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चित्तौड़गढ़-एक तरफ बारिश की मार दूसरी और मक्के में फॉल आर्मी वर्म का प्रकोप, अधिकारियों ने जिले में किया निरीक्षण।

वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।

चित्तौड़गढ़। आज दिनांक जुलाई को उप निदेशक कृषि दिनेश कुमार जागा, उप निदेशक-पादप रोग ओ0 पी0 शर्मा, सहायक निदेशक कृषि कपासन डॉ. शंकर लाल जाट, कृषि अधिकारी रामजस खटीक, हीरा लाल सालवी, सहायक कृषि अधिकारी प्रशांत कुमार जाटोलिया, स्थानीय कृषि पर्यवेक्षक पारस रेगर ने ग्राम हापाखेड़ी, शम्भूपुरा एवं रूपाखेड़ी कृषक नारायण लाल गाडरी, मोहन लाल गाडरी, नाराण जाट, बलवंत सिंह, करणीदान चारण, दिनेश शर्मा एवं शम्भू लाल जाट के खेतों पर मक्का फसल का निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान मक्का फसल में फाल आर्मी वार्म नामक कीट का काफी प्रकोप देखा गया जो मक्का को नुकसान कर रहा है।

उप निदेशक कृषि ने बताया कि यह बहु फसल भक्षी किट है जो 80 से ज्यादा फसलों को नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की मादा मोथ मक्का के पौधों की पत्तियों और तनों पर अंडे देती है जो एक बार में 50 से 200 अंडे देती है। यह अंडे 03 से 04 दिनों में फुट जाते है। इनसे जो लार्वा निकलता है जो 14 से 22 दिन तक की अवस्था में रहता है। लार्वा के मुख्य पहचान सिर पर उल्टा वाई के आकार का सफेद निशान दिखाई देता। लार्वा पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाता है जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती है तथा पत्तियों पर गोल-गोल छिद्र नजर आते है। यह लट मक्की के पोटे में बैठकर पौधे को नुकसान करती रहती है। इस लार्वे से बुवाई से लेकर पौधे की हॉर्वेस्ट्रीग अवस्था तक नुकसान पहुंचाता रहता है।
इसके द्वारा विसर्जित मल तने एवं पत्तियों पर नजर आता है। यह लट सुबह से शाम तक सक्रिय रहती है तथा मुख्यतः दोपहर को नुकसान करती है। लारवाल अवस्था पूर्ण हो जाने के पश्चात् प्युपा अवस्था में बदलकर भूरे से काले रंग का होता है। यह अवस्था 07 से 14 दिन तक रह कर इसके पश्चात् पूर्ण नर एवं मादा मोथ बनती है। मक्का के फसल में तीन जीवन चक्र पूर्ण कर लेती है। ऐसी मादा एक रात में 100 से 150 किमी. दूरी तय कर संक्रमण को दूर-दूर तक फेला सकती है।
डॉ . शंकर लाल जाट ने इसके प्रभावी नियंत्रण के उपाय बताये जो बारीक रेत/राख का मक्का के पौधे पर भुरकाव करें, ट्राईकोग्रामा-ट्राईको कॉड 125000/हैक्टर का उपयोग करे, प्रकाश पाश/फेरोमोन ट्रैप्स 5/ एकड़ का उपयोग करें, नीम कीटनाशक अजारडेक्टिन 1500 पीपीएम का घोल 2.5 लीटर/हेक्टेयर, मेटारीजियम एनीसोपली 1 किग्रा/एकड़ या 5 ग्राम/लीटर, बेसिलस थुन्जेन्सिस का 1000 ग्राम/हेक्टेयर या 2 ग्राम/लीटर, कीटनाशी के रूप में एमाबेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी 0.4 ग्राम/लीटर या स्पाइनोसेड 45 एमएल/ली. या थाई मेथोक्सी 12.6 प्रति. लेम्बडासाईहेलोथ्रिन 9.5 प्रति.-0.5 एमएल/लीटर, क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी 2 एमएल/ली. पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।

कृषि अधिकारी, प्रशान्त जाटोलिया ने बताया कि किसानों को हमेशा नियमित रूप से अपने खेतों पर भ्रमण कर कीटों की पहचान करनी चाहिए ताकि समय पर नियंत्रण कर किसान आर्थिक क्षति से बच सकें।

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