वीरधरा न्यूज़। भाड़सोड़ा @ श्री नरेन्द्र सेठिया
भदेसर।भादसोडा़ कस्बें से उक्त विचार चातुर्मासार्थ बिराजित श्रमणी सूर्या उप प्रवर्त्तिनी विदुषी महा साध्वी डॉ दिव्या प्रभा जी ने प्रवचन के दौरान व्यक्त किये।
उन्होंने फरमाया कि व्यक्ति के जीवन में विनय का होना अति आवश्यक है। प्रभु महावीर स्वामी ने अपनी अंतिम देशना फरमाते समय उत्तराध्ययन सूत्र का प्रथम अध्ययन विनय बताया। विनय धर्म का मूल है, विनय मोक्ष मार्ग है, विनय तप है, विनय निर्जरा है, विनय पुण्य है, विनय से ही व्यक्ति ज्ञान ग्रहण कर सकता है। खेत की उपजाऊ मिट्टी में विनय था वह मुलायम थी तो पानी प्राप्त करके बीज अंकुरित करने की क्षमता पैदा हुई।
अन्यथा पत्थर पर कितना ही पानी डालो विनय नहीं है अहंकार के कारण उसकी अकड़ नहीं जाती है। पूज्या श्री जी ने उदाहरण देते हुए फरमाया कि रोम में पादरियों के गुरु पोप के समक्ष एक गांव का गरीब वृद्ध व्यक्ति आया और नमस्कार किया तो वो भी अपने सिंहासन से खड़े होकर वृद्ध का सम्मान किया और नमस्कार किया। इतने उच्च पद पर होने के बावजूद उनमें विनम्रता थी विनय था तो सर्वस्व उनकी प्रशंसा हुई। विनय का अर्थ तन के साथ मन भी झुकना चाहिए यूं तो कोई व्यक्ति जिम करते हुए 100 बार झुकता है लेकिन अपने पिता के सामने एक बार भी झुकने में शर्म महसूस करता है तो वह सम्मान पाने लायक नहीं है। एक लड़की पहली बार ससुराल से मायके में आती है तो उसकी सखियां उससे पूछती है तेरी सास कैसी है वह कहती है मैं अच्छी हूं, तेरी ननंद कैसी है वह कहती है मैं अच्छी हूं, तेरे ससुर कैसे हैं वह कहती है मैं अच्छी हूं, तेरे पति कैसे हैं वह कहती है मैं अच्छी हूं। यानी कि कोई कैसा भी हो मैं अच्छी हूं तो सब अच्छे हैं। यह होती है विनम्रता विनय और सामने वाले को परिवर्तित करने की कला। अतः विनय से ज्ञान अर्जन कर अपने जीवन को उच्च से उच्चतर बनाया जा सकता है।