वीरधरा न्यूज़।चित्तोडगढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़।समकित के संग समकित की यात्रा स्ट्रेसफुल लाइफ का सॉल्यूशन प्रवचन श्रृंखला के क्रम में गुरुवार को खातर महल में डॉ समकित मुनि ने 27 दिवसीय उत्तराध्ययन सूत्र के 22 वें अध्ययन में कहा कि जैनागमों में 5 समिति तथा 3 गुप्ति, ये आठ प्रवचन माता कही जाती है । इन आठों से ही संवर धर्म रुपी पुत्र का पालन पोषण होता है।इसलिये इन्हें अष्टरूपी प्रवचनमाता कहा गया है। जिस प्रकार माता अपने बच्चे की रक्षा करती है और किसी भी अनिष्ट से उसकी रक्षा करते हुए उसका पालन-पोषण करती है उसी प्रकार साधक की प्रवृति में तीन गुप्ति और पांच समितियां उसकी पाप से रक्षा करती है।हर क्रिया में प्रमाद रहित क्रिया जो साधक करता है वो अपने व्रतों की रक्षा और पोषण करता है।चारित्र की रक्षा में जो साधक सावधान रहता वो अपने मन- वचन- काया के माध्यम से अपने व्रतों की रक्षा करता है। पांच समिति अर्थात शुभ में प्रवृति की प्रथम समिति इर्या समिति है जिसमें ये बताया जाता है कि कैसे चलना है। श्रद्धा का ज्ञान का आलम्बन लेकर, संशय रहित होकर चलना चाहिए। असावधान होकर चलने वाला दुर्घटना को प्राप्त होता है। दूसरी समिति बोलने से संबंधित है कि हमें कैसे बोलना चाहिए।वाणी का सहारा लेकर भीतर का क्रोध बाहर न निकले अन्यथा क्लेश की पूरी संभावना रहेगी। तीसरी समिति ऐषणा समिति अर्थात कैसे खोजें और कैसे उपयोग करें ।विशुद्ध वस्तु खोजकर रखना और उसका उपयोग करने वाले को जीवन में कभी धक्के नहीँ खाने पड़ेंगे। चौथी समिति आदान-निक्षेपण समिति यानि चीजों को कैसे उपयोग में लाना है। वस्तु के उठाने/रखने में जीवों से बाधा रहित प्रवृति व अजीव के प्रति भी आदर भाव रखना चाहिए। पांचवी समिति प्रतिष्ठापना समिति यानि विसर्जन की कला-वस्तु का सदुपयोग करें। कबाड़ न बनाये। जो आपके काम का नहीं है उसका विसर्जन करें।
तीन गुप्ति अर्थात अशुभ से निवृति में प्रथम मनोगुप्ति अर्थात मन से राग/द्वेष का परित्याग करना ।दूसरीवचन गुप्ति अर्थात असत्य वचन से निवृति कर ध्यान अध्ययन करना ।तीसरी
काय गुप्ति अर्थात हिंसा आदि पापों की निवृति पूर्वक कायोत्सर्ग आदि धारण करना।
प्रचार मंत्री सुधीर जैन ने बताया कि प्रवचन में भवान्त मुनि म सा ,साध्वी विशुद्धि म सा,साध्वी विशाखा म सा विराजित रहे। कार्यक्रम का संचालन श्रीसंघ मंत्री अजीत नाहर ने किया।