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चित्तौड़गढ़-ज्ञानी होने का सार इतना ही है कि किसी के लिए सिरदर्द नहीं बनना- डॉ समकित मुनि।

वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़।समकित के संग समकित की यात्रा स्ट्रेसफुल लाइफ का सोल्यूशन प्रवचन श्रृंखला के क्रम में शनिवार को खातर महल में वर्चुअल प्रवचन सभा में साध्वी विशुद्धि म सा ने कहा स्नेह और विश्वास का घर ही अपना घर होता है ।श्रद्धा, समर्पण, विश्वास से सजाए वह घर ही अपना घर होता है। उठने, बैठने , चलने ,बात करने की शिष्टता होनी चाहिए ।श्रद्धा और विश्वास का पुष्प खिलाओगे तो जीवन में आनंद रहेगा। प्रवचन श्रृंखला में डॉक्टर समकित मुंनि ने कहा कि ज्ञानी होने का सार इतना ही है कि किसी के लिए सिरदर्द नहीं बनना। किसी को परेशान नहीं करना किसी को सताना नहीं। किसी के सिरदर्द ना बनकर हमदर्द बने तो हम ज्ञानी हैं। ज्ञानी होने का निष्कर्ष भीतर की सहनशीलता और समभाव है। बिना समता के अहिंसा का पालन नहीं हो सकता है। सिर्फ नाम समता रखने से ज्ञानी हो जाना कठिन है। किसी के व्यवहार को देखकर पता लगा सकते हैं कि वह खरा है या खोटाहै। जो खरा होता है उसे आसपास के वातावरण की जरूरत नहीं होती। हीरा हर स्थिति में हीरा ही रहता है कांच नहीं बनता। जिसके पास जो है वही देगा। यदि किसी के पास क्रोध है तो वह क्रोध ही देगा। जिंदगी में मिठास बनानी है तो सक्कर यानी प्रेम मिलाना पड़ेगा। ग्रहण सिर्फ सूर्य और चंद्रमा को ही नहीं लगता बल्कि खुशियों को भी ग्रहण लगता है।
प्रचार मंत्री सुधीर जैन ने विज्ञप्ति में बताया कि डॉ समकित मुनि ने कहा कि खुशियों को हलवे की मिठास की जरूरत है करेले के कड़वे रस की नहीं ।ज्ञानी वही है जो सबको संभालना जानता है। बिगाड़ने में तो हम माहिर हैं ,पान खाकर दीवारों को बिगाड़ देते हैं, गुटखा खाकर मुंह को बिगाड़ देते हैं ,शराब पीकर लीवर को बिगाड़ते रहते हैं। जिसमें समता की कला है जो निपुण है वही ज्ञानी है।
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