वीरधारा न्यूज। बेगूं । श्री महेन्द्र धाकड़।
बेगूं। आनंद ऋषि महाराज का 124वां जन्मोत्सव बेगूं में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर श्रमण संघीय साध्वी यशो दीप्ति प्रज्ञा मूर्ती प पू मधु कंवर म सा,शीतल विभूती स्वर कोकिला ड़ॉ चिन्तन श्री महाप्रताप सूर्य सभा भवन बेगूँ मे विराजमान है। डॉ श्री चिन्तन श्री मा सा प्रवचन में बताया कि मा सा आनंद ऋषि महाराज का जन्म 27 जुलाई 1900 को चिंचोड़ी महाराष्ट्र में हुआ था, और उन्होंने 13 वर्ष की आयु में आचार्य रत्न ऋषिजी महाराज से दीक्षा प्राप्त की थी। उनका बचपन और कम उम्र में ही धार्मिक शिक्षा लेना शुरू कर दिया था। 1964 से 1992 में अपनी मृत्यु तक, वह जैन धार्मिक संस्था वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के दूसरे आचार्य थे।
डॉ श्री चिन्तन श्री ने प्रवचन में बताया धार्मिक शिक्षा और जैन संत के रूप में जीवन कम उम्र में ही धार्मिक शिक्षा लेना शुरू कर दिया था, और 13 साल की उम्र में अपना शेष जीवन जैन संत के रूप में बिताने का फैसला किया।
उनकी दीक्षा 7 दिसंबर 1913 मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी को अहमदनगर जिले के मिरी में हुई थी। तब उन्हें आनंद ऋषि महाराज नाम दिया गया। उन्होंने पंडित राजधारी त्रिपाठी के मार्गदर्शन में संस्कृत और प्राकृत स्तोत्र सीखना शुरू किया। उन्होंने जनता को अपना पहला प्रवचन 1920 में अहमदनगर में दिया। आनंद ऋषि की आचार्य बनने की क्षमता का एहसास हुआ और उन्होंने अपने अनुयायियों को इसकी इच्छा बताई, और रत्न ऋषि महाराज के साथ मिलकर जैन धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया था। आनन्द ऋषि ने श्रावकों के कल्याण हेतु अनेक कार्यक्रम प्रारम्भ किये, जैसे कि जैन शिक्षा प्रचार प्रसार, धर्म प्रचार, जैन समाज एकता, सामाजिक योगदान, जीव जंतु गौ शाला आदि। चातुर्मास के लिए घोड़नदी में रहते हुए, उन्होंने एक धार्मिक केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया, और 13 मई 1964 को आनंद ऋषि जी श्रमण संघ के दूसरे आचार्य बने। 28 मार्च 1992 को अहमदनगर, महाराष्ट्र में अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने संथारा उपवास द्वारा मृत्यु की तैयारी स्वीकार किया था।
अंजना बाई पोखरना धर्म सहाहिका, प्रकाश चन्द्र, पोखरना ने बेगूं में 24 उपवास के प्रत्याख्यन लिया इस अवसर पर श्रावक श्रविका श्री वेणी यश जैन नवयुवक मण्डल महिला मण्डल आदि मौजूद रहे