वीरधरा न्यूज़।निम्बाहेड़ा@ श्री दिलीप बक्षी।
निम्बाहेड़ा।आदर्श कॉलोनी स्थित समता भवन में शासन दिपीका प्रेमलता आदि ढाणा की निश्रा में धर्मगंगा प्रवाहित हो रही है जिसमें कई धर्मानुरागी डूबकिया लगा रहे है तो कई उनकी प्रेरणा से तप साधना कर अपनी आत्मा को निर्मल एवं उज्जवल बनाने की ओर अग्रसर है मंगलवार को तीन मासक्षमण की पूर्णता के अवसर पर धर्मसमा को सम्बोधित करते हुऐ शासन दीपिका महासति प्रेमलता ने अपने प्रवचन में बताया कि तप का मुल आधार लोकिक इच्छाओं को संयमीत करना है, सम्भोग के रास्ते समाधी को पाना बेमानी है। इन्द्रीयों की प्रवृतियां में उलझ कर हम अपना भव खराब कर रहे है उन्होने बताया इन्द्रीयों के व मन के नचाये नाचने पर तप नही हो सकता, भगवान महावीर ने भी बताया कि इच्छाओ का निरोध करना ही तप हे इच्छाओं का दमन करना तप नही है, उसको सयंमित करेगें तो ही हमारा मन निर्मल व सरल बनेगा और मन निर्मल और कर्म की निर्जरा ही आत्मा को परमात्मा से मिलने की पहली सिढ़ी है तप शक्ति का मुख्य स्त्रोत है उससे आत्मा निर्मल व पवित्र बनती है साथ ही तप से ही मनुष्य में अन्य गुणो का समावेश अपने आप हो जाता है। चातुर्मास के दौरान चल रही विभिन्न तपस्याओं की अनुमोदना में साध्वीश्री ने फरमाया की अनादिकाल से पानी में लुडकता पत्थर पानी के थपेडे खा खा कर शिवलिंग बन जाता है और वह पूजनीय हो जाता है पत्थर का लुडकना व पानी के थपेडे खाना उसकी तपस्या है और पत्थर उसमें खरा उतरता है तभी वह शिवलिंग बन पुजनीया होता है। ठिक उसी प्रकार आत्मा तप रूपी पानी के थपेडे खा कर निर्मल हो जाती है और निर्मल आत्मा ही मोक्ष मार्ग की ओर प्रशस्त होती है प्रभु के शरण में आना हो तो प्रेम रस के भाव में डुबना पडेगा और प्रेम भाव के रस में डुबने पर ही आत्मा निर्मल होगी और सहज ही प्रभु की शरण को पाया जा सकता है। इससे पूर्व साध्वी पुष्पलता ने अपने अमृत प्रवचन में बताया कि मनुष्य जीवन में कर्माे के बन्धन में बंधा हुआ है और कर्माे के बन्धन तभी टुटते है जब मनुश्य जप और तप से अपनी आत्मा को उज्जवल और पवित्र बनाता है। सोना मिट्टी में दबा होता है तब उसमें कई प्रकार के आवरण होतें है पर जब उसे मिट्टी से निकाल कर उसको शुद्व करने की प्रक्रिया में जितना तपाया जाता है उसकी सुन्दरता व शुद्वता उतनी ही निखर कर सामने आती है ठीक उसी प्रकार हमारी आत्मा पर जो अनेक प्रकार के मेल, काम क्रोध, मोह, माया, लोभ आदी के आवरण है, इन्सान तप के द्वारा अपनी आत्मा को कुन्दन के समान निखार कर उज्जवल बनाता है। धर्म सभा के अंत में तप की अनुमोदना में कई वक्ताओ ने अपने विचार व्यक्त किये वही कई बहीनों ने स्तवन के माध्यम से सभी तपस्वी भाई बहीनो की अनुमोदना की। तंपस्या के क्रम में अपने कर्माे की निर्जरा कर जीवन को निर्मल बनाने के लिये नगर की सुश्राविका मन्जु जारोली धर्म सहायीका नाथुलाल जारोली ने 31 दिवसीय तप, सरोज सहलोत धर्म सहायिका रत्नेश सहलोत एवं अभिनन्दन पुत्र अरूण मारू ने 30 दिवसीय तप आराधना के प्रत्याख्यान ग्रहण किये तो पुरा समता भवन आचार्य श्री के जयकारो से गुजायमान हो उठा। इससे पूर्व सोमवार को 100 से अधिक श्रावक श्राविकाओं ने 9 सामायिक के साथ दयावृत धारण कर तपस्याओें की अनुमोदना की इस अवसर पर इन्दौर रतलाम, मन्दसौर, नीमच उदयपुर, छोटीसादडी, बडीसादडी, निकुम्भ, प्रतापगढ, अजमेर, पाली, कानोड, बेगलोर, डूंगला रेलमंगरा, काकंरोली, गंगापुर, कुवारियों सहित कई स्थानों के सेंकडो की तादाद में श्रृद्वालु उपस्थित थे।