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जितनी जल्दी जांच करा कर इलाज शुरू कर देंगे, बचने के चांस उतना बढ़ जाएंगे’’ –कोविड हॉस्पिटल प्रभारी डॉ. सिंह

वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@डेस्क।

चित्तौड़गढ़ जाने-माने चिकित्सक, कोविड हॉस्पिटल सीताफल प्रभारी और एमडी मेडिसिन डॉ. विश्वेन्द्र सिंह चौहान बताते हैं कि लक्षण दिखने के बाद जितना जल्दी मरीज़ का टेस्ट कर उसका विवेकपूर्ण तरीके से इलाज शुरू कर दिया जाए, उतना उसके सुरक्षित बचने के चांस बढ़ जाते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में वे सैंकड़ों गंभीर कोरोना मरीजों को ठीक कर चुके हैं। वे अपने अनुभव से सभी को कहते है, “सबसे महत्वपूर्ण दवा यही है कि आप खुद हिम्मत न हारें, ठीक होने का हौंसला बनाए रखें, अपने-आप पर और अपने डॉक्टर पर विश्वास रखें, भगवान भी उनकी मदद करते हैं जो खुद की मदद करते हैं।”

डॉ. विश्वेन्द्र सिंह मूलत: अजमेर के रहने वाले हैं। उन्होंने एमबीबीएस और एमडी मेडिसिन की पढाई सवाई मानसिंह कॉलेज (एसएमएस) जयपुर से की है, जो पिछले दस माह से यहाँ सेवाएं दे रहे हैं एवं वर्तमान में कोविड हॉस्पिटल चित्तौड़गढ़ के प्रभारी हैं। वे एम्स जोधपुर और एम्स नई दिल्ली में भी सेवाएं दे चुके हैं।

डॉ. विश्वेन्द्र सिंह बताते हैं कि एसएमएस से पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने राजकीय सेवा ज्वाइन करने का विकल्प चूका और गत वर्ष जुलाई माह में यहाँ पोस्टिंग हुई। इसके बाद देशभर से कई निजी अस्पतालों से कॉल आने लगे। कुछ पांच गुना तो कुछ आठ गुना तक वेतन देने को तैयार थे, लेकिन उन्होंने सरकारी सेवा का विकल्प ही चुनने का फैसला लिया। डॉ. चौहान बताते हैं कि सरकारी सेवा में रह कर ही गरीब से गरीब व्यक्ति का इलाज किया जा सकता है, जो निजी अस्पतालों में संभव नहीं है। डॉ. विश्वेन्द्र सिंह बताते हैं कि उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा अपने पिता स्व. श्री एन. आर. चौहान से मिली है, जो भारतीय राजस्व सेवा के वरिष्ठ अधिकारी एवं जाने-माने समाजसेवी रहे हैं।

 

दिनभर फोन की घंटी बजती है, दिन कब पूरा हो जाता है, पता ही नहीं चलता

डॉ. विश्वेन्द्र सिंह बताते हैं कि कोरोना के आने के बाद दिनचर्या पूरी तरह से बदल गई है, कब सुबह होती है और कब रात…पता ही नहीं चलता। वे बताते हैं कि सुबह 6 बजे से रात 2 बजे तक उनके फोन की घंटी निरंतर बजती रहती है, कभी किसी मरीज़ या उसके परिजन का फोन होता है, तो कभी स्टाफ का। सुबह 8 बजे कोविड हॉस्पिटल पहुँच जाते हैं जहाँ वे हर मरीज़ से मिल कर हाल जानते हैं और उसकी हौंसला अफजाई करते हैं। डॉ. विश्वेन्द्र सिंह बताते हैं कि कोविड हॉस्पिटल में मरीज की हालत का अच्छे से विश्लेषण करते हुए ट्रीटमेंट लिखना, ऑक्सीजन लेवल सेट करना, चार्ट-आउट करना, स्टाफ को मेनेज करना, समय-समय पर ऑक्सीजन बेड की उपलब्धता चेक करना जैसे कार्य उन्हें करने होते हैं। यह सब करते हुए आम तौर पर दोपहर की तीन बज जाती है।

