चित्तौड़गढ़-पाठकों की स्मृति में स्थायी रहने वाली रचना ही कालजयी : पदमश्री देवल गहन वैचारिक मंथन के साथ संगमन-24 का समापन।
वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़। कोई रचना तभी कालजयी हो सकती हैं जब रचना के पात्र और संवाद पाठकों की स्मृति में अटक कर रह जाएं। सृजनात्मकता के क्षितिज विषयक साहित्यिक समागम में बोलते हुए प्रसिद्द साहित्यकार और पद्मश्री से सम्मानित चंद्रप्रकाश देवल ने समापन सत्र में कहा कि कुदरत ने रचनाकारों के भीतर वो तड़प पैदा कि है कि वो सृजन किये बिना नहीं रह सकता, सृजन मानव का मूल स्वभाव है।
भाषा के वैज्ञानिक पक्ष पर बात रखते हुए ड़ॉ सत्यनारायण व्यास ने पाणिनि, कात्यायिनी, पतंजलि और भृतहरि के उदाहरण देते हुए भाषा के विभिन्न पक्षों को सामने रखा। डॉ. व्यास ने कहा कि ज्ञान प्राप्ति के लिए शास्त्र से बड़ी शक्ति मनुष्य का विवेक हैं।इसी सत्र में युवा रचनाकर रेणु व्यास ने कहा कि मूल्यों के अवमूल्यन तथा शरण के कारण सृजनात्मकता बाधित होती है। उन्होंने विविध आन्दोलनों का जिक्र करते हुए उन्हें सृजन की प्रभावशाली प्रेरणा बताया। आगे कहा कि जब हम बेहतर समाज नहीं बना पाएंगे तो अच्छा साहित्य कैसे लिख पाएंगे।
राजाराम भादू ने अपने खोजने और संधान करने की दृष्टि को सृजना के लिए मूल्यवान आधार माना। उन्होंने विभिन्न प्रश्नों के ज़रिए गोष्ठी के विषय को खोलने का प्रयास किया। इसी सत्र में बया पत्रिका के सम्पादक गौरीनाथ ने कहा कि खबरों को दबाने तथा तथ्यों को छुपाने कि कोशिशों के दौर में रचनाशीलता का दायरा बढ़ जाता है। रचनाकर पर इन्ही छुपी हुए तथ्यों को सामने लाने की महत्ती जिम्मेदारी आ जाती है। चित्रकार डॉ. हेमंत द्विवेदी ने कला के विभिन्न पक्षों को सारगर्भित रूप से श्रोताओं के सामने रखा। अपनी बात कहने में एक वीडियो कला माध्यम का उपयोग करते हुए फिल्म भी दिखाई।
संगमन के संयोजक कथाकर प्रियवंद ने संगमन की पृष्ठभूमि पर अपने विचार रखने के बाद वर्तमान दौर में साहित्य की भूमिका को अत्यंत महत्त्वपूर्ण बताया और कहा कि मैं चाहता हूँ कि मेरी रचनाएं जटिल होते हुए दर्शन के स्तर पर पहुँच जाए। इस मौके पर बसेड़ा की छात्रा किरण सेन ने विद्यार्थी वर्ग की तरफ से अपनी बात रखी। आभार माणिक ने दिया और सत्र का संचालन डॉ कनक जैन ने किया।
इससे पूर्व रविवार को प्रथम सत्र में बोलते हुए प्रसिद्द पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने कहा कि पूंजी और बाजारवाद के जमाव और प्रभाव ने पत्रकारिता का स्वरुप बदलकर धुंधला कर दिया है। सृजनात्मक मस्तिष्क के बिना प्राणवान खबर लिखना अत्यंत कठिन है। वर्तमान पत्रकारिता में चमक तो दिखती है पर वो निष्प्राण होती जा रही है। पत्रकारिता के लिए डिग्री मायने नहीं रखती बल्कि भाषा पर पकड़ महत्वपूर्ण हैं। आज की पत्रकारिता में त्रुटिपूर्ण भाषा चिंता का विषय हैं।
इसी सत्र में जानेमाने रंगकर्मी भानु भारती ने बताया कि आंतरिक बैचेनी ही आपको सृजन की ओर ले जाती है। रंगमंच हमें पुनर्सृजित करके जीवन-दृष्टि देता है।
कहानीकार चरण सिंह पथिक ने कहा कि लेखक को स्वयं अपने से बात करनी चाहिए और फिर रचना का सृजन। मूल्यों की रक्षा के बिना कोई सृजन नहीं हो सकता है। रचनात्मकता हमारे हाथ में बँधी हुई नहीं है बल्कि वह तो खुद हमें बांधती है और आगे ले जाती हैं। कवि अंनत भटनागर ने अपने वक्तव्य में साझा किया कि कविताएं समय से मुठभेड़ करती हुई होनी चाहिए। प्रतिरोध ही आपकी रचना को सार्थकता देता हैं। युवा रचनाकर अविनाश मिश्र ने अपनी हिस्सेदारी निभाते हुए कहा कि धारा के विपरीत बहकर ही समजापयोगी साहित्य का सृजन हो सकता है।
उदयपुर से आई कहानीकार तराना परवीन का मानना है कि अनुभव विचार प्रक्रिया में मथकर रचना की सृजन पृष्ठभूमि तैयार करता है।सत्र के अंत में राजस्थान के लोकप्रिय आलोचक और कथाकार हेतु भारद्वाज ने कहा कि मूल्यों की रक्षा का भाव सृजन के लिए अत्यंत ज़रूरी है। जीवन में गहरा धंसकर ही रचनात्मकता में निखार लाया जा सकता है। सत्र का संचालन जयपुर से आई पत्रकार तसनीम खान ने किया।