वीरधरा न्यूज़। भदसोड़ा@ श्री सुरेश चंद्र आचार्य।
भादसोड़ा। अंतर में रमण करें वही महात्मा स्वयं को जानो दुनिया को जानने से पहले इस संसार में जीने की कला सनातन धर्म में चार आश्रमों के माध्यम से बताई गई है बाल ब्रह्मचर्य आश्रम, ग्रस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और सन्यास आश्रम परंतु इसका पालन नहीं हो रहा है अंत समय तक व्यक्ति व्यवसाय में ही टिका रहता है इससे जीवन नीरस एवं असंतुष्ट हो गया, हमें दुनिया से कोई निकाले उससे पहले हमें इस दुनिया से निकल जाना चाहिए यही समझदारी है वरना बिना पूछ के जानवर की श्रेणी में दर्ज होना मानव जीवन की समझदारी नहीं है। हमें जानवरों में और इंसानों के अंतर को समझना होगा शरीर से कोई इंसान नहीं हो सकता इंसान होने की समझ होगी तभी वह इंसान होगा। हमें सद्गुणों को जीवन में उतारना चाहिए, संतों और महापुरुषों की वाणी पर अमल करना चाहिए दीन दुखियों की सेवा, संतों की सेवा, अतिथियों की सेवा जीवन का उद्धार करने के लिए भागवत सेवा इन सब गुना के साथ जीवन जीना ही संतोष प्राप्ति का मार्ग है। जहां इच्छाओं का अंत नहीं होता वहां कभी सुख नहीं मिलता। करना था सो कर लिया कला केसा काम
धोणा ने धिरपा दो माथे रखो राम।
यह विचार श्रमणसंघिय मेवाड़ भास्कर उप प्रवर्तक कोमल मुनि करुणाकर महाराज साहब ने पोषद शाला मंगलवाड में धर्म सभा के दौरान कहे। इस अवसर पर चित्तौड़गढ़ नाथद्वारा भादसोडा सहित मंगलवाड के श्रावकगण उपस्थित थे। अतिथियों का संघ के द्वारा सम्मान किया गया।