वीरधरा न्यूज़।चित्तौड़गढ़@ डेस्क।
चित्तौड़गढ़।श्रमण संस्कृति का आधार ज्ञान, दर्शन तप चरित्र है जो मूलतः मनुष्य के निर्माण करने हेतु परम आवश्यक है। मनुष्य यदि ज्ञान शून्य हो तो न केवल सामाजिक प्रतिष्ठा से वंचित रहता है बल्कि मनुष्य की सर्वोच्च विशेषता ज्ञान से भी वंचित होकर पृथ्वी पर भारस्वरूप डोलायमान रहता है।
यह विचार श्रमण संघी प्रवर्तक साहित्य मनीषी कवि रत्न विजय मुनि ने मीरा नगर स्थानक में ज्ञान पंचमी के पावन अवसर पर प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ज्ञान अर्थात आत्मबोध के बिना तप, दान ,स्वाध्याय और शील के प्रति मनुष्य सोच भी नहीं सकता और वह मनुष्य के गुण धर्म से भी गिर जाता है। भगवान महावीर ने उत्तराध्यानन सूत्र में बहुश्रुत पूजा प्रसंग में ज्ञान के महत्व को समझाते हुए बताया है कि जो ज्ञानहीन, विद्या हीन, अहंकारी, विषय लोलुप, इंद्रिय और मन को नियंत्रण में नहीं रखता वह अविनीत अज्ञानी है। उन्होंने कहा कि इसी अज्ञान, अंधकार से ज्ञानाराधन और मनस्थियों को मोड़ने हेतु ज्ञान पंचमी तप का निर्धारण जैन संस्कृति में अनादि काल से प्रचलित है। ज्ञान के बिना की हुई क्रिया मिथ्या में चली जाती है ल।समझकर की हुई क्रिया आत्मा को उर्ध्वगामी बना देती है। उन्होंने कहा कि मानव की पूजा नहीं होती मानवता की पूजा होती है वैसे ही साधक की पूजा न होकर साधना पूज्य होती है। ज्ञान के साथ उस पर आचरण अति आवश्यक है। आचरण की कमी से घर परिवार समाज देश एवं पूरे विश्व की परिस्थितियां प्रभावित होती है। कषाय का विषय जन्मो जन्मो तक रहता है ।अज्ञान व मोह का अंधकार हटेगा तभी ज्ञान का उजाला फैलेगा।
पूज्य प्रवर्तक डॉ सुभाष मुनि ने वर्तमान से वर्धमान विषय पर धर्मसभा को मार्गदर्शित करते हुए कहा कि नफरत का स्रोत जन्मो जन्म के लिए खाना पीना और सोना खराब कर देता है। व्यक्ति के दिल के दरवाजे में एक जने के लिए भी यदि प्रवेश निषेध का बोर्ड लगा है तो उसे मोक्ष में प्रवेश नहीं मिल सकेगा। उन्होंने कहा कि परिवार में जिसको शिकवे शिकायत जुबां पर नहीं आते वह व्यक्ति दिल ही दिल में सिसकने को मजबूर हो जाता है। पारिवारिक शांति के लिए मौन रहना पड़े, दो कदम पीछे हटना पड़े तो उसे जरूर स्वीकार करना चाहिए ।कड़वे वचनों को भूलकर मधुर स्मृति को हमेशा संजोए रखने की बात कही। उन्होंने कहा यह सब करने से जीवन मधुर हो जाएगा ।तनाव बुरी बातों को याद रखने से होता है। रिश्ते कभी समाप्त नहीं होते जन्मों-जन्मों तक बनते बिगड़ते रहते हैं इसलिए जीवन में माधुर्य भरे और परिवार और समाज को समरसता से बढ़ाते रहें। उन्होंने कहा कि आत्मानुशासन कोई यदि एक बार स्थापित कर लिया जाए और उस पर विवेक का अंकुश बन जाए तो वह चिरकाल तक स्थाई रूप से बना रहता है। पूज्य प्रवर्तक प.प्रदीप मुनि ने भी इस अवसर पर धर्म और आत्मा पर अपने संबोधन में कहा कि धर्म उपचार है ,आचार है, संस्कार है ,व्यवहार है और क्या कुछ नहीं। वस्तुतः धर्म कर्तव्य है। वस्तु का स्वभाव धर्म है जीवन है और आनंद है धर्म सभी प्रकार शक्तियों की रामबाण औषधि है। उन्होंने कहा कि सरलता के बिना मन शुद्ध नहीं हो सकता माया, कषाय को त्यागने से ही सुख की प्राप्ति होती है। वर्तमान में धर्म प्रदर्शन रह गया है जबकि धर्म का सही काम तो आचरण में है।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ संस्थान के प्रचार प्रसार मंत्री सुधीर जैन ने बताया कि संतगण शुक्रवार को प्रातः मीरा नगर से अहिंसा नगर की ओर विहार करेंगे। 20 एवं 21 मार्च को अहिंसा नगर में वीरवाल सम्मेलन एवं समीर मुनि स्मृति दिवस का आयोजन उपाध्याय रविंद्र मुनि जी एवं प्रवर्तक विजय मुनि आदि ठाणा के सानिध्य में मनाया जाएगा।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ संस्थान के मंत्री अजीत नाहर ने धर्म सभा का संचालन करते हुए बताया कि 22 मार्च सोमवार को उपाध्याय रविंद्र मुनि सहित प्रवर्तक विजय मुनि आदि ठाणा के प्रवचन मीरा नगर स्थानक में रहेंगे।