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चित्तोड़गढ़-शहर में बेसहारो का सहारा खुशहाल वृद्धा आश्रम  बेसहारा घूम रहे बुजुर्गो, महिलाओं, बच्चो को घर लाती हैं, फिर उनकी सेवा करती हैं।

वीरधरा न्यूज़।चित्तौडग़ढ़@ श्री दुर्गेश कुमार लक्षकार।


चित्तौडग़ढ़।अपनो ने दिया है धोखा गैरो की जरूरत क्या… जी हां जब अपने ही साथ छोड़ दे और घर परिवार से परित्याग कर दे तो दूसरा कोन अपनाएगा और क्यों अपनाएगा। लेकिन राजस्थान के चित्तौडगढ़ में एक लड़की ऐसी है जो अपनो से धोखा खाए और परित्याग कर चुके बुजुर्ग महिला पुरुषो को अपनाकर अपने परिवार जैसी सेवा कर रही है। यह है

चितौड़गढ़ शहर का अनूठा खुशहाल वृद्धा आश्रम, जिसे चलाने वाली एक 23 वर्षीय लड़की है। जो हर तरफ से लाचार बुजुर्ग महिला, पुरुषो, बच्चो व महिलाओं को सहारा दे रही है। जिसने अपनी पढ़ाई, कैरियर, हंसी खुशी, परिवार, जीवन सबको दांव पर लगा रखा है और सेवा का संकल्प साकार कर रही है।

सेवाभावी 23 वर्षीय यह लडकी नंदिनी त्रिपाठी है जो चितौड़गढ़ के कपासन की रहने वाली है। जिसे सेवा करने की सीख अपने पिता से मिली है। कोरोनाकाल का समय और अपनो के द्वारा अपनो का परित्याग किए गए महिला पुरुषो बुजुर्गो और बच्चो को देख निराश्रितो की सेवा करने का संकल्प लेकर नंदिनी अपने मिशन की और चल पड़ी, उसने विचार करके अपने पिता के एनजीओ द्वारकेश सेवा समिति के अंतर्गत 1 जुलाई 2022 को खुशहाल वृद्धाश्रम की नींव रखी जिसे चितौड़गढ़ के गणेशपुरा गांव में 5 बुजुर्गो को सहारा देकर संचालित किया गया।

 

अपनों ने दिया है धोखा गैरों की जरूरत क्या…

 

आश्रम की शुरुआत रोज सुबह यही सोचकर इन्हीं लाइनों से होती है। इसी के साथ शुरू होती है शहर में घूम रहे बेसहारा बुजुर्ग महिला पुरुष, बच्चो की तलाश और यहां रह रहे बुजुर्गो की देखरेख।

इस आश्रम का पूरा नाम खुशहाल वृद्धा आश्रम है। ये आश्रम सड़कों, रेलवे स्टेशनों, फुटपाथो पर अनाथ बेसहारा व मंदबुद्धि इंसानों का सहारा बन परिवार बना हुआ है।

खास बात यह है कि इस आश्रम में वर्तमान में 10 बेसहारा व बीमार बुजुर्गो और बच्चो को घर जैसा आराम मिल रहा है। बुजुर्गों का समय व्यतीत हो जाए और उनका मन लगा रहे, उनका शरीर कर्मशील और स्वस्थ रहें इसके लिए आश्रम में बुजुर्गो द्वारा छलनी पैकिंग का कार्य किया जा रहा है।

संस्था की संचालिका नंदिनी त्रिपाठी बताती हैं कि आश्रम में निवासरत सदस्यों में से 4 की मृत्यु हो गई, जिसमें से आश्रम द्वारा एक का मृत्यु उपरांत प्रथम देहदान करवाया गया है। वही आश्रम के 1 जुलाई 2024 को 2 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में 6 देहदान के संकल्प पत्र राजकीय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय चित्तौड़गढ़ में डॉक्टर आशीष शर्मा के सानिध्य में भरे गए है।

इन 2 वर्षों में जब जब मेरा हौसला डगमगाया तब तक आश्रम परिवार की चंचल शर्मा ने तन और मन से सदैव उसे पूर्ण सहयोग दिया है।

कई बार लोगों ने उसका मजाक बनाया ये क्या आश्रम चलायेगी आश्रम चलाने के लिए पॉवर, पैसा, गाड़ी सब चाहिए पर उसने उसके मन की सुनी क्योंकि आश्रम चलाने के लिए त्याग, प्रेम, स्नेह और निराश्रितों के प्रति अपनत्व की भावना चाहिए।

