वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़।डॉ समकित मुनि की प्रवचन श्रृंखला “समकित के संग समकित की यात्रा स्ट्रेसफुल लाइफ का सोल्युशन”के क्रम में सोमवार को खातर महल में आयोजित प्रवचन कार्यक्रम में डॉ समकित मुनि म सा ने कहा कि वीर्यअन्तराय कर्म का उदय तब होता है जब शरीर स्वस्थ दिखता है परन्तु किसी भी कार्य में उमंग व उत्साह नहीं हो पाता। यह वीर्यअन्तराय कर्म बंध के कारण होता है। डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारी का यह मूल कारण है।इसके अन्य कारण हैं तप, सेवा, सामायिक करने की शक्ति होने पर भी ये सभी कार्य नहीं करते हैं।
इस वीर्यकर्म अंतराय कर्म के बंधन से बचने के लिएअच्छे कार्य तुरंत करना और गलत कार्य में देरी करना चाहिए।
यह कर्म जब उदय में आता है तो मन विचलित होता है व मन में उमंग और उत्साह की कमी होती है।पूर्व संस्कारों की वजह से गलत कार्यो में एक स्वंयभू आकर्षण होता है।
भगवती सूत्र के अनुसार समय का सम्यक नियोजन बहुत आवश्यक है।
प्रचार मंत्री सुधीर जैन ने बताया कि प्रवचन कार्यक्रम में भवान्त मुनि, साध्वी विशुद्धि म सा, साध्वी विशाखा म सा विराजित रहे ।
डॉ समकित मुनि ने चेलना रानी कथानक में कहा कि सफर का मज़ा लेना हो तो सामान कम रखना व जिन्दगी का मज़ा लेना हो तो अरमान कम रखना।प्राण रहते इच्छाये खत्म हो जाये तो मुक्ति होगी।
वस्तुत: हमारा जीवन भी भगवान से मांग मांग कर भिखारी की तरह हो गया है।’लोभ’ कर्मों का कुख्यात राजा है ।इससे बचना जरूरी है। यह दिल की बीमारी है। इसका आर्थिक स्थिति से कोई सरोकार नहीं है।
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