वीरधरा न्यूज़। चित्तौडग़ढ़@ श्रीमती दीपिका जैन।
चित्तौडग़ढ़।कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ द्वारा आयोजित 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता पाठ्यक्रम प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण के समापन समारोह के अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. आरए कौशिक, निदेशक प्रसार, प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में प्रशिक्षणार्थियों को सच्ची लग्न व निष्ठा से अपने व्यवसाय को अपनाने के साथ ही किसानों को सही समय पर सही सुझाव देकर अप्रत्यक्ष रूप से उनके लिए बदलाव अभिकर्ता के रूप में सहायता करने के लिए प्रोत्साहित किया। अपने उद्बोधन में डॉ. कौशिक ने यह भी कहा कि इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने के उपरान्त सभी उर्वरक विक्रेताओं को किसानों से सीधा सम्पर्क स्थापित कर विभिन्न प्रकार की नवीनतम एवं आधुनिक कृषि तकनीकियों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और उनकी आमदनी को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
डॉ. कौशिक ने कार्यक्रम दौरान सभी प्रतिभागियों को कृषि विज्ञान केन्द्र से जुड़े रहने के लिये कहा ताकि कृषि में हो रहे नवाचारों द्वारा आप लोग किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित कर सकते है। डॉ. कौशिक ने सीबीआईएनडब्ल्यू कान्सेप्ट पर बात करते हुये कस्टमाईज उर्वरक, सन्तुलित उर्वरक एवं समन्वित उर्वरक प्रबन्धन के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश डाला और नेनो फर्टिलाईजर एवं जल में घुलनशील उर्वरकों के महत्व पर भी चर्चा की।
खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ. रतन लाल सोलंकी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय सुझाऐ तथा टिकाऊ खेती समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधीकरण, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन आदि विषयों पर जानकारी देकर उनका ज्ञान वर्धन किया। उर्वरकों के सन्तुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्व एवं मिटटी नमूना लेने का तरीका, एसटीएफआर मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक सिफारिश पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबन्धन, समन्वित पोषक तत्व की कमी के लक्षण, जैविक खेती और उसके लाभ, वर्मी कम्पोस्ट खाद, वर्मी वॉश व डिकम्पोजर आदि बनाने का प्रायोगिक कार्य प्रशिक्षणार्थियों से करवाकर समझाया। प्रशिक्षण के समापन समारोह में खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी प्रशिक्षणार्थियों को अतिथि द्वारा प्रमाण-पत्र एवं प्रशिक्षण सम्बन्धी साहित्य प्रदान किये गये।
प्रशिक्षण सह समन्वयक दीपा इन्दौरिया, कार्यक्रम सहायक ने बताया कि इस प्रशिक्षण में चित्तौड़गढ़, उदयपुर एवं प्रतापगढ जिले की विभिन्न पंचायत समितियो से 40 प्रशिक्षणार्थियों ने भाग लिया जिन्हें उर्वरक सर्टिफिकेट कोर्स सम्बन्धी सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक जानकारियां विश्वविद्यालय के
विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा तकनीकी जानकारी प्रदान की गई। जिसमें डॉ. केके यादव, आचार्य, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने मृदा स्वास्थ्य के विभिन्न पैरामिटर्स एवं पानी की गुणवत्ता के बारे में बताया। दिनेश जागा, संयुक्त निदेशक, कृषि (विस्तार) विभाग, चित्तौड़गढ़ ने प्रशिक्षणार्थियो को उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के आदेश व नियमो पर चर्चा व कृषि आदान की गुणवत्ता पर प्रकाश डाला। विक्रम सिंह, कृषि अनुसंधान (रसायन) अधिकारी, डॉ. दिनेश