुक्त स्त्राव जैसे लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। महिलाओं को पीरियड्स पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर अनियमित पीरियड्स और असामान्य ब्लीडिंग हो तो उसे नजरअंदाज न करें। आमतौर पर महिलाएं इन लक्षणों को देखकर इलाज के लिए डॉक्टर के पास आती हैं, लेकिन कैंसर जैसी बीमारी में महिलाओं को कई बार देर से पता चलता है।

 

सवाल 5 :- बच्चेदानी निकालने के बाद शरीर में किस तरह के बदलाव होते हैं?

 

जवाब:- बच्चेदानी का ऑपरेशन कराने के बाद शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं। ऑपरेशन के बाद महिला को मासिक धर्म नहीं होता और वह गर्भवती नहीं हो सकती। कई बार महिलाओं में मोटापा और सूजन बढ़ सकती है। पेट, कमर और प्राइवेट पार्ट में दर्द की शिकायत हो सकती है। समस्या बढ़ने का इंतजार करने की बजाय समय पर डॉक्टर को दिखाकर इलाज शुरू करना चाहिए।

 

डॉक्टर की मानें तो ऑपरेशन के बाद प्रोटीन, विटामिन सी, आयरन और फाइबर जैसे पोषक तत्व खाने में शामिल करना चाहिए। पानी अधिक मात्रा में पीना चाहिए। इससे रिकवरी में तेजी आती है। ऑपरेशन के बाद महिलाओं को डाइट में हरी सब्जियां, फल, सूखे मेवे और डेयरी प्रोडक्ट्स शामिल करने चाहिए।

 

सवाल 6 :- जटिल होने के बावजूद हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी बढ़ने के पीछे क्या कारण हैं?

 

जवाब:- विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों में हिस्टेरेक्टॉमी ऑपरेशन कराने वाली महिलाओं की संख्या 20 फीसदी तक बढ़ी है। स्त्री रोग विशेषज्ञ इसके पीछे कई कारणों को जिम्मेदार मानते हैं। इनमें समय के साथ महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर, यूट्रस में ट्यूमर जैसी बीमारियों के मामले बढ़ना भी है। ऐसी बीमारियों का इलाज हिस्टेरेक्टॉमी सर्जरी से ही संभव है। इस सर्जरी के बाद यूट्रस से संबंधित बीमारियों का रिस्क कम हो जाता है। हालांकि डॉक्टर ये सर्जरी कराने की सलाह तभी देते हैं, जब महिला की स्थिति गंभीर होती है।

 

सर्जरी से पहले महिला के सभी जरूरी मेडिकल टेस्ट कराए जाते हैं। इसके बावजूद कई बार ऑपरेशन के दौरान मरीज की पूर्व मेडिकल हिस्ट्री के चलते कॉम्प्लिकेशन आ जाते हैं। कई बार मरीज की जान बचा पाना मुश्किल हो जाता है। सर्जरी के बाद कुछ मामलों में महिला के पैरों और कूल्हों की नसों में खून के थक्के बन जाते हैं। ये खून के थक्के फेफड़ों (पल्मोनरी एम्बोलिस्म) तक पहुंच सकते हैं। लापरवाही बरतने पर यह जानलेवा हो सकता है।

 

सवाल 7 :- ऑपरेशन में क्या जटिलताएं आती हैं जो मौत का कारण बन सकती हैं?

 

जवाब :- ऑपरेशन से पहले महिला को एनेस्थीसिया से बेहोश किया जाता है। इसे दो तरीके से किया जाता है। पहली प्रक्रिया में मरीज पूरी तरह से बेहोश रहता है। वहीं दूसरी स्थिति में सिर्फ मरीज के कमर के नीचे का हिस्सा सुन्न किया जाता है। हालांकि दूसरी प्रक्रिया कम अपनाई जाती है।

 

ऑपरेशन के दौरान महिला के प्राइवेट पार्ट या पेट पर 6 से 8 इंच चीरा लगाकर सर्जरी की जाती है। यूट्रस निकालने की प्रक्रिया बेहद जटिल होती है। सर्जरी के दौरान यूट्रस के आसपास के अंगों और ऊतकों को हटाया जाता है। ऑपरेशन के दौरान शरीर के अंदरूनी अंगों को चोट लग सकती है और संक्रमण का खतरा भी बना रहता है।

 

सर्जरी में कई बार मूत्र नली, पेट, आंत को क्षति पहुंचती है, लेकिन यह दुर्लभ केसों में ही होता है। कुछ मामलों में ऑपरेशन प्रक्रिया के दौरान ही इसे ठीक भी कर दिया जाता है। ऑपरेशन के बाद संक्रमण का खतरा बना रहता है। इससे बचने के लिए डॉक्टर के दिशा निर्देशों की पालना करना जरूरी है।

 

ऑपरेशन के बाद 13-दिन बाद RAS प्रियंका विश्नोई का निधन

 

परिवार का आरोप- इलाज में लापरवाही हुई, डॉक्टर बोले- ब्रेन की पतली दीवार लीक हुई।

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