बनेड़ा बड़े ही विश्वास के साथ मुख्यमंत्री जी के संदेश हैं कि चिरंजीवी योजना में बीमा कराओ ओर पॉलिसी मिलने पर मुफ्त इलाज पाओ। लेकिन पॉलिसी मिलने के बाद भी एक मीडियाकर्मी के पिता को योजना का लाभ नहीं मिला। पैसे तो लगे ही , उपचार में न जाने क्या कमी रही की मरीज़ ने भी “दम तोड़” दिया। मामला जिले के बनेड़ा निवासी मीडिया कर्मी कमलेश कुमार भंडारी का है। उन्होंने मुख्यमंत्री चिरंजीवी बीमा योजना में अपने परिवार का बीमा करवा रखा था। जिसकी पॉलिसी भी उन्हें मिल चुकी थी पिता सत्यनारायण भण्डारी बीमार हुए तो उन्हें 5 मई को रामस्नेही अस्पताल में भर्ती कराया गया। भंडारी ने चिरंजीवी बीमा योजना के समस्त दस्तावेज उपलब्ध कराते हुए बताया कि उनकी पाँलिसी जन आधार काड संख्या 4881 786026 हैं जो मंजू देवी भण्डारी के नाम से हैं। इस बीमित पाँलिसी में उनके पिताजी सत्य नारायण भण्डारी व स्वयं कमलेश भण्डारी शामिल हैं।इसी दौरान अस्पताल स्टाफ को चिरंजीवी योजना में बीमित होने के सभी दस्तावेज दिखा दिए मगर उन्हें “साफ” मना ही कर दिया गया कि इसका “लाभ” नहीं मिलेगा। “खैर” इलाज तो कराना ही था । चिकित्सालय का शुल्क देकर भर्ती हुए लेकिन ईलाज के दौरान ही मरीज़ सत्य नारायण भण्डारी का 8 मई को निधन हो गया। “दुखी मन” से कमलेश भंडारी ने पिताजी का अंतिम संस्कार किया,लेकिन एक “टीस” रह गई कि जिस “मुख्यमंत्री चिरंजीवी बीमा योजना” के भरोसे वे रामस्नेही अस्पताल में गये वहाँ इसका लाभ नहीं मिल सका। अब रामस्नेही अस्पताल का राज्य सरकार की इस महत्वाकांक्षी बीमा योजना के प्रति “स्नेह” क्यों नहीं रहा ? इसका जवाब “कोई नहीं दे रहा”। जबकि राजस्थान स्टेट हेल्थ एश्योरेंस एजेंसी ने प्रदेश के समस्त जिला कलेक्टर को निर्देश दिए की सरकारी व निजी चिकित्सालय में निशुल्क उपचार किया जाए। हालांकि इस मामले में रविवार 23 मई को रामस्नेही अस्पताल के प्रबंधक दीपक लढ्ढा के मोबाइल नम्बर 94615-30806 पर “शाम पांच बजकर पचपन बजे” फिर “छह बजकर पांच मिनट” और “रात आठ बजकर पांच मिनट” घंटी की ,लेकिन उनका मोबाइल “नो रिपलाई” आ रहा था।इस कारण लढ्ढा से बात नहीं हो पाई। इस योजना का लाभ अन्य निजी चिकित्सालय भी नहीं दे रहे।
वैसे बतादे कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेशवासियों के लिये शुरू की गई चिरंजीवी बीमा योजना में केवल आठ सौ पचास के प्रीमियम पर एक साल में पाँच लाख तक का इलाज मुफ्त करने का आदेश है। अब ऐसे में जब कोई इस योजना में “बीमित” होकर पॉलिसी मिलने के बाद अस्पताल जाए इस उम्मीद से कि पाँच लाख खर्च होने तक तो सरकार का सहारा है लेकिन “अस्पताल” ही “हाथ खींच” ले और “पात्र” होने के बावजूद लाभ नहीं दे तो कहना बनता है कि “ऐसे कैसे होंगे चिरंजीवी भव”।