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तप साधना का प्राण तत्व है चेतना के प्रवाह को भीतर की ओर मोड़े अंतर्यात्री बने: डॉ दिव्य प्रभा जी।

वीरधरा न्यूज़। भाड़सोड़ा@ श्री नरेन्द्र सेठिया।

 

भदेसर।महासाध्वी श्री डॉ दिव्य प्रभा जी महाराज साहब ने बताया कि मोक्ष के चार मार्ग ज्ञान दर्शन चरित्र एवं तपस्या। जिसकी दृष्टि देह दृष्टि न होकर आत्म दृष्टि होती है वह तप के स्पंदन पर आरुढ़ होकर शाश्वत सिद्धि को प्राप्त कर सकता है। वो यहां महावीर भवन भादसोड़ा में प्रवचन कर रहे थे।


उन्होंने कहा की तप ज्योति भी है, ज्वाला भी है जिसमें कसाय रुपी कचरा साफ होता है, एवं आत्मज्ञान की ज्योति प्रकट होती है। तपस्या अध्यात्म मंजिल में प्रवेश पाने की चाबी है आत्म परिमार्जन एवं आत्म परिष्कार की प्रक्रिया है। साध्वी श्री ने कहा हम खाते हैं इसलिए जीते हैं यह अपूर्ण सत्य है। हृदय धड़कता है तभी हम जीते हैं यह भी अपूर्ण बात है। बल्कि हम जीते हैं इसलिए ही हृदय प्रत्येक धड़कन के बाद विश्राम लेता है। विश्राम के अभाव में वह समाप्त हो जाता है। इसलिए असन एवं अनषन दोनों साथ-साथ चलते हैं, इसलिए जीते हैं। उन्होंने कहा लगातार 24 घंटे कोई भूखा तो रह सकता है पर लगातार 24 घंटे कोई खा नहीं सकता। इसलिए हर व्यक्ति तप के महत्व का आंकलन कर अपना जीवन सार्थक करें। तप साधना का प्राण तत्व है। गुलाब के फूल की प्रत्येक कली मे सौरभ, तिल के प्रत्येक कण में चिकनाई होती है वैसे ही जैसे धर्म के प्रत्येक चिंतन व क्रियाकलाप में तप समाया हुआ है।

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