डॉ. विश्वेन्द्र सिंह को दिनभर कोने-कोने से परमार्श के लिए अनजान लोगों के भी फोन कॉल और वोट्सएप मेसेज आते हैं और वे भी लोगों की व्यथा पूछ कर उन्हें तुरंत उचित परामर्श देते हैं। अब तक वे राजस्थान ही नहीं बल्कि यूपी, हरियाणा, दिल्ली, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों के सैंकड़ों मरीजों को इस तरह ठीक कर चुके हैं।

 

शुरूआती लक्षणों में ही कोरोना को पकड़ इलाज शुरू कर दें

डॉ. विश्वेन्द्र सिंह ने बताया कि अगर कोरोना के लक्षण को शुरुआत में ही पकड़ लिया जाए और चिकित्सक भी अपने विवेक से उसका अच्छे से इलाज शुरू कर दे तो काफी हद तक बिमारी को बढने से रोका जा सकता है। वे कहते हैं कि ऑक्सीजन सपोर्ट पर इलाजरत मरीज़ को भी विवेक और कौशल से किये गए ट्रीटमेंट से बचाया जा सकता है, लेकिन यह भी तब संभव है जब शुरूआती लक्षणों में ही कोविड की जांच कर इलाज शुरू कर दिया गया हो। डॉ. विश्वेन्द्र कहते हैं कि कोरोना की लड़ाई ग्राउंड पर ही जीती जा सकती है। इसके लिए जरुरी है कि लोग गाइडलाइन का पालन करें और लक्षण दिखाई देने पर विलम्ब न करते हुए जांच अवश्य करवाएं। उन्होंने कहा कि आमजन घर पर ब्रिथिंग एक्सरसाइज़ करे और सकारात्मक सोच रखें, इससे काफी मदद मिलती है।

डॉ. विश्वेन्द्र के कहा कि यदि हर पीएचसी और सीएचसी पर आठ-दस ऑक्सीजन बेड लग जाएं और मरीज़ भी वहां भर्ती होने लग जाए तो बड़ी संख्या में लोगों की जान बचाई जा सकती है। हाल ही में उन्होंने जिला प्रशासन को ग्राम पंचायत स्तर पर कोविड केयर सेंटर खोलने की सलाह दी है जिस पर काम भी शुरू कर दिया गया है। उन्होंने बताया कि कोरोना से घबराने के बजाय सावधान होने की जरूरत है। मरने वालों से कई गुना बड़ी संख्या में ऐसे मरीजों की है जो ठीक होकर घर जा रहे हैं, बस हमें सचेत रहना होगा और समय पर चिकित्सक से परामर्श लेकर इलाज शुरू करना होगा।

 

तीन दिन में 24 मरीज़ आए, 20 ठीक होकर घर चले गए

डॉ. विश्वेन्द्र सिंह ने बताया कि कोविड हॉस्पिटल में तीन दिन में 24 मरीज़ आए, जिनमें 20 मरीज़ अच्छे से ट्रीटमेंट पाकर सकुशल घर चले गए। वे कई क्रिटिकल मरीजों को ठीक कर चुके हैं। लगभग 60 वर्ष की उम्र के एक मरीज़ मोहम्मद अल्ताफ का ऑक्सीजन लेवल 60 पर आ गया, जिसकी स्थिति बेहद चिंताजनक थी, लेकिन क्लोज़ मोनिटरिंग और इलाज से उसको बचा लिया गया। इसी प्रकार कपासन से आए 80 वर्ष से अधिक उम्र के क्रिटिकल पेशेंट शंकरलाल को भी वे बचाने में सफल रहे। चित्तौड़गढ़ के भवानी शंकर और कैलाश कंवर जैसे क्रिटिकल मरीजों को बचा कर घर भेजा। कोरोना से गंभीर रूप से पीड़ित एक शक्स लक्ष्मण दास वैष्णव उनके पास इलाज हेतु आया, लेकिन उस समय अस्पताल में बेड नहीं होने से उसे होम आइसोलेट होना पड़ा। फोन पर ही डॉ. विश्वेन्द्र उसकी मोनिटरिंग करते है और परामर्श देते रहे, अंतत: मरीज़ ठीक हो गया।
डॉ. विश्वेन्द्र सिंह फिलहाल कोरोना की दूसरी लहर आने के बाद से घर नहीं गए हैं और बताते हैं कि आगे भी कोरोना से लड़ाई इसी तरह निरंतर जारी रहेगी, जब तक इस पर विजय हांसिल नहीं हो जाए।

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