वीरधरा न्यूज़।हरियाणा@डेस्क।
गुरूग्राम। तुलसी विवाह हिंदू धर्म का प्रमुख पर्व है, हर वर्ष कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह किया जाता है।
इस शुभ अवसर पर दि योगक्षेम महिला उत्कर्ष सेवा कोऑपरेटिव मल्टीपर्पज सोसायटी लिमिटेड की अध्यक्षा मंगला गुप्ता और उपाध्यक्षा स्वर्णलता पाण्डेय(पूजाजी) द्वारा गुरूग्राम सेक्टर-47 की महिलाओंने मिलकर तुलसी विवाह और देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत कर उत्सव मनाया गया है।इस अवसर पर स्वर्णलता पाण्डेय ने बताया कि इस वर्ष यह एकादशी तिथि 3 नवंबर को प्रारंभ होकर 4 नवम्बर को समापन होगा इसलिए यह पर्व 4 नवम्बर 2022 में मनाया जाएगा आगे उन्होंने कहा कि तुलसी विवाह में माता तुलसी देवी का विवाह भगवान शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति तुलसी विवाह का अनुष्ठान करता है उसे कन्यादान के बराबर पुण्य फल मिलता है।तुलसी विवाह भारत के अनेक प्रदेशो में मनाया जाता है श्री स्वर्णलता पाण्डेय के अनुसार शालिग्राम भगवान विष्णु जी का ही अवतार माने जाते हैं, पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार तुलसी मैया ने गुस्से में भगवान विष्णु जी को श्राप से पत्थर बना दिया था, तुलसी देवी के इस श्राप से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु ने शालिग्राम जी का अवतार लिया और तुलसी जी से विवाह किया, तुलसी मैया को मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है, देश में कुछ स्थानों पर तुलसी विवाह द्वादशी के दिन भी किया जाता है।बिना तुलसी दल के शालिग्राम या जगत पालनहार श्री विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती हैं।शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी जी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह शास्त्रों में माना जाता हैं।
इस कार्यक्रम में सेक्टर-47 की बड़ी बुजुर्ग महिलाओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लेकर कथा- पूजापाठ किया था।आगे पूजाजी ने बताया कि देवउठनी एकादशी के दिन से ही चतुर्मास समाप्त हो रहे हैं और शुभ व मांगलिक कार्य शुरू होंगे। शास्त्रों के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन ही सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने बाद योग निद्रा से जागते हैं और पुन: सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं।