आत्मा की मलिनता पानी से साफ नहीं हो सकती,आत्मा तो प्राश्यिचत से ही शुद्ध हो सकती है- साध्वी डाॅ. अर्पिता।
वीरधरा न्यूज़।चित्तोड़गढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़। अठारह पापों से आत्मा मलिन होती है। आत्मा की मलिनता पानी से साफ नहीं हो सकती, पानी शरीर की गन्दगी को साफ कर सकता है, आत्मा तो आलोचना, प्राश्यिचत से ही शुद्ध हो सकती है। पाप और पुण्य आत्मा को लगते हैं। शरीर तो नाशवान है पर आत्मा अजर अमर है। यही पाप और पुण्य की वाहक है। मनुष्य को अपने यौवन, धन, परिवार, अधिकार रूप तथा बल का घमण्ड होता है। यह अभिमान ही नरक में ले जाने वाला है। प्रायश्चित रूपी आग में जल कर आत्मा शुद्ध बन सकती है।
ये विचार शांति भवन सैंती में डाॅ. अर्पिता ने व्यक्त करते हुए माया-कपटाचार पाप का विवेचन करते हुए बताया कि माया के अनेक नाम है – छल, कपट, फरेब, धोखा, निकृति, चतुराई। अनेक नामों से यह पाप प्रचलित है। इससे आत्मा मलिन हो जाती है। गृहस्थ और साधु दोनों कपटाचार करते हैं। मान सम्मान के लिए कपटाचार करने वालों की दुनिया में कमी नहीं है। औरत व लक्ष्मी भी माया के ही रूप है। आगम प्रमाण से माया कभी उच्च गति में नहीं जाता। माया मीठी छूरी के समान है। कपटी के तीन लक्षण होते हैं, उसका मुंह कमल की तरह खिला रहता है, हंसी से परिपूर्ण रहता है, उसके वचन चन्दन की तरह शीतल होते हैं परन्तु उसका हृदय कैंची के समान होता है। जैसे मोर मीठा बोल बोल कर सांप को निगल जाता है, लोग बात बात में कपट करते हैं, चलने, बोलने हंसने में भी कपट करते हैं। नापने, तोलने का कपट जो जगत में विख्यात है। उन्होंने कहा कि ये सब कपट त्यागने योग्य है। जिसके हृदय में कपट नहीं है, क्रोध नहीं है, मायाचार नहीं है, उसी के हृदय में प्रभु का वास हो सकता है। जो नर मायाचार करेगा उसे अगले भव में स्त्री वेद, नारी है तो नपुंसक लिंग, नपुंसक है तो तियंर्च गति में जन्म लेना पड़ेगा। मायाचार मैत्री को नष्ट करने वाला है। मायावी का कोई मित्र नहीं होता।
नवकार जाप प्रभारी सरोज नाहर ने बताया कि 02 अगस्त मंगलवार को अखण्ड जाप भगवतीलाल, मनोज, नरेन्द्र बाबेल के आवास 30-सी, पर प्रातः 8 से रात्रि 8 बजे तक रहेंगे। संचालन ऋषभ सुराणा ने किया।