जाट, सहायक कृषि (रसायन) अनुसंधान अधिकारी, गोपाल धाकड़, प्रशान्त जाटोलिया, जोगेन्द्र सिंह, कृषि अधिकारी, कृषि विस्तार विभाग, चित्तौड़गढ़ इत्यादि ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड का महत्व, मृदा की रेटींग, मिटटी व जल परीक्षण एवं मिटटी जांच के आधार पर बना मृदा स्वास्थ्य कार्ड को उपयोग में लेने का आव्हान किया। ओपी शर्मा, उप निदेशक, आईपीएम, चित्तौड़गढ़ ने प्रशिक्षणार्थियो को फसलो की उन्नत शस्य कियाओ एवं संतुलित मात्रा में उर्वरको के उपयोग के बारे में बताया। राजाराम सुखवाल, उप निदेशक, मुकेश धाकड़, सीताफल उत्कृष्टता केन्द्र, चित्तौड़गढ़ ने जैविक खेती के विभिन्न आयाम एवं सीताफल की उन्नत शस्य कियाओ एवं विभिन्न किस्मो के बारे में बताया। डॉ. शंकर लाल जाट उप निदेशक उद्यान, डॉ. प्रकाश चन्द्र खटीक, सहायक निदेशक, उद्यान विभाग, चित्तौड़गढ़ ने उद्यानिकी फसलो फलो एवं सब्जी की फसलो में संतुलित उर्वरको का प्रयोग व उद्यान विभाग द्वारा दी जाने वाली विभिन्न योजनाओ एवं कृषि यंत्रो में दिये जाने वाले अनुदानो के बारे में बताया। डॉ. राजेन्द्र सामोता, परियोजना निदेशक आत्मा, कुलदीप सिंह चुण्डावत, उप परियोजना निदेशक आत्मा, चित्तौड़गढ़ ने उर्वरको की गणना एवं आत्मा विभाग पर किसानो के हित में राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओ एवं अनुदानो के बारे में बताया। ज्योति प्रकाश सिरोया, ने खुदरा उर्वरक विक्रेता से नमूना लेने की प्रकिया एवं नमूने की सिलिंग करने की विधि का प्रायोगिक तौर पर प्रदर्शन किया। महेन्द्र कुमार डूडी, जिला विकास प्रबन्धक, चित्तौड़गढ़ ने बैंकिग ऋण सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध कराई। मुकेश आमेटा, प्रबन्धक इफको ने संतुलित उर्वरक प्रबंधन के बारे में बताया। देव सिंह शाह, प्रबन्धक, राजस्थान राज्य भंडारण निगम, चित्तौड़गढ़ ने बीज, खाद व उर्वरको का भण्डारण के बारे में जानकारी दी। डॉ. मुकेश शर्मा, प्रभारी, पशुधन अनुसंधान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ ने कृषि में पशुधन के महत्व के बारे में विस्तृत से बताया। डॉ. ममता चन्देल, टीचिंग एसोसिएट, पशुधन अनुसंधान केन्द्र, चित्तौड़गढ़ ने गोबर की कम्पोस्ट खाद के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थी को भ्रमण कराया गया जिसमें आईपीएम, चित्तौड़गढ़ की सुश्री प्रियंका झाला कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) ने ट्राइकोड्रमा का निर्माण के बारे में विस्तार से प्रायोगिक तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई, एवं सीताफल उत्कृष्टता केन्द्र में हाईटेक नर्सरी, पॉलीहाउस व सीताफल की विभिन्न किस्मो का भ्रमण के दौरान अवलोकन किया। सुनील गगरानी, मैसर्स स्वास्तिक बीज एवं खाद विकता सेंती ने प्रशिक्षणार्थियो को अपना अनुभव एवं रिकार्ड संधारण के बारे में विस्तृत जानकारी दी। मदन गिरि गोस्वामी, कट्स, चित्तौड़गढ़ ने प्रशिक्षणार्थियो को खाद बीज की दुकान में स्टोर रजिस्टर में बीज व उर्वरको का इन्द्राज एवं एफपीओ के गठन व इसके महत्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम सहायक संजय कुमार धाकड़ ने प्रशिक्षण के प्रायोगिक कार्य मिटटी नमूना लेना एवं केविके फार्म पर लगी विभिन्न सजीव इकाइया, नर्सरी, बगीचा, अजोला, बकरी इकाई, वर्मी कम्पोस्ट, मुर्गीपालन इकाई आदि में भ्रमण कराकर तकनीकी जानकारी दी। दीपा इन्दौरिया ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए इस प्रशिक्षण का लाभ किसानों तक पहुंचाने की अपील की साथ ही प्रशिक्षण के समापन समारोह में पधारे अतिथियों एवं प्रशिक्षणार्थियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।