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चित्तोडगढ़-ज्ञान की उत्कृष्ट आराधना,सफलता का मूल मंत्र है:डॉ समकित मुनि

वीरधरा न्यूज़।चित्तोडगढ़@डेस्क।
चित्तौड़गढ़।समकित के संग समकित की यात्रा, स्ट्रेसफुल लाइफ का सॉल्यूशन प्रवचन श्रृंखला के क्रम में मंगलवार को खातर महल में डॉ समकित मुनि ने अपने प्रवचन में कहा कि ज्ञानपंचमी-श्रुत पंचमी की अपनी विशेषता है।
ज्ञान पंचमी की तपस्या में”नमो नाणस्स” की 5 माला, 5 साल 5 माह की साधना के साथ कुल 65 उपवास होते हैं।
मेवाड़ गुरु आचार्य मान जी स्वामी म सा का जन्म आज के दिन हुआ था,उनकी दीक्षा जयंती और पुण्यतिथि भी आज के ही दिन होने से यह दिन पावन दिवस है।
ज्ञान की उत्कृष्ट आराधना करके व्यक्ति कहीं भी असफल नहीं होता है। जितना हो सके आगम का अभ्यास करना चाहिए जिससे हमारा मन स्थिर रहेगा। स्वाध्याय की ओर ज्यादा ध्यान देना होगा।
आगम का अध्ययन करना सबसे महत्वपूर्ण।परमात्मा की वाणी से मन निर्मल हो जाता है। डॉ समकित मुनि ने लाभ पंचमी पर बोलते हुए अपने प्रवचन में कहा कि ज्ञान गूंगा नही होना चाहिए और लक्ष्मी मृत नहीँ होनी चाहिए।
धर्म और पुण्य से जो मिला उसका यदि कुछ अंश धर्म और पुण्य कार्य को समर्पित नहीँ करते हैं तो मिला हुआ भी गायब हो जाता है। ऐसे स्थान पर लक्ष्मी मृत हो जाती है।
जिनके कारण से मिला है उनको या उनके नाम से कुछ अंश अर्पित अवश्य करते रहना चाहिए।
झोपड़ी में रहने वाले को आदत हो जाती ,उसे गरीबी परेशान नहीँ करती पर किसी अमीर को झोपड़ी में रहने की मजबूरी हो जाये तो उसको गरीबी परेशान करती है और जीने नहीँ देती। समपर्ण और अर्पण से जीवन में हमेशा सुख का प्रसाद मिलेगा।जहाँ धर्म है वहां देवी देवता हैं।
धर्म का आलंबन जहां प्रभावी होता है वहां देवी देवता दास बनकर ,पुजारी बनकर रहते हैं। जिनका मन धर्म में लगा रहता है देवी देवता उनकी पूजा करते हैं।
धर्म और तप में बड़ी ताकत है। धर्म,संयम,साधना, तपस्या के प्रभाव ने डाकू तक का जीवन बदल दिया। जो चमत्कार दिखाते हैं वो मदारी होते हैं। संत वो होते हैं जो चमत्कार करना नही चाहते पर स्वतः चमत्कार हो जाते हैं।
जो काम धन नहीं कर सकता वो काम धर्म,संयम,साधना कर सकते हैं। महापुरुषों की प्रेरणाओं को आधार बनाकर जीवन को रूपांतरित कर सकते हैं।
प्रसंगों को सिर्फ पढ़कर या सुनकर ही नहीँ अपितु जीवन में लागू करेंगे तो जीवन निखर जाएगा नहीँ तो निखरा हुआ जीवन भी बिखर जाएगा।जिस प्रकार मूर्ति स्थापना के समय पहले उसकी प्राण प्रतिष्ठा जरूरी उसी तरह लक्ष्मी से पहले सरस्वती की प्रतिष्ठा की जाती है। बिना अर्थ के गृहस्थ का जीवन व्यर्थ है।
प्रचार मंत्री सुधीर जैन ने बताया कि प्रवचन में भवान्त मुनि म सा ,साध्वी विशुद्धि म सा,साध्वी विशाखा म सा विराजित रहे।कार्यक्रम का संचालन श्रीसंघ संरक्षक प्रो. सी.एम.रांका ने किया।

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