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चित्तौड़गढ़-विजयपुर तालाब की मोहरी मामले में आम आदमी पार्टी जिलाध्यक्ष ने जारी किए बयान, कहा किसानों पर बीजेपी नेता का बयान शर्मनाक।

वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़।विजयपुर तालाब की मोहरी खुलवाने के मामले में आम आदमी पार्टी, जिलाध्यक्ष ने बयान जारी कर कहा कि किसानों को फर्जी कहना किसानों का अपमान है।
चित्तौड़गढ़ आम आदमी पार्टी जिलाध्यक्ष अनिल सुखवाल ने विजयपुर तालाब की मोहरी मामले में बयान जारी कर कहा कि एक ओर पिछले पांच सालों से पीड़ित और बेरोजगारी से त्रस्त किसान अपनी पेटा काश्त जमीन को तालाब की मोहरी खुलवाने और क़ृषि के लिए मुक्त करवाने के लिए पिछले दस दिनों से बारिश के बावजूद धरने पर बैठे हैं यह उनके भूख से तड़प रहे परिवारों की मजबूरी को दर्शाता है वही दुसरी तरफ मामले में प्रशासन द्वारा बेरूखी दिखाने से प्रतीत होता है कि मामले के पीछे सियासी लोग प्रशासन पर बाहरी दबाव बनाकर मामले को दबाने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि विजयपुर तालाब की मोहरी खुलवाने पर सियासी खेल के चलते कुछ लोग इसे राजनीतिक रूप देने का प्रयास कर रहे हैं तो कुछ लोग जोकि हाल ही में कलेक्ट्रेट पर दर्जनों की संख्या में एक साथ समूह बनाकर पंहुचे थे और तालाब को अपने जल स्तर बढ़ाने का साधन बताकर मोहरी को यथावत रखने का ज्ञापन प्रशासन को दिया था उसके पीछे भी एक बड़ी सियासी चाल नजर आ रही है चाहे ज्ञापन देने वालें लोग स्वेच्छा से या फिर किसी भी सियासी चाल के प्रभाव में प्रायोजित कार्यक्रम के तहत ज्ञापन देने पहुंचे हो साथ ही संख्या बल को भी न्याय बाधित करने का कारण नहीं बनाया जा सकता है।
संवैधानिक न्याय प्रणाली के आधार पर धरने पर बैठे विजयपुर के किसानों का हक को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।
आम आदमी पार्टी जिलाध्यक्ष सुखवाल ने कहा कि कल ज्ञापन देते समय विजयपुर में धरने पर बैठे किसानों को फर्जी किसान बताने का बयान भी शर्मनाक है।
प्रशासन को चाहिए कि समय रहते धरने पर बैठे किसानों को न्याय देते हुए उनकी पेटा काश्त जमीन को जांच करवा कर शीघ्र मुक्त करावें साथ ही जो किसान विजयपुर के आसपास के गांवों के प्रभावित हो रहे हैं उनके लिए भी प्रशासन अलग से न्यायोचित समाधान करावें ताकि उनका हित भी बाधित ना हो इसकी भी सरकार और प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी बनती है कुल मिलाकर किसी एक पक्ष को राहत देने के लिए दूसरे का हक मार कर न्याय का क्षय किसी भी स्तर पर नहीं किया जाना चाहिए।
प्रशासन को चाहिए कि धरने पर बैठे किसानों को पेटा काश्त जमीन मुक्त नहीं कराई जा सकती तो उन्हें अन्य जगहों पर जीवनयापन के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में जमीन शीघ्र आवंटित कराई जावें ताकि उनके भूख से तड़प रहे परिवारों के साथ न्याय हो सके।
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