वीरधरा न्यूज़।चित्तोडगढ़@ डेस्क।
चित्तोडगढ़।भारत राष्ट्र में पहली बार धर्म धरा चित्तोडगढ़ में रावण का अंत्योष्टि यज्ञ सम्पन्न हुआ जो श्री वाल्मीकि रामायण के शास्त्रीय वर्णन के अनुसार भगवान राम रावण युद्ध के उपरान्त किये गए शास्त्रीय वर्णन के अनुसार हुआ।
यह जानकारी देते हुए कार्यक्रम के प्रेरक पंडित विष्णु दत्त शर्मा ने बताया कि विभिन्न प्रकार से पूर्वजों द्वारा विविध रामायण के माथ्यम से पूरे भारत में ही नहीं पूरे विश्व में राम रावण युद्ध को व्यक्त किया है उनमें से प्रधान ग्रंथ है महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित वाल्मीकि रामायण, भगवान वेदव्यास द्वारा रचित अध्यात्म रामायण, कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम एवं गोस्वामी तुलसीदास महाराज द्वारा रचित रामचरितमानस मुख्य हैं। इन सभी ग्रंथों में विस्तारपूर्वक राम रावण युद्ध की चर्चा है तथा वाल्मीकि रामायण में युद्ध कांड के 111 वें सर्ग में विस्तार पूर्वक रावण के अंत्योष्टि यज्ञ का पूर्ण वर्णन मिलता है। वर्तमान समय में इस सांस्कृतिक परंपरा का निर्वहन नहीं हो पा रहा है तथा सामान्य से सामान्य मृतक व्यक्ति के शरीर का सम्मान भी हमारा समाज करता है तथा कोई भी व्यक्ति किसी भी मृतक के शरीर में बारूद अथवा पटाका नहीं लगाता है और ना ही किसी मृत को खड़े करके अंतिम संस्कार किया जाता है। इसलिए चित्तौड़ की धरा पर श्रीमद् वाल्मीकि रामायण में वर्णित उस उल्लेख का सहारा लेकर आज अंत्येष्टि यज्ञ किया गया जिसके द्वारा भगवान राम के आदेश देने पर विभीषण द्वारा सर्वप्रथम परिजर्नों के साथ सोने का विमान बनवाया गया था, उस शिबिका को सजाया गया था तथा उसमें रावण के मृत शरीर को लिटा कर सभी परिजन चिता स्थल पर पहुंचे थे जिसके लिए अग्नि यजुर्वेद के मंत्रों से पंडितों ने तैयार की थी और चिता पर रावण के शरीर को लिटाने के लिए चंदन की लकडी, अगर, सुगंधित द्रव्य,नारियल, गोबर आदि के द्वारा चिता तैयार की गई। रावण को उस पर लिटाने के उपरांत उसके शरीर के दाएं कंधे पर गौमाता के पवित्र धूर्त एवं दधि को लगाया गया और अन्नि संस्कार के उपरांत सभी द्वारा पहने हुए कपड़ों सहित स्नान कर तिलांजलि दी गई यही प्रक्रिया शास्त्रों की प्रक्रिया है और इस प्रक्रिया के अपनाने का वर्तमान युग में सबसे बड़ा फायदा यह है की दशहरे पर गाय के गोबर के उत्पाद की अतिरिक्त मूल्य मिलने से गौशाला समृद्ध होगी, गोपालक की आय बढेगी, चित्तौडगढ़ द्वारा इस युग में गोमय दीपावली के माध्यम से गोबर के दीपक बनाने से प्रारंभ की गई यात्रा गोवंश की रक्षा का वास्तविक माध्यम है जिसमे गोबर की दीपावली के बाद होली के बड़कूले, अब दशहरा और धीरे-धीरे सभी त्योहारों को गाय के उत्याद से जोड़ना और वह भी 1 से 1000 जगह जोड़ना वह कर्म है जो भारत में धर्म के साथ-साथ गौरक्षा को स्थाई रूप से स्थापित करने में सहायक सिद्ध होगा।
आयोजन में संत सानिध्य के रूप में सियालिया आश्रम के संत रामदास त्यागी ने राम नाम संकीर्तन कराया तथा शहीद परिजन लीला गंठेड़ी ने घर-घर श्री चारभुजा नाथ सहस्त्र दर्शन के अभिमंत्रित चित्र को पहुंचाने का आह्हान किया। कार्यक्रम में अतिथि के रुप में श्री राम नाम जपने वाले सभी राम भक्त रहे। आयोजन में चित्तौडगढ़ नगर व जिले के सभी प्रमुख गौ भक्त उपस्थित रहे।
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