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सांप्रदायिकता से रहित धर्म अमृत है: डॉ दिव्य प्रभा जी।

वीरधरा न्यूज़। भादसौडा @ श्री नरेन्द्र सेठिया।

 

भादसोडा।महावीर भवन भादसोड़ा में प्रवचन करते हुए श्रमणी सूर्या महा साध्वी उपप्रवर्तिनी डॉ श्री दिव्य प्रभा जी महाराज साहब ने फरमाया कि वही धर्म मंगल है जिसमें अहिंसा, तप और संयम की सुगंध हो। उन्होंने कहा कि अहिंसा संयम और तप रहित धर्म अमंगल होता है। जिस धर्म के साथ स्वार्थ, सत्ता, राजनीति के विषय और अर्थ जुड़ जाते है वह धर्म सर्वथा अमंगल हो जाता है।
उन्होंने कहा कि यह चिंतनीय विषय है कि सदैव पवित्र रहने वाले धर्म को पुरातन पंक्तियों ने अपनी दर्पवृत्ति के कारण अपने स्वार्थ के तानों-बानों से इसमें विकार पैदा कर दिए हैं। इसी कारण धर्म को जहां प्रेरणा स्रोत होना चाहिए वह वर्तमान में महज प्रेरणा पात्र बनकर रह गया। अतः लोग धर्म के सिद्धांत आत्मसात नहीं कर रहे हैं।
महासाध्वी ने फरमाया कि मार्क्स ने धर्म को जहर और फ्रायड ने अफीम बताया था पर वस्तु स्थिति इसके विपरीत है। उन्होंने कहा कि वही धर्म जहर हो सकता है जो सांप्रदायिकता, राजनीति और संकीर्णता के बंधन में बंद जाए। परंतु सही पालना करने की स्थिति में धर्म ही संजीवनी और अमृत होता है। उन्होंने कहा कि जहां तक धर्म के जहर होने का प्रश्न है, भगवान महावीर ने अहिंसा, संयम और तप रहित धर्म को तालकूट विष बताया था, इसलिए वही धर्म अमृत या संजीवनी हो सकता है जिसमें राजनीतिक सांप्रदायिकता और संकीर्णता के तत्व नहीं हो तथा अहिंसा संयम और तब तत्व आवश्यक रूप से हो।

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