वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़।मधुर गायिका साध्वी विशाखा म सा के स्वागत गीत से गुरुवार प्रातः खातर महल में “समकित की यात्रा समकित के साथ” प्रवचन श्रृंखला प्रारंभ हुई।
डॉक्टर समकित मुनि ने वर्चुअल धर्म सभा में कहा कि इंसान से भगवान बनने के लिए सुनना ही होगा।
सुनने से बदलाव आता है और परिणामस्वरूप छोटी-छोटी बातों पर बदला लेने का कभी मन नहीं करता । इस दुनिया में कांटों से मोहब्बत करने वाले ज्यादा लोग और फूलों से प्रेम करने वाले लोग कम मिलते हैं। गुस्सा अभिमान,विषय वासना ये सभी कांटे हैं जबकि वैराग्य और संत जीवन फूल के समान हैं। फूल कभी जख्म नहीं देते हैं और जो जख्म देता है वह कभी फूल नहीं हो सकता।उन्होंने कहा कि क्रोध हमेशा जख्म देता है व हमें जख्म देने वाले इस कांटे से दूर रहना चाहिए।
डॉ समकित मुनि ने सूत्र कृतांगसूत्र का एक महत्वपूर्ण सूत्र देते हुए कहा कि “मैं “और। “मेरेपन”की जो छाप लगाना चाहते हैं वह कभी सुख शांति से नहीं रह पाते हैं। ऐसे व्यक्ति हमेशा सुख शांति का नाश करते हैं। उन्होंने कहा कि परिग्रह कांटा है और अपरिग्रह फूल है। उन्होंने माताओं बहनों को विशेष रूप से इंगित करते हुए कहा कि कभी भी गिलहरी की तरह मत बनो क्योंकि गिलहरी हमेशा भोजन छुपा छुपा कर रखती है वह कई बार भोजन रख कर भूल जाती है। चीजों को बटोरने के साथ साथ बांटने से जीवन सुखमय हो जाता है। उन्होंने काले बादल का उदाहरण देते हुए कहा कि मेघ जब पानी से भरा होता है तब वह बहुत काला होता है पर जब वह वर्षा दे देता है उसके बाद वह निर्मल स्वच्छ और उज्जवल हो जाता है। हमें भी जीवन में निर्मल स्वच्छ और उज्जवल बना रहना है तो बांटना होगा। जहां साधना है ,जहां तप है, जहां त्याग है वहां पर रिद्धि सिद्धि है।
धर्म देने वालों से कभी भी धन की चाह नहीं होनी चाहिए। हाथ में पात्र लेना आसान है पर स्वयं को पात्र बनाने में कई जिंदगियां निकल जाती है।इसलिए दिखावे के चक्कर में कभी खुद को घनचक्कर नहीं बनाएं ।जब कभी कोई श्रेष्ठ व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता साबित करने की कोशिश करता है तो एक तरह से वह अपनी श्रेष्ठता को समाप्त करने लग जाता है ।व्यक्ति चरित्र से भले ही गिर जाए पर श्रद्धा से कभी नहीं गिरना चाहिए क्योंकि श्रद्धा रहेगी तो चरित्र का सुधार शत प्रतिशत संभव है पर यदि श्रद्धा नहीं है तो कुछ भी संभव नहीं हो पायेगा।
प्रवचन कार्यक्रम का संचालन करते हुए श्रीसंघ प्रचार मंत्री सुधीर जैन ने बताया कि डॉ समकित मुनि ने आठ उपवास की तपस्या करने वाली श्राविकाओं रेखा संजय लोढ़ा, मोनिका गौतम चिप्पड, दिलखुश राजकुमार खेरोदिया, सुजाता सुनील नाहर, ममता अभय खमेसरा को प्रत्याख्यान दिलाया और कहा कि चित्तौड़गढ़ के जैन समाज के श्रावक श्राविकाओं का भक्ति भाव सराहनीय है जिन्होंने चातुर्मास के प्रारंभ में ही तप और साधना की बहुत अच्छी शुरुआत की है।