वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़। स्वराज 75 आयोजन समिति के सदस्य मुकेश नाहटा ने बताया कि स्वराज 75 आयोजन समिति के तत्वावधान में प्रातः स्मरणीय, वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप की जयंती पर हो रहे कार्यक्रमों की कड़ी में गुरूवार को सायं 7 बजे नई पुलिया स्थित गणगौर गार्डन में कार्यक्रम किया गया। गणगौर गार्डन में अन्दर प्रवेश करते ही एलईडी फोटो की एक आर्ट गैलेरी बनाई गई जो महाराणा प्रताप के जीवन को दर्शाती है। अन्दर घुसते ही महाराणा प्रताप की डेढ़ फीट मूर्ति पर श्री कल्लाजी राठौड़ कल्याण वेद पीठ निम्बाहेड़ा के 21 बटूक पंडितों द्वारा मंत्रोच्चार के साथ प्रत्येक व्यक्ति ने मूर्ति पर पंचामृत से अभिषेक किया। सभा स्थल पर पहुँचते ही मंच पर एकलिंगनाथ जी की विशाल तस्वीर के पास ही छः फीट की महाराणा प्रताप की मूर्ति रखी गई व मंच पर अतिथि विराजमान हुए।
अतिथियों में संत यति विनोद महाराज, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल उदयपुर नंदकिशोर, झाला मानसिंह के वंशज घनश्यामसिंह बड़ीसादड़ी, पानरवा के राणा पूंजा के वंशज हनुमानसिंह, भामाशाह के वंशज तेजसिंह कावड़िया मंच पर विराजमान थे। मुख्य वक्ता के रूप में विहिप के प्रान्त उपाध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह राव माली, गाड़िया लोहार के राष्ट्रीय अध्यक्ष कालुराम लोहार फौजी उपस्थित रहे। साथ ही आरएसएस के विभाग संघचालक हेमंत जैन, जिला संघचालक अनिरूद्धसिंह भाटी, स्वराज 75 समिति के संयोजक भूपेन्द्र आचार्य उपस्थित थे। मंच संचालन धर्मपाल गोयल ने किया। प्रताप के सेनापतियों के वंशजों का परिचय लक्ष्मीनारायण वेद ने दिया। समिति के सदस्यों द्वारा अतिथियों का शाॅल, दुपट्टा, स्मृति चिह्न देकर स्वागत सम्मान किया गया। कार्यकर्ताओं द्वारा पार्किंग, जल, भोजन, लाईट, साउण्ड, टेन्ट आदि कार्यक्रम की व्यवस्था संभाली गई। अंत में भोजन व्यवस्था रखी गई।
मुख्य वक्ता विहिप प्रान्त उपाध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह राव ने कहा कि महाराणा प्रताप मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक थे। उनका नाम वीरता व दृढ़ प्रण के लिए अमर है। 20 हजार सैनिकों के साथ अकबर की 80 हजार सेना को हराकर हल्दी घाटी युद्ध जीता गया। इतिहास में तोड़ मरोड़ कर बताया गया कि राणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध हारे, अगर राणा प्रताप युद्ध हारे होते तो मानसिंह को दिल्ली जाने पर 6 महीने का देश निकाला नहीं मिलता। बल्कि हीरे जवाहर, राज्य से नवाजा जाता, पर उन्हें देश निकाला किया गया इससे साबित होता है कि राणा प्रताप हल्दी घाटी युद्ध जीते।
भारत के स्वत्व के लिए एक हजार वर्षों तक भारत में अगर किसी ने संघर्ष किया तो वह मेवाड़ भूमि ने किया। महाराणा प्रताप की सेना में झाला मानसिंह जैसे सेनापति थे जो अपने प्राण देकर महाराणा प्रताप की जान बचाई तो हकीम खां सूरि जैसे देशभक्त मुसलमान थे तो भामाशाह जैसे सेनापति थे जिन्होंने अपना सब कुछ राणा को भेंट कर दिया जिससे 12 वर्षों तक सेनाओं का खर्च चल सके। उनके साथ भीलों का नेतृत्व करने वाले भील राजा पूंजा थे जो आदिवासी क्षेत्रों से आते हैं, यही महाराणा प्रताप की समरसता को दर्शाता है कि वे सभी जातियों को एक साथ लेकर चलते थे। साथ ही महाराणा प्रताप में इतनी ताकत थी कि बलाले खां जैसे आताताई का उनकी तलवार ने सिर से लेकर उसके शरीर के दो फाड़ करते हुए घोड़े के भी दो फाड़ कर दिये। महाराणा प्रताप के चरित्र को लेकर भी जब खामखाना की बेगम को उनके पुत्र अमरसिंह उठा लाये तो उन्होंने कहा कि हमारा युद्ध मुगलों से उनकी औरतों से नहीं। उन्हें ससम्मान छुड़ाया गया, यही दर्शाता है कि महाराणा प्रताप कितने महान थे। महाराणा प्रताप को कीका कहकर भी पुकारा जाता था। मेवाड़ के लोग तो लोग पशु भी अपना बलिदान देने में पीछे नहीं हटे, उनके घोड़े चेतक के बारे में सभी जानते हैं कि उन्होंने नाला कूद कर उसने प्रताप की जान बचाने में अपने प्राण त्याग दिये, साथ ही उनके हाथी रामप्रसाद जिसको अकबर ने कैद कर लिया और खाने के लिए गन्ने और बहुत कुछ दिया तो भी उसने 18 दिन तक कुछ नहीं खाकर स्वामीभक्ति में अन्ततोगत्वा अपने प्राण त्यागे। महाराणा प्रताप इसके साथ अपने दृढ़ संकल्प को भी अपनाया कि जब तक मेवाड़ आजाद नहीं करा लेते तब तक पलंग पर नहीं सोना, सोने चांदियों की थाली में भोजन नहीं करना। इतिहास में यह भी उल्लेख है कि उनके प्रण में जब तक मेवाड़ नहीं जीतने तक बाल, नाखुन नहीं काटने का उल्लेख है। महाराणा प्रताप ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया।
समिति के सदस्यों में नारायण सोनी, मुकेश नाहटा, मुदित मेनारिया, शिरीष त्रिपाठी, मनोज साहू, मोनू सलूजा, श्रवण सोनी, सुरेन्द्र सिंह, योगेन्द्र पाल सिंह, ओमप्रकाश शर्मा, मुन्ना गुर्जर, तेजपालसिंह, चेतन गौड़, रिश्मी सक्सेना, रजनी, विकास सोनी, अमन गौड़, चेतन सामरिया, प्रहलाद धाकड़, दीपक शर्मा, परमजीतसिंह, भारत सिंह आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम में पूर्व मंत्री श्रीचंद कृपलानी, विधायक चन्द्रभानसिंह आक्या, रणजीतसिंह, कमलेश पुरोहित, बद्रीलाल जाट, देवीसिंह राणावत, ओम उपाध्याय, भोलाराम प्रजापत, विश्वनाथ टांक आदि उपस्थित थे। स्वागत उद्बोधन अध्यक्षता कर रहे लेफ्टिनेंट जनरल नन्दकिशोर ने दिया। आभार स्वराज 75 समिति के संयोजक भूपेन्द्र आचार्य ने व्यक्त किया।