गंगरार-साध्वी डॉ चिंतन श्री जी ने वर्धमान स्थानक भवन गंगरार में धर्मसभा को सम्बोधित कर नवकार कि महिमा बताई।
वीरधरा न्यूज़।गंगरार@डेस्क।
गंगरार। “नवकार महामंत्र नहीं बल्कि हमारा परम मित्र है” उक्त विचार साध्वी डॉ चिंतन श्री महाराज साहब ने शनिवार को वर्धमान स्थानक भवन में “पंच नवकार महामंत्र” को व्याख्यायित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि नवकार मंत्र ऐसा मंत्र है जो हर पल हर समय हमारे साथ रहकर ऊर्जा प्रदान करते हुए ईश्वर भक्ति की ओर प्रेरणा देता है। साध्वी डॉ चिंतन श्री ने श्री कृष्ण व सुदामा की मित्रता पर चर्चा करते हुए उपाध्याय व साधु शब्द की मीमांसा में कहा कि जिसके समीप बैठकर अध्ययन किया जावे, जो जीवन जीने की सम्यक समझ लें तथा रिश्तो व अपनों के संग रहने की शिक्षा दें वही उपाध्याय है। उन्होंने कहा कि समझ व ज्ञान तो उपाध्याय के पास जाने से ही आएंगे। उन्होंने बच्चों में समझदारी विकसित करने का आह्वान करते हुए कहा कि दुख का कारण अज्ञान ही है। साध्वी डॉ चिंतन श्री ने कहा कि जीवन में ज्ञान का दीप जब तक प्रज्वलित नहीं होगा तब तक हम दुखी ही रहेंगे । उन्होंने कहा कि ज्ञान वही है जो जीने की सम्यक कला देता है तथा विद्या विनय और विवेक को जन्म देती है। उन्होने साधु की परिभाषा में कहां कि जो अपने तन पर स्वयं नियंत्रण रखें, जिसकी इंद्रियां व मन वश में हो वो ही साधू है। साध्वी डाक्टर चिंतन श्री ने कहा कि शांति तो दो जगह पर ही मिलती है, एक मरघट पर और दूसरी संतों के पास जाने से। उन्होंने कहा कि जो कषायो से मुक्त हो जाते हैं वे अपने आप जीना सीख जाते हैं। साध्वी डाक्टर चिंतन श्री ने धर्म सभा में संत व गृहस्थ में अंतर बताते हुए कहा कि, जिसके घर पर पैर टिकते हो व दिमाग संसार में घूमता हो, जो नित नई ड्रेस बदले पर घर का एड्रेस नहीं बदले वो गृहस्थ है तथा जिसके पैर घूमते रहे व मन टिका रहे साथ ही जो एड्रेस बदले परंतु ड्रेस नही बदले वही संत है। उन्होंने कहा कि आज नाम, ड्रेस व एड्रेस के पीछे हम पागल बन कर जी रहे हैं ।उन्होंने कहा कि जिस दिन बाहर का प्रभाव भीतर को प्रभावित करना बंद कर देगा उसी समय संतत्व आ जाएगा। उन्होंने गृहस्थ संत को समभाव के गुण सीखे जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए “जीवन है पानी की बूंद कब मिट जाए रे” होनी अनहोनी कब क्या घट जाए रे “कवित गाकर अंत्येष्टि से पहले परमेष्टि को जानने व जीने का आह्वान किया। धर्म सभा में साध्वी मधुकंवर जी महाराज साहब ने कहा कि हमें अपने जीवन के कषायो से मुक्त हो परिवर्तन लाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि साधना तो सरल है, इसमें शारीरिक व आंतरिक बल की कतई आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है तो मात्र मन के पवित्र भावो की। साध्वी मधु कंवर जी मसा ने महाभारत के धर्मराज युधिष्ठिर व यक्ष के प्रश्नों के संवाद का चित्रण करते हुए कहा कि भावी पीढ़ी को सुसंस्कृत कर भाव सहित प्रभु का नाम स्मरण कराने की प्रेरणा दे जिससे अज्ञान व अहंकार समाप्त हो जावे। श्री संघ के मंत्री सागरमल सुराणा ने धर्म सभा का संचालन किया।
जैन समाज अध्यक्ष व समाजसेवी कोमल सिंह मोदी ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर रेल्वे स्टेशन उपनगर जैन समाज के मंत्री अशोक कुमार कोचिटा ने भी विचार व्यक्त किए। मीडिया प्रवक्ता मधुसूदन शर्मा ने “जब तेरी डोली निकाली जाएगी, बिन मुहूर्त के उठा ली जाएगी।” संगीत से आध्यात्मिक चिंतन देते हुए विचार व्यक्त किए। धर्म सभा में मिश्रीलाल कोठारी, शांतिलाल कोठारी,चांदमल कोठारी, रतन लाल लोढ़ा, शंभूलाल सुराणा, हस्तीमल सुराणा, रोशन लाल कोठारी, आशीष लोढ़ा, रोशन लाल पगारिया, कपिल मोदी, सुनील कुमार लोढा, पारसमल बाफना, सुजान मल लोढ़ा, महावीर लोढा, सुजान मल सुराणा सहित श्रावक श्राविकाओं तथा कई नन्हे मुन्हे बालकों नै भी सप्ताह में एक बार परिवार के साथ बैठकर 27 बार नवकार मंत्र जपने का संकल्प लिया।