त्रिपाठी बताती है कि ईश्वर का दिया हुआ प्रसाद समझो या चमत्कार बड़े से बड़ा मनोरोगी जिसे जीने मरने की सुध नहीं वह उनके मिलते ही स्वयं को स्वस्थ व सुरक्षित महसूस करने लगता है।

 

आश्रम कार्य में दुःखो की कहानी अपनी जुबानी

 

आश्रम संचालिका नंदिनी आगे बताती है कि पूर्व में 2 वर्षों से आश्रम चित्तौड़गढ़ जिले की गणेशपुरा ग्राम में संचालित था परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया स्थानीय असामाजिक तत्वों द्वारा हफ्ता वसूली, सामाजिक कुरीतियों जैसे छुआछूत एवं अंधविश्वास के चलते मुझे शारीरिक एवं मानसिक चोट पहुंचाई गई। उनकी सोच इस मोड़ पर आकर रुक गई कि यह कम उम्र की लड़की कैसे इतने लोगों का पेट भर रही है। इसी के चलते असामाजिक तत्वों ने कभी आश्रम की खिड़कियों के कांच फोड़ दिए तो कभी सरकारी कर्मचारियों पर दबाव बनाकर बिजली कनेक्शन मीटर सहित कटवा दिया। परंतु मैंने हार नहीं मानी और अपने हौसलों को बुलंद करते हुए सामना किया तत्पश्चात स्थान परिवर्तन करते हुए आश्रम को चित्तौड़गढ़ शहर के कपासन चौराहे के कालिका नगर पुष्प विहार पर शिफ्ट कर स्थापित कर दिया गया।

 

सदर थाने द्वारा मुझे कहीं दफा जलील किया गया

 

साथ ही एक पीड़िता के साथ हुए घटनाक्रम को लेकर जब पेश हुई तो मुझे यह कहके भगा दिया गया की ये महिलाए ऐसे ही होती है, इसके साथ तुम्हे भी देह व्यापार में अंदर डाल देंगे उस घड़ी हालात ऐसे बन गए की मैं सोचने पर मजबूर हो गई की सेवा करना कोई गुनाह है या अपराध है।

 

सकारात्मक लोग एवं दानदाताओं मुख्यत

 

आरपीएफ से मुझे समय समय पर हौसला ओर इस सेवा कार्य में सहयोग मिलता रहा। साथ ही अन्य समाजसेवियों द्वारा मार्गदर्शन और हौसला सहयोग मिलता रहा है। यह 2 वर्षों का समय मेरे लिए बहुत संघर्षमय रहा है। किराए के भवन में आश्रम चलाने के बावजूद अन्य खर्चो की पूर्ति के लिए मुझे आर्थिक परिस्थितियों से जूझना पड़ा, पीड़ितों को लाने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं होता था। किराए की गाड़ी के लिए भी मुझे 10 बार मनन करना पड़ता था फिर जब मैंने स्कूटी ली वही एकमात्र मेरा सहारा बनी 40 किलोमीटर तक की दूरी तय करके भी अकेले बुजुर्गो को खुद से दुप्पटे से बांधकर आश्रम तक लाती हु।

नंदिनी अब तक कई बेसहारा व बीमार बुजुर्गो को ठीक करके उनकी घर वापसी भी करवा चुकी हैं।

कई बार सड़कों पर बदहवास हालात में महिलाएं मिलती हैं। कई केस में महिलाओं के शरीर पर गहरे जख्म भी होते हैं, लेकिन इनका इलाज नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में हमें जैसे ही ऐसी महिलाओं की सूचना मिलती है तो महिला आपातकालीन वैन मौके पर पहुंचती है, जो महिला को तत्काल आश्रम लाकर इलाज शुरू करवाती है।

 

 बुजुर्गो को नहलाने व खिलाने- पिलाने तक का पूरा काम भी वही करती हैं

 

प्रसाशन और आमजन का साथ मिला तो आगामी वर्षों में आश्रम का अपना भवन के साथ यहां 500 बुजुर्गो निराश्रीतो की सेवा की व्यवस्था करने का लक्ष्य है। जहां वातानुकूलित कमरे, मेस व किचन सहित अन्य सुविधाएं शामिल की जाएंगी। आपको बेसहारा बुजुर्ग महिला पुरुष बच्चे दिखे तो इस नंबर पर 8302410974 फोन या व्हाट्सएप करें।

 

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