वीरधरा न्यूज़।चित्तोड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़। श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डाॅ.शिवमुनि की आज्ञानुवर्ती महासाध्वी उपप्रवर्तिनी श्री वीरकान्ता जी की सुशिष्या डाॅ. अर्पिता जी ने लोभी विषयक पाप की विवेचना को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कैलाश पर्वत के समान सोने चान्दी के असंख्यात पहाड़ ही अगर लालची मनुष्य को मिल जाये तो भी उसके लिए ये पर्याप्त नहीं है। इच्छा-तृष्णा आकाश के समान अनन्त है। सोने चांदी के असंख्यात पर्वतों से भी कैसे शांत हो सकती है। दुनिया की कोई भी वस्तु संतोष प्रदान करने में समर्थ नहीं है। संतोष तो आत्मा गुण है। यदि यह प्राप्त हो जाये तो अन्य वस्तुओं की आवश्यकता नहीं है। दूसरे पदार्थ तो व्याकुलता बढ़ाने वाले, तृष्णा की आग को और भड़काने वाले हैं।
लोभी व्यक्ति कंजुस होता है। महल, चौबारे, धन दौलत, सोना जवाहरात डिब्बों में ही धरा रह जायेगा, जब चार कन्धों पर अर्थी जायेगी, केवल दो गज का कफन नसीब होगा। शरीर के वस्त्र, आभूषण भी उतार लिए जायेंगे। बंद मुट्ठी से आज तक कोई गया नहीं है, इसलिए लोभ, लालच को त्याग दो। तृष्णा का कोई पार नहीं है, ज्यों-ज्यों जीवन ढलता जाता है, बुढ़ापा बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों तृष्णा हरी भरी होती जाती है। इसलिए परमात्मा लोभ रूपी पाप को परित्याग करने की प्रेरणा देते हैं। आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह व्यक्ति की लोभवृति के कारण है। धन की आसक्ति से मानव तिर्चंच गति में जाता है। चूहा अपने बिल में अनाज इकट्टा करता रहता है। पेट का गढा कभी भरता नहीं है और किसी के चले जाने से भी दुनिया में कोई अन्तर नहीं आता, आँख बन्द होते ही अपने भी सब पराये हो जाते हैं, केवल प्रभु स्मरण की कमाई ही साथ जाने वाली है। यही सच्चा खजाना है। इसलिए लोभ, लालच छोड़ने योग्य है।
नवकार जाप प्रभारी ने बताया कि गुरुवार 04 अगस्त को अखण्ड नवकार जाप चांदमल, रतनलाल, चिरंजीव, दीपक कर्णावट के आवास 33, विकास नगर, मधुवन में प्रातः 8 से रात्रि 8 बजे तक रहेंगे।