वीरधरा न्यूज़।आकोला@ श्री शेख सिराजुद्दीन।
आकोला। माहेश्वरी समाज एवं अन्य समाज में “तीज” के त्यौहार को हर्षोल्लास से मनाया गया। यह माहेश्वरीयों का सबसे बड़ा त्योंहार माना जाता है, माहेश्वरी जिस तीज को बहुत आनंद और आराध्य भाव से मनाते हैं, वह देश के विभिन्न भागों में, कजली तीज, बड़ी तीज या सातुड़ी़ तीज के नाम से जानी जाती है। तीज का त्यौंहार श्रावण (सावन) महीने के बाद आनेवाले भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है (छोटी तीज श्रावण में आती है)। “तीज” माहेश्वरी संस्कृति का अभिन्न अंग है। तीज के त्यौंहार पर देवी पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना, सुख, समृद्धि, अच्छी वर्षा और फसल आदि के लिये की जाती है। इस दिन उपवास कर भगवान महेश-पार्वती की पूजा की जाती है। निम्बड़ी (नीम वृक्ष) की पूजा की जाती है, विवाहित महिलाएं हाथों पर मेहंदी लगाती है, चुडिया, बिंदी, पायल आदि पहनकर सोलह श्रृंगार करके तीज की कहानी सुनी गई। और महेश-पार्वती की आरती की गई, रात में चंद्र के उदय होने के बाद परिवार के सभी सदस्य एकसाथ बैठकर, हरएक सदस्य सोने के किसी गहने से (जैसे की अंगूठी) अपना-अपना पिण्डा पासता है (जैसे जन्मदिन के दिन केक काटा जाता है, उसी प्रकार कुछ रीती है जिसे पिण्डा पासना कहा जाता है)। महेश्वरी समाज की महिलाओं ने बताया कि तीज के त्यौहार पर देवी पार्वती के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है, देवी पार्वती ही भाद्रपद के महीने की तृतीय तिथि की देवी के रूप में तीज माता के नाम से अवतरित हुईं, भगवान महेशजी के साथ ही उनकी पत्नी को भी प्रसन्न करने के लिये पार्वतीजी के अवतार तीज माता की उपासना की जाती है। मान्यता के अनुसार, देवी पार्वती बहुत लंबे समय के बाद अपने पति भगवान शिव (महेश) से मिलीं थीं, और इस खुशी में देवी पार्वती ने इस दिन को यह वरदान दिया कि इस दिन जो भी तृतीया तिथि की देवी तीज माता के रूप में उनकी पूजा-आराधना करेगा वे उसकी मनोकामना पूरी करेंगी। तीज के त्यौंहार के दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिये तीज माता की पूजा करती हैं। जबकि पुरुष अच्छी “वर्षा, फसल और व्यापार” के लिये तीज माता की उपासना करते हैं। गत रात तक इस त्यौहार का लेकर आकोला में नीम चौक महेश्वरी समाज की महिलाओं द्वारा बडे ही हर्षोल्लास के साथ मनाया।
फोटो आकोला। तीज के त्यौहार पर कहानियां सुनकर पूजा अर्चना करती महिलाएं।