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श्रीकृष्ण और रूकमणि विवाह का किया भावपूर्ण मंचन:- जयमाला वैष्णव दीदी।

 

वीरधरा न्यूज़।निम्बाहेड़ा@डेस्क।
निम्बाहेड़ा। संगीतमय श्रीमद्भागवत ज्ञान गंगा के षष्ठम दिवस पर श्रीमद् भागवत कथा प्रवक्ता जयमाला दिदी ने अपने मधूर द्वारा सरल शब्दों में परमात्मा के 16108 रानिया जिनमे 8 मुख्य पटरानियां, जो कि 8 प्रकार की प्रकृति हैं। भुमि, अग्नि, जल, वायु, आकाश, मन, बुध्दि, अहंकार
प्रकृति को जो वश में करे वो ईश्वर भगवान सबके पति है। उनका कोई विवाह नही होता है, कृष्ण का दरबार किसी को कष्ट तो हो ही नहीं सकता।
प्राचीन भारत की बेटी जितनी पढी लिखी थी उतनी आज नही है।
घुंगट प्रथा पहले नही थी पर पापी की नजरो से बचने के लिए बनाई गई।
हिन्दु मान्यता प्रणाम करके सिर झुकाया नजरो को निचा करे सम्मान हो गया कश्मीर में हमेशा हिन्दुओ का राज रहा है ये सतियो का देश, विरांगनाओ का देश है गोपियो का दिन श्री कृष्ण दर्शन से निकलता है सुर्य उदय से नहीं, उध्दव ने गोपी के चरणो की धूली को प्रणाम किया है, हे परमात्मा मुझे स्वर्ग मत देना, कुछ मत देना गोपी के चरण की धूल या घास का तिनका उडके चरणो मे लग जाऊं।
जिनके मुख से निकलने वाली कथा त्रिलोकी को पवित्र करती है प्रेम के आगे ज्ञान फिका सा लगने लगा सच्चा ईश्वर प्रेम तो वह है जो हेवान को भी ईंसान ओर पत्थर को भी भगवान बना देता है, जयमाला दिदी जी ने अपने सुंदर शब्दों में कहा कथा भगवान द्वारिकाधीश का विवाह मा रूक्मणी जी से कुण्डनपुर है।
दीदी ने बताया कि द्वारिकापुरी महाराज द्वारकाधीश श्री कृष्ण एवं रुकमणी विवाह का भावपूर्ण मंचन किया गया। इस प्रसंग में कुंदनपुर के महाराज भीष्मक अपने गुरुदेव नारद से अपनी पुत्री रुकमणी के विवाह के बारे में योग्य वर के बारे में पूछते है। तब नारद मुनि महाराज को कहते है कि आपकी पुत्री के लिए सबसे योग्य वर द्वारकाधीश श्रीकृष्ण है। जिसे सुनकर महाराज प्रसन्न हो जाते है, लेकिन युवराज रुकम इस रिश्ते से मना करते है। अपनी बहन के लिए अपने मित्र शिशुपाल को रिश्ते की लग्न पत्रिका भेजते है।
वहीं दूसरी तरफ राजकुमारी रुकमणी अपने दूत के द्वारा श्रीकृष्ण को पत्र लिखकर भेजती है और कहती है कि यदि आप मुझे वरन नही करोंगे तो मैं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूंगी। तब श्रीकृष्ण भगवान दूत को पत्र देकर राजकुमारी रुकमणी को देने की बात कहते हैं। पत्र में भगवान ने लिखा की मैं देवी मंदिर में आकर आपसे विवाह करूंगा। निश्चित किये गये समय पर श्रीकृष्ण, बलराम अपनी सेना के साथ कुन्दन नगरी के लिए निकल पड़ते है। वहीं दूसरी ओर शिशुपाल भी अपनी सेना के साथ वहां पहुंच जाते है। तब पता लगने पर श्री कृष्ण और शिशुपाल के बीच युद्ध होता है और शिशुपाल पराजित होकर वापिस लोट जाता है। इसे देखकर युवराज रुकम श्री कृष्ण के साथ युद्ध करता है और पराजित हो जाता है। तब भगवान श्री कृष्ण अपने सुदर्शन चक्र से राजकुमार रुकम को मारने के लिए तैयार हो जाते है। तब रुकमणी द्वारिकाधीश से अपने भाई रुकम को माफ करने के लिए मनाती है। जिसे देखकर युवराज भगवान श्री कृष्ण को पहचान कर अपनी बहन रुकमणी का विधिवत विवाह करवाकर कन्यादान करते है और खुशी खुशी विदा करते है।
कथा मे निम्बाहेडा एवं आस पास के क्षेत्र से सभी श्रृध्दालु कथा सुनने आते है। और भागवत ज्ञान का आनंद लेते हैं। इस अवसर पर घाणावार तेली समाज एवं सामूहिक विवाह समारोह समिति तथा महिला मंडल के पदाधिकारी सदस्य एवं कार्यकर्ता के आग्रह पर समाज के सभी महिलाओ और पुरुष बुजुर्ग युवा वर्ग ने भागवत व्यासपीठ परिवार की वाणी संगीतमय श्रीमदभागवत ज्ञान का आनंद लिया